बहू बनी बेटी / सेवा सदन प्रसाद
लक्ष्मी अपने ससुराल में काफी खुश थी। पति तो प्यार करता ही था पर सास-श्वसुर भी उसे बेटी की तरह प्यार करते। दोनो पति-पत्नी काम पर चले जाते तो सास घर का सारा काम संभाल लेती। फिर लक्ष्मी ऑफिस से लौटती तब घर के सारे काम निपटा लेती। रात में सब एक साथ डिनर लेते। मनीष भी पत्नी के कामों में हाथ बटा देता। जीवन बहुत ही खुशहाल था।
तभी एक हादसा हो गया। मनीष जब ऑफिस से लौट रहा था तब एक तेज रफ्तार की लौरी ने पीछे से उसके स्कूटर को धक्का मारा। एक्सीडेंट इतना जर्बदस्त था कि मनीष का ऑन द स्पॉट डेथ हो गया। इस हादसे की जानकारी मिलते ही माँ-बाप को गहरा सदमा लगा और लक्ष्मी का तो रो-रो कर बुरा हाल हो गया। मनीष के पिता बस बुत बन गये। फिर सब मिलकर एक दूसरे को संभालने का प्रयास करने लगे।
धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी तभी लक्ष्मी के माता-पिता आ गये। लक्ष्मी की माँ ने यह प्रस्ताव रक्खा - अब मनीष तो रहा नहीं... इसकी पूरी जिंदगी पड़ी है... लक्ष्मी को अपने साथ ले जा रही हूँ। भविष्य में इसकी दूसरी शादी कर दूंगी। उसके इस प्रस्ताव को सुनकर दोनो चुप हो गये। फिर लक्ष्मी के श्वसुर ने सर हिलाकर अपनी सहमति प्रदान कर दी। परंतु लक्ष्मी खामोश नहीं रही। वह बेहिचक बोल पड़ी - मां, मैं अब वापस नहीं जाऊंगी... अब यही मेरा घर है। मनीष के बाद इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। आपके पास कम से कम आपका बेटा तो है। रही मेरे भविष्य की बात तो इनके विचार भी आपलोगो के विचारों से मिलते-जुलते है। सही वक्त आने पर मैं खुद निर्णय लूंगी।
बेटी की बात सुनकर माँ-बाप खामोश हो गये और सास-श्वसुर गर्व से मुस्कुरा पड़े। लगा उसका मनीष जीवित हो उठा है।