बहना का भातृत्व प्रेम / गोवर्धन यादव
"मैडम, मुझे कल एक दिन का आकस्मिक अवकाश चाहिए, मुझे ज़रूरी काम से गाँव जाना है" , टेबल पर आवेदन-पत्र रखते हुए उसने कहा,
"अच्छा, ऐसा कौन-सा ज़रूरी काम है, मैं भी तो जानूं?" मेडम ने जानना चाहा,
"मुझे अपने भाई को राखी बाँधने जाना है" ,
रजिस्टर देखते हुए, रश्मि जी, आपकी तो एक भी छुट्टी बाक़ी नहीं है, सारी केजुअल-लीव आप समाप्त कर चुकी है", आप तो जानती ही हैं कि मैं किसी को भी फ़र्लो नहीं देती" ,
"तो फिर मुझे एक दिन का लीव विदाउट पर ही दे दीजिएगा"
"तुम भी कमाल करती हो रश्मि जी, जानती हो एक दिन का कितना पैसा कट जाएगा, क्या इतना बड़ा नुक़सान सह कर भी आप जाना चाहेंगी, अरे, मेरी तरह तुम भी डाक से राखी भेज देती तो ऐसी स्थिति नहीं बनती" ,
"मेडम, आपको आपकी सलाह के लिए धन्यवाद, आप ऐसा कर सकती हैं क्योंकि आप अमीर जो ठहरीं, फिर आपके पास समय है और न ही आपके भाई जी के पास, लेकिन मेरा भाई एक साधारण-सा किसान है, अगर मैं नहीं पहुँची तो वह सारे काम-धंधे छोड़कर राखी बंधवाने चला आएगा, उसका परिवार भी बड़ा है, आमदनी कम है और ख़र्च ज़रूरत से ज्यादा, उसके आने से उसका बहुत सारा रुपया ख़र्च हो जाएगा और खेतों में जो नुक़सान होगा, सो अलग, इसलिए मैं हर साल राखी बाँधने ख़ुद अपनी ओर से चली जाती हूँ और राखी बंधवाई में मैं शगुन के रूप में केवल एक रुपिया स्वीकार करती हूँ, मैडम, भाई के पवित्र प्यार के सामने धन-दौलत कोई माने नहीं रखता" , रश्मि ने बड़े गर्व के साथ कहा और गेट खोलकर बाहर निकल गई.