बहू का सुख / गोवर्धन यादव
हमारे ही मुहल्ले में रह्ती है जशोदा, बडी ही विनम्र, बडी ही मेहनती, जाति से वह रजक समाज में आती है, एक दो घरों में काम करने के अलावा वह घर पर ही एक छॊटी-सी लाण्ड्री चलाती है, उसके दो बच्चे हैं जो अब जवानी के देहलीज पर क़दम रख चुके हैं, उसकी मदद करते रहते हैं, पति ड्रायवर है, शराब का शौकीन है, आए दिन धुत्त होकर पडा रहता है, कभी काम पर गया, कभी नहीं गया, इससे उसे कुछ फ़र्क नहीं पडता, खाने-पीने में मनपसंद चीजे जो मिल जाया करती थी, कभी किसी से उलझकर आया तो उसका गुस्सा अपनी पत्नी पर ज़रूर निकालता था, पत्नी समझाती कि बच्चे बडॆ हो गए हैं, शराब पीकर घर न आया करें, तो वह उखड जाता फिर उसे संभालना मुश्किल हो जाता, एक सेठ ने उसे अपनी गाडी चलाने के लिए नौकरी पर रख लिया, कुछ दिन तक तो ठीक रहा, एक दिन उसने सेठ से दो हज़ार रुपया कोई बहाना बनाकर ले लिया और उस दिन से न तो वह काम पर गया और न ही उसके पैसे ही लौटाया, पता नहीं किस बात का उसने टेंशन ले लिया और एक दिन फ़ांसी लगाकर अपनी जान दे दी, उस समय घर पर कोई नहीं था, जशोदा पर जैसे पहाड ही टूट पडा था, समय बड़े-बड़े ज़ख़्म भर देता है, जशोदा भी अब पिछली बातों को भुला-बिसरा कर अपने काम पर लौट पडी, उसे अब ऐसा भी लगने लगा था कि राजू की शादी कर देनी चाहिए, सो उसने एक सुन्दर-सी लडकी देखकर उसकी शादी कर दी, लडकी का पिता किसी मिनिस्टर के घर पर काम करता है, जशोदा कि सोच कुछ इस तरह बनी कि शायद वह उसके पढे-लिखे लडके की नौकरी लगवा देगा, यह ज़रूरी नहीं कि आदमी जो कुछ भी सोचे उसके अनुरुप उसके काम होते चले जाएंगे, जशोदा के साथ भी यही हुआ, जो कुछ उसने सोचा ठीक उससे उलट हो रहा था, बहू अपनी मर्जी चलाती, जब कोई काम उसे बतलाया जाता तो वह कहती कि उसके पिता के यहाँ तो उसने यह काम किया ही नहीं है, जब उसने आपने बेटे से इसकी शिकायत करना चाहा तो उसके बेटे ने पलटकर कह दिया कि माँ तू उसके पीछे क्यों पडी रहती है, एक बार जब बात बिगड जाती है तो फिर सुधारे नहीं सुधरती, एक दिन तो बहू ने करारा जवाब देते हुए उससे कहा कि अब की कुछ कहा तो अपने बाप से कहकर पूरे परिवार को जेल की हवा खिलवा कर चक्की पिसवाऊँगी, समय अपने हिसाब से चल रहा है और जशोदा भी, अब चुप रहने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा है उसके पास, वह दिन भर काम में खटती रहती है और अपने आपको जिलाए रखने के लिए रोटियाँ सेंकती है, कभी-कभी सोचती है कि काश उसने राजू की शादी न की होती तो यह दिन देखने को नहीं मिलते।