बहरी बीवी / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
एक रईस था। उसकी एक जवान बीवी थी, जो पूरी तरह बहरी थी।
एक सुबह, जब वे नाश्ता कर रहे थे, बीवी ने कहा, "कल मैं बाजार गई थी। वहाँ दमाकस की सिल्की पोशाकें, भारत के परदे, फारस के नेकलेस और यमन के ब्रेसलेट्स की नुमाइश लगी थी। लगता है कि कोई कारवाँ इन चीजों को हमारे शहर में लाया है। जरा मेरी ओर देखो। कहने को तो मैं एक बड़े आदमी की बीवी हूँ लेकिन हूँ फटेहाल। मुझे उन कीमती चीजों में से कुछ चाहिए।"
कॉफी पीते हुए पति ने कहा, "बेगम, क्या तुम्हें कभी रोका है? तुम बाजार जाओ और जो चाहिए खरीद लाओ।"
बहरी बोली, " 'नहीं!!' तुम हमेशा 'नहीं, नहीं' ही बोलते हो। क्या मुझे अपने रिश्तेदारों और तुम्हारे मेहमानों के बीच इस खस्ताहाल में जाना-आना चाहिए?"
पति ने कहा, "मैंने 'ना' नहीं कहा। तुम दौड़कर बाजार जाओ, खूबसूरत से खूबसूरत ज्वेलरी की खरीदारी करो और वापस अपने शहर लौट आओ।"
लेकिन बीवी ने उसकी बातों का फिर गलत मतलब निकाला और बोली, "जितने भी रईस हैं, उनमें सबसे ज्यादा कंजूस तुम हो। मुझ पर फबने वाली तुम हर चीज़ को मना कर देते हो जबकि मेरी उम्र की दूसरी औरतें बन-ठन कर शहर के पार्कों में घूमती हैं।" यों कहकर उसने रोना शुरू कर दिया। आँखों से निकलकर उसके आँसू उसकी छातियों पर गिरने लगे। वह चीखने-चिल्लाने लगी, "मैं जब भी कोई कपड़ा-गहना माँगती हूँ, आप 'नही, नहीं' बोलने लगते हैं।"
तब पति उठा। अपने पर्स में से उसने मुट्ठी भरकर सोने के सिक्के निकाले और उसके सामने रख दिए। वह बोला, "बाजार जाओ मेरी जान, और जो चाहो खरीद लाओ।"
उस दिन के बाद, उसकी बहरी बीवी को जब भी कुछ चाहिए होता, वह आँखों से मोती टपकाती उसके सामने जा खड़ी होती। और वह बिना कुछ बोले मुट्ठीभर सोने के सिक्के उसकी झोली में डाल देता।
अब, होता यह है कि जवान औरतें जो ऐसे नौजवानों के प्यार की गिरफ्त में हैं, लम्बे समय तक टिक जाती हैं। और जब भी वह अपना हाथ खींचता है, वे कोपभवन में जाकर टसुए बहाना शुरू कर देती हैं।
बीवी को टसुए बहाता देख वह मन में सोचता है, "जरूर कोई नया कारवाँ शहर में आया है और मुहल्ले में जरूर कुछ सिल्की पोशाकें और ज्वेलरी दिखाई दे गई हैं।"
वह जाता है, मुट्ठीभर सोने के सिक्के लाता है और बीवी की गोद में डाल देता है।