बहुमुखी प्रतिभा के धनी गिरीश कर्नाड / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 जून 2019
महान रंगकर्मी, फिल्मकार और अभिनेता गिरीश कर्नाड का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे भारत के एकमात्र व्यक्ति थे, जिन्हें अमेरिका से 'भारत में हिंसा' विषय पर शोध करने के लिए धन उपलब्ध कराया गया था। उन्हें रोड्स स्कॉलरशिप मिली थी। उनका नाटक 'हयवदन’ यह रेखांकित करता है कि जीवन में संपूर्णता की खोज एक महान आदर्श है परंतु यथार्थ यह है कि हम सब आधे अधूरे लोग हैं। एक कवि और पहलवान में गहरी मित्रता है परंतु एक ही स्त्री से प्रेम के कारण वे प्रतिद्वंद्वी हो जाते हैं। बियाबान में एक मंदिर के सामने वे एक-दूसरे से लड़ते हैं और दोनों के सिर धड़ से अलग होकर नीचे गिर जाते हैं। प्रेमिका देवी से प्रार्थना करती है और सदियों की निद्रा से जागी अलसाई देवी उस स्त्री से कहती हैं कि उनके सिर धड़ पर वापस रख दो तो वे उनमें प्राण फूंक देंगी। 'स्त्री’ की दुविधा यह है कि उसे पहलवान का हष्ट-पुष्ट शरीर पसंद है परंतु वह कवि को इसलिए पसंद करती है कि वह उसके रूप का वर्णन बखूबी करता है। नित नवीन उपमा खोजता है। अत: स्त्री सब कुछ जानकर कवि का सिर पहलवान के धड़ पर और पहलवान का सिर कवि के धड़ पर लगा देती है। देवी के आशीर्वाद से उनमें प्राणों की वापसी होती है। अपनी विचार शैली से संचालित कवि पहलवान शरीर पाकर भी कसरत नहीं करता और कविता लिखता है। इसी तरह पहलवान भी विचार शैली से संचालित है। कालांतर में वे दोनों फिर पहले की तरह हो जाते हैं।
इस तरह संपूर्णता प्राप्त नहीं की जा सकती, यह संदेश दिया गया है। हमारा आधा अधूरा रहना ही हमारे अस्तित्व की विशेषता है परंतु इसके साथ ही स्वयं को प्रतिदिन बेहतर बनाने का प्रयास जारी रहता है। फिल्म में स्वप्न दृश्य दिखाना आसान है परंतु नाटक में यह करना अत्यंत कठिन है। गिरीश कर्नाड ने नाटक के लिए लगाए सेट पर दो लकड़ी की बनी गुड़ियाओं को रखा। पात्र गुड़ियाएं अभिनीत कर रही हैं। वे मंच पर सोए हुए व्यक्ति के स्वप्न का वर्णन करती हैं। यह गिरीश कर्नाड का जीनियस टच था। उन्होंने श्याम बेनेगल की फिल्म 'निशांत’ में एक स्कूल शिक्षक की भूमिका अभिनीत की, जिसकी पत्नी का शोषण जमींदार करता है। इस पात्र के हृदय में उठते असहाय विद्रोह को गिरीश कर्नाड ने बखूबी अभिनीत किया। उन्होंने भारतीय नाट्य शास्त्र का गहरा अध्ययन किया था और पश्चिम के रंगमंच से भी वे बखूबी परिचित थे। उन्होंने कालिदास और शूद्रक की रचनाओं का गहन अध्ययन किया था और दोनों को मिलाकर फिल्म 'उत्सव’ की पटकथा लिखी। इस फिल्म के लिए रेखा को अनुबंधित किया गया था और अमिताभ बच्चन अपनी स्वीकृति दे चुके थे परंतु पारिवारिक कारणों से शूटिंग के दिन ही उन्होंने अपनी असमर्थता अभिव्यक्त की। इसलिए शशि कपूर को यह भूमिका अभिनीत करनी पड़ी। इस फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने रचा और गीत-संवाद वसंत देव ने लिखे। फिल्म में दो नारी पात्र एक गीत गाती हैं, 'रात शुरू होती है आधी रात को, बेला महका आधी रात को, किसने नींद चुराई आधी रात को, किसने बंसी बजाई आधी रात को।' लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल इस गीत को लता मंगेशकर और आशा भोसले से गवाना चाहते थे। दोनों के बीच 'बहनापा’ गीत के 'स्थायी’ की तरह रहा है। परंतु आपस में तनाव भी अंतरों की तरह रहा है। अतः लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने एक दिन लता मंगेशकर को रिकॉर्ड किया और दूसरे दिन आशा भोसले से गवाया। बाद में लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल ने इस तरह मिक्सिंग की कि लगता है कि दोनों बहनों ने साथ ही गाया है। गौरतलब है कि 1928 में पृथ्वीराज कपूर ने एंडरसन नामक कंपनी में काम करते हुए शूद्रक के नाटक को अभिनीत किया था और दशकों बाद उनके पुत्र ने इसी नाटक से प्रेरित फिल्म 'उत्सव’ बनाई। 'उत्सव’ में कमल हासन, रीमा लागू, नीना गुप्ता, शेखर सुमन और अमजद खान ने भी अभिनय किया है। अमजद खान ने वात्स्यायन के पात्र को अभिनीत किया है। यह भी अजीब-सा तत्व है कि नारी-पुरुष अंतरंगता पर विश्व में पहली किताब रचने वाले वात्स्यायन एक दौर में उज्जैन आ बसे थे। सर रिचर्ड बर्टन नामक लेखक ने 1982 में लंदन में चंदा एकत्रित किया और वात्स्यायन की 'कामसूत्र’ का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया। जिस समय वात्स्यायन ग्रंथ लिख रहे थे, उसी समय चीन में भी इसी तरह का प्रयास हो रहा था। इससे भी अधिक गौरतलब यह है कि इन लेखकों के जन्म के पहले खजुराहो और कोणार्क में पत्थरों पर आकृतियां अंकित की गईं। किताबों को कई बार जलाया गया है। किताबें अजर-अमर हैं। बहरहाल, बहुमुखी प्रतिभा के धनी गिरीश कर्नाड का जन्म माथेरान में हुआ था। वे गणित व विज्ञान के जानकार थे तथा ऑक्सफोर्ड में भी भाषण दे चुके थे। ऑक्सफोर्ड प्रेस के एशिया विभाग में भी काम कर चुके थे। उन्हें पद्मभूषण से भी नवाजा गया था। भारत में हिंसा पर किया गया उनका शोध प्रकाशित होना चाहिए