बस थोड़ी सी समझदारी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
धरमपुरा के राजा शिवपाल सिंह परोपकारी दयालु और अपनी प्रजा के बड़े हितैषी थे। आम जनता के कष्ट और दुख दर्द जानने के लिये वे सप्ताह में एक बार जनता दरवार लगाया करते थे। किंतु उनके दरवार का तरीक़ा बिल्कुल अलग था। वह लोगों को राज महल बुलाने के बदले स्वयं जनता के घर उनसे मिलने जाते थे। ऐसे उदार और दानी राजा के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा थी। राजा का रथ सुबह ग्यारह बजे राज पथ से होता हुआ नगर भ्रमण करता था। हर चौराहे पर रथ रुकता और आम जन अपनी फरिहाद लेकर राजा से सीधे ही संवाद करते। लोगों के कष्टों के त्वरित निवारण के लिये राजा शिवपालसिंह अपने मातहतों को आदेश देते और समस्या का निदान तुरंत हो जाता। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों का भी उनका नियमित दौरा होता। ऐसे ही एक दिन राजा साहब नगर भ्रमण पर थे। रथ राजपथ से चला आ रहा था कि अचानक गोबर युक्त कीचड़ के कुछ छीटे राजा साहब और उनके मातहतों के ऊपर गिरे। राजा ने इधर उधर देखा पर यह समझ में नहीं आया कि कीचड़ कहाँ से आया। सुरक्षा सैनिक भी सतर्क होकर देखने लगे कि यह गुस्ताखी किसने की। राजा ने ऊपर देखा शायद रथ किसी पेड़ के नीचे से गुज़र रहा हो और किसी पक्षी ने बीट कर दी हो किंतु न तो वहाँ कोई वृक्ष था न ही पक्षी। राज पथ के दोनों तरफ़ ऐसी कोई संदिग्ध वस्तु भी नज़र नहीं आई जिस पर शंका कि जा सके।
काफिला रोककर सैनिकों ने जन समूह की खाना तलाशी ले डाली किंतु कुछ भी हाथ नहीं लगा। न ही किसी के हाथ कीचड़ में सने थे न ही किसी की जेब अथवा थैले या गठरी इत्यादि में कीचड़ युक्त वस्तु पाई गई। राजा ने सोचा ज़रूर उनकी प्रजा का कोई व्यक्ति दुख में रहने के कारण असंतुष्ट है और कीचड़ उछालकर उसने अपनी नाराजी व्यक्त की है। राजा ने आदेश दिया कि उस दुखी व्यक्ति को मेरे सामने हाज़िर किया जाये जिसने उन पर कीछड़ उछाला है। सैनिक घर-घर जाकर जनता से पूंछतांछ करने लगे। किंतु कोई दुखी अथवा परेशान व्यक्ति हो तो मिले। राज्य में तो सभी खुशहाल थे। जिनको थोड़ी बहुत परेशानी थी राजा पहले ही दूर कर चुके थे। कीचड़ उछालने की बात भी किसी ने नहीं स्वीकारी। राजा चिंता दुबले हुये जा रहे-रहे थे, कीचड़ आया कहाँ से यही सोचकर वे परेशान थे। जनता दरवार भी बंद हो गया।
राजा कि हालत देखकर राज्य के संकट मोचन लाला पीतांबर लाल भी परेशान हो गये। आखिर उन्होंने छुपे रूप से तहकीकात प्रारंभ कर दी। जिस समय पर राजा साहब के ऊपर कीचड़ उछल कर गिरा था ठीक उतने ही समय पर वे घर से निकलते और एक-एक वस्तु का बारीकी से निरीक्षण करते। । आखिर पांचवें दिन उन्हें सफलता मिल ही गई। उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई चोर पकड़ा जा चुका था बस सबके सामने लाकर कहानी का पटाक्षेप होना शेष था।
लालाजी ने राजा साहब से निवेदन किया कि कल सुबह हमेशा कि तरह राजा साहब जनता दरवार के लिये निकलें। थोड़ी-सी न नुकर के बाद राजा साहब तैयार हो गये। रथ सजाया गया और काफ़िला धीरे-धीरे राजपथ से होकर आगे बढ़ने लगा। बहुत से सैनिक और मातहत, कर्मचारी साथ में थे, बस लाला पीतांबरलाल नादारद थे। लालाजी पर राजा साहब की विशेष कृपा होनें के कारण बहुत से दरवारी उनसे ईर्ष्या रखते थे। कानाफूसी होने लगी कि कहीं यह लालाजी की ही कोई कारिस्तानी तो नहीं है। अचानक एक तरफ़ से कीचड़ की बौछार आई जिसके छीटे राजा साहब और मातहतों के ऊपर पड़े। लोगों ने घबराकर इधर उधर देखा तो पाया कि राजपथ से करीब चालीस पचास फुट दूर एक ऊंचे टीले पर लालाजी रमतूला बजा रहे थे।
लोगों ने देखा कि कीचड़ से लथपथ एक भैंस लालाजी की बगल में खड़ी है और जोरों से पूंछ हिला रही है जिसमें लगा कीचड़ चारों तरफ़ फैल रहा है। राजा साहब के चेहरे पर हँसी फूट पड़ी। सारा माज़रा समझ में आ गया। उन्होंने ज़ोर से नारा लगाया 'दीवान लाला पीतांबर लाल की जय' और चारों ओर लालाजी कि जय जयकार होने लगी। लोग मजे से चटकारे ले लेकर हँस रहे थे। कीचड़ का रहस्य उजागर हो चुका था।