बहादुर माँ / रेखा राजवंशी
ध्रुव जब घर पहुँचा तो घर में तो चुप्पी थी, भारी क़दमों से वह सोफे तक पहुँचा और उसमें धँस गया। सारा शरीर जैसे सुन्न-सा होता जा रहा था, पैरों की शक्ति कम होती लग रही थी। ध्रुव के अशांत मन में द्वन्द चल रहा था। माँ को पता लगेगा तो क्या होगा, सोच-सोच कर वह घबरा रहा था। कैसे आख़िर वह यह सहन कर पाएगी।
ध्रुव सोचने लगा- "घर में और कौन है उसका मेरे अलावा, बड़ी आशाएँ हैं उसे मुझसे, अब सब मिट्टी में मिल जाएँगी। मुझसे ऐसा क्यों हो गया, क्या सचमुच मेरी गलती थी।"
उसे लगा कि उसकी सोचने, समझने की शक्ति समाप्त हो गई है। अब तो जो होना है होगा, भरे मन से वह फ्रिज तक गया और बोतल से एक गिलास पानी लिया, पैनाडोल निकालने के लिए कैबिनेट खोली, तो मन किया सारी दवाइयाँ एक साथ फांक ले तो न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। पर फिर माँ की शक्ल सामने आ गई, क्या होगा उसका मेरे बाद। बड़ी हसरत से मुझे पढ़ाया लिखाया है, अब अच्छी नौकरी मिली है और सब कुछ सही तरह से चल रहा था कि अचानक ये क्या हो गया?
दो पैनाडोल पानी के साथ फांक ही रहा था कि बाहर पुलिस का साइरन सुनाई दिया, उसे लगा कि बस अब घर की घंटी बजने ही वाली है। जल्दी ही पुलिस उसे अरेस्ट कर लेगी। शाम के पांच बजे हैं, माँ छः बजे तक काम से लौटेगी, उसे कौन बताएगा, उसके ऊपर तो दुःख का पहाड़ ही टूट पड़ेगा।
सारा अतीत ध्रुव की आँखों के सामने घूमने लगा। पिता की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी, मामा से माँ का दुःख देखा नहीं गया और हमें ऑस्ट्रेलिया बुला लिया। सरकारी विद्यालय में मेरा दाखिला करा दिया और माँ को मशरूम की फैक्टरी में काम मिला। मामा के बच्चे नहीं थे, तो मामा ने ख़ूब प्यार दिया। शीघ्र ही माँ को पोस्ट ऑफिस में नौकरी मिल गई और हम एक किराए के फ़्लैट में रहने लगे। ज़िंदगी बड़ी अच्छी थी, माँ और मैं साथ-साथ बाज़ार जाते, बाहर ही कुछ खा लेते। माँ का ध्यान हर वक़्त मेरी पढ़ाई में रहता, उसका सपना था कि मैं डॉक्टर बनू। मैंने उसकी इच्छा पूरी की अब मैं उनतीस साल का हूँ और मेडिकल सेंटर में जी पी हूँ। माँ मेरी शादी के ख़्वाब सजा रही है और मैं हूँ कि उसे इतना बड़ा धक्का देने जा रहा हूँ।
दरवाज़े की घंटी नहीं बजी, पुलिस कार साइरन बजाती दूर चली गई।
ध्रुव ने घर पर दृष्टि डाली, ये फ़्लैट माँ के अथक परिश्रम का फल था, जिसे उसने दस साल पहले खरीदा था। ध्रुव ने उससे वादा किया था कि इसका बचा हुआ उधार वह चुकाएगा, पर अब तो जेल की काल कोठरी में बीस साल गुज़ारने पड़ेंगे। उसकी आँखों से आसुओं की धार बह निकली। गलती उसकी थी ही कहाँ? लाल बत्ती पर खड़ा हुआ था, जब बत्ती हरी हुई तो ध्रुव ने गाड़ी चला दी, पर जाने कैसे वह आदमी बीच सड़क पर आ गया, शायद भाग कर सड़क पार करने के लिए और गाड़ी उससे टकरा गई, वह उछल कर दूर गिरा, ध्रुव ने गाड़ी किनारे रोकी, ट्रैफिक जाम हो गया, दूर एम्बूलैंस की आवाज़ आई, शीघ्र ही पुलिस आने वाली थी। इससे पहले कि ज़्यादा लोग आते ध्रुव वहाँ से धीरे से निकल लिया। “मुझे पता है कि पुलिस जल्दी ही मुझे पकड़ लेगी, तो माँ के नाम एक चिठ्ठी लिखनी ज़रूरी थी, फिर मैं ख़ुद को पुलिस के हवाले ही कर दूंगा।“
ध्रुव ने सोचकर पेन उठाया ही था कि दरवाज़े की घंटी बजी, दिल धड़क उठा – “पुलिस आ गई। अब माँ को कैसे बताउंगा?”
आगे बढ़ कर दरवाज़ा खोला- “व्हाट ए सरप्राइज़! आज तो मैं जल्दी आने वाली थी और तुम मुझसे पहले ही आ गए” माँ ने माथा चूमा, उसकी नज़र ध्रुव पर पड़ी, चेहरे का रंग देखते ही समझ गई कि कहीं कुछ गड़बड़ है।
उसने पूछा - “क्या हुआ ध्रुव?”
ध्रुव उसके सीने से लग गया एक छोटे बच्चे की तरह रोने लगा –“माँ मुझे माफ़ कर दो, मैंने जानकर कुछ नहीं किया, अचानक ऐसा हो गया।”
माँ ने हिम्मत से सब सुना, वह कुछ समझ नहीं पाई, जब समझी तो कहने लगी – “कौन जानता है कि कब क्या होने वाला है? ये भी भाग्य का फेर है, चलो कुछ खा लो, फिर पुलिस थाने चलते हैं। गलती तुम्हारी नहीं थी, पर अच्छा यही है कि अपना अपराध स्वीकार कर लिया जाए।“
ध्रुव ने माँ की ओर देखा और पहली बार महसूस किया कि “माँ सचमुच कितनी बहादुर है।“