बाँसुरी का सपना / हेरमन हेस / विनोद दास
मुझे हाथी दाँत की बनी एक छोटी सी बाँसुरी सौंपते हुए मेरे पिता जी ने कहा,” यह लो और परदेश में इसे बजाकर जब तुम लोगों का दिल बहला रहे होंगे, तब अपने बूढ़े पिता को याद करना न भूलना। यह तुम्हारे लिए दुनिया देखने और ज्ञान अर्जित करने का सबसे उचित समय है। मैंने यह बाँसुरी तुम्हारे लिए इसलिए बनाई है, क्योंकि तुम और कोई काम पसन्द नहीं करते। हमेशा, बस, गाना चाहते हो। हमेशा उजास भरे ख़ुशनुमा गाना गाने के लिए चुनना, नहीं तो ईश्वर की दी हुई यह सौगात लानत बन जाएगी ।
मेरे पिता संगीत के बारे में कम जानते थे। वे विद्वान् थे । उनका ख़याल था कि इस छोटी सुन्दर बाँसुरी में मुझे, बस, फूँक ही तो मारनी है और सब हो जाएगा। मैं उनको धोखा देना नहीं चाहता था, लिहाज़ा मैंने उनका शुक्रिया अदा किया और जेब में बाँसुरी रखकर उनसे विदा ली।
अपनी घाटी से मेरी जान पहचान सिर्फ़ उतनी दूर तक थी, जहाँ एक बड़ी पनचक्की थी। उसके आगे मेरी दुनिया शुरू हुई, जिसे देखकर मेरा मन बेहद खिल उठा । उड़ते-उड़ते थक चुकी एक मक्खी मेरी बाँह पर आकर बैठ गई। मैंने उसे अपने साथ ले लिया, ताकि बाद मैं आराम करने लिए जब मैं पहले पड़ाव पर पहुँचू तो मेरा कुशलक्षेम लेकर घर वापस लौटने के लिए एक हरकारा मौजूद रह। . रास्ते भर जंगल और वादियाँ मेरा साथ देती रहीं । नदी मेरे क़रीब से प्रमुदित बहती रही। मैंने देखा कि दुनिया मेरे घर से कुछ अलग है। दरख़्त और गुल, अनाजों की बालियाँ और झाड़ियाँ मुझसे गुफ़्तगू करती रहीं। उनके साथ मैंने उनके तराने गाए । उन्होंने मुझे अपना समझा। गाने से मेरी मक्खी जग गई। वह रेंगते हुए मेरे कन्धे पर सरक आई।फिर उड़ी और अपनी गहरी मीठी भिनभिन की धुन के साथ मेरे ऊपर दो चक्कर लगाए। फिर एक तीर की तरह सीधे घर की तरफ चली गई।
इस समय एक कमसिन लड़की अपनी टोकरी में लकड़ियाँ लिए हुए हौले-हौले चलती हुई जंगल से निकली, जिसने अपने सुनहरे भूरे बालों पर पुआल की एक गवँई हैट पहन रखी थी ।
“नमस्ते ! आप कहाँ जा रही हैं ? मैंने उससे पूछा।
“मैं खेतिहरों के लिए खाना ले जा रही हूँ । “ उसने मेरे साथ-साथ मेरी बग़ल में चलते हुए उत्तर दिया।
“आप कहाँ जा रहे हैं” फिर उसने पूछा ।
"मेरे पिता जी ने मुझे इस दुनिया को देखने के लिए भेजा है। वे चाहते हैं कि मैं बाँसुरी पर संगीत बजाऊँ। लेकिन मैं तो इसे बजाना ही नहीं जानता। इसके लिए मुझे पहले बाँसुरी बजाना सीखना होगा।"
“यह सब तो ठीक है। लेकिन आप दरअसल और क्या कर सकते हैं ? आख़िरकार हर कोई कुछ न कुछ करने लायक होता है।”
“कुछ ख़ास तो नहीं। लेकिन मैं गाना गा सकता हूँ।”
“किस तरह के गाने आप गाते हैं?”
“बताऊँ ! सभी क़िस्म के गाने । सुबह के लिए, शाम के लिए, दरख़्तों के लिए, जानवरों के लिए, फूलों के लिए गाता हूँ। मसलन, मैं जंगल से आती एक कमसिन लडकी के लिए एक सुन्दर गीत गा सकता हूँ, जो खेतिहरों के लिए खाना ले जा रही है।”
“क्या सच में ऐसा कर सकते हैं ? तब यह गाना गाइये।"
“ठीक है.लेकिन आपका नाम क्या है ?
“ब्रिगीती”
फिर मैंने पुआल का हैट पहने सुंदर ब्रिगीत्ती के बारे में एक गाना गाया कि उसके टोकरी में क्या था,किस तरह सभी फूल उसकी तरफ़ निहार रहे थे और किस तरह बगीचे की बाड़ पर लटकी नीली लताएँ उसे छू रही थीं.इस तरह सभी दूसरे ब्यौरे गाने में मौजूद थे.उसने बहुत ध्यान से सुना और कहा कि अच्छा है.जब मैंने उससे कहा कि मुझे भूख लगी है तो उसने अपनी टोकरी का ढक्कन खोला और रोटी का एक टुकड़ा दिया.मैंने रोटी का एक कतरा दांतों से काटा और उसके साथ तेज़ी से चलने लगा।
उसने कहा,”कुछ खाते समय दौड़कर नहीं चलते.एक काम पूरा होने के बाद दूसरा करना चाहिए.फिर हम घास पर बैठ गये.मैंने रोटी खायी.वह अपने भूरे हाथ अपने घुटनों को घेर कर बैठ गयी और मुझे निहारती रही.
जब मैं खा चुका तो उसने पूछा, “क्या आप मेरे लिए कुछ और सुनाना चाहेंगे.”
“हाँ ! जरूर ! लेकिन यह किस पर हो"
“उस लड़की पर जिसका महबूब भाग गया हो और वह उदास हो.”
“नहीं,मैं नहीं गा सकता.मुझे नहीं मालूम कि यह किस तरह होगा.वैसे भी हमें दुखी नहीं होना चाहिए.मेरे पिता जी ने कहा है कि मुझे सिर्फ़ उजास भरे खुशनुमा तराने गाने है.मैं तुम्हारे लिए कोयल या तितलियों पर तराना गाऊंगा."
“अरे ! क्या तुम प्यार के बारे में कुछ नहीं जानते? "उसने पूछा.
“प्यार के बारे में? हाँ क्यों नहीं,जानता हूँ न ! यह दुनिया की सबसे खूबसूरत शै है”
मैं फ़ौरन शुरू हो गया और सूरज की उस किरण के बारे में गाने लगा जो खिले हुए लाल पोस्त के फूल के मुहब्बत में पड़ गया था और किस तरह उनके साथ खेल खेलकर खुशी से भर गया था.मैंने उस छोटी गानेवाली चिड़िया के बारे में गाया जो चिड़े का इंतज़ार करती है और जब चिड़ा आता है तो उससे डरकर उड़ जाती है.फिर मैंने उस भूरी आँख वाली लड़की और लड़के के बारे में गाना गाया जो उसके साथ चलते हुए गाता है और ईनाम में उसे एक रोटी का टुकड़ा मिलता है लेकिन वह और रोटी नहीं चाहता,वह उस लड़की से एक चुंबन चाहता है और उसकी भूरी आँखों में डूबकर तब तक गाना गाना चाहता है जब तक उसके होंठों पर मुस्कराहट तैरने न लगे और अपने होंठ रखकर उसके मुंह को बंद न कर दे.
इसके बाद ब्रिगीत्ती मुझ पर झुक गयी और अपने होंठों से मेरे मुंह को बंद कर दिया और फिर उसे दुबारा खोल दिया.मैंने करीब से उसकी भूरी सुनहरी पुतलियों में झाँका जहाँ मुझे अपना अक्स दिखाई दिया और वादियों में खिले हुए कुछ सफ़ेद फूलों की झलक दिखाई दी.
“यह दुनिया कितनी खूबसूरत है ! मेरे पिता जी सही थे.अब मैं तुम्हारी टोकरी को तुम्हारे आदमियों तक पहुँचाने में मदद करूंगा.”मैंने कहा.
मैंने उसकी टोकरी उठायी और हम चलने लगे.उसकी पदचाप मेरे पदचाप की साथ गूँज रही थी.उसका उल्लास मेरे उल्लास से मेल खा रहा था.जंगल धीरे-धीरे धीरज के साथ ऊँचे पर्वतों से कानाफूसी कर रही थीं.इतने आनंद के साथ मैं कभी नहीं घूमा था.कुछ समय के लिए प्रफुल्ल भाव से मैं तब तक गाता रहा जब तक गाने की अपार धुनों के कारण मुझे रुकना नहीं पड़ गया.वादियों-पर्वतों,घास और दरख्तों,नदियों और झाड़ियों से बेहिसाब गाने सुनायी दे रहे थे. तमाम कानाफूसी और कहानियाँ भी.
सहसा मुझे ख्याल आया कि यदि मैं दुनिया के हजारों तराने घास और फूलों के लिए,लोगों और घटाओं के लिए या यूँ कहें की हर चीज़ के लिए, हरे भरे जंगलों के लिए, चीड़ वनों के लिए,सभी पशुओं के लिए,सुदूर समुद्रों और पर्वतों के लिए,चाँद-तारों के लिए साथ-साथ समझकर गा सकता हूँ और ये सभी एक साथ मेरे भीतर गूँज सकते हैं और गा सकते हैं तब मैं सर्व शक्तिमान ईश्वर बन जाऊंगा और मेरा हर नया गीत अपना स्थान आकाश के एक सितारे की तरह बना लेगा.
जब मैं इन ख्यालों में अपने भीतर पूरी तरह अचरज से भरा उलझा हुआ था क्योंकि इसके पहले ऐसी कोई बात मेरे दिमाग में नहीं आयी थी कि अचानक ब्रिगीती के कदम रुक गये और उसने टोकरी की मुठिया पकड़कर मुझे पीछे खींचा.
“अब मुझे इस रास्ते से जाना होगा.हमारे लोग इधर खेत में हैं ” उसने कहा.फिर उसने पूछा,”क्या तुम मेरे साथ आओगे”
“नहीं,मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकूंगा.मुझे दुनिया देखने जाना होगा.ब्रिगीती! रोटी और चुम्बन के लिए शुक्रिया.मेरे ख्यालों में तुम रहोगी.”
उसने अपने खाने की टोकरी की और आगे बढ़कर अपनी भूरी छायावाली आँखें एक बार फिर मेरे ऊपर झुका दीं.उसके होंठ मेरे होंठो से जुड़ गये.उसका चुम्बन इतना शीरी और दिलकश था कि मैं उस बेपनाह खुशी के बीच लगभग उदास हो गया.फिर मैंने हड़बड़ी में अलविदा कहकर जल्दी से सड़क की तरफ मुड़ गया.
वह लड़की हौले-हौले पर्वत पर चढ़ती रही.जंगल के आख़िरी सिरे पर बीच के दरख्त की लटकी हुई लताओं के नीचे वह क्षण भर रुकी.मेरी ओर ताका.जब मैंने अपने सिर पर पहने हैट को हिलाकर उसे इशारा किया,उसने एक बार अपना सिर हिलाया और उस बीच दरख्त की छाया में एक खामोश तस्वीर की तरह गायब हो गयी.
हालांकि मैं अपने ख्यालों में खोया अपने रास्ते पर तब तक चलता रहा जब तक कि एक कोने पर जाकर सड़क मुड़ नहीं गयी.
वहां एक कारखाना था.कारखाने से सटी पानी में एक नाव थी जिसमें एक अकेला आदमी ऐसे बैठा था गोया मेरे लिए इंतज़ार कर रहा हो.चूंकि जैसे ही मैंने उसके हैट को छूकर नाव पर चढ़ा,वह चल पड़ी और बीच धार में तैरने लगी.नाव के बीच में मैं और पतवार पर तना हुआ वह बैठा था.जब मैंने पूछा कि हम कहाँ जा रहे हैं,उसने अपना सिर ऊपर उठाया और आड़ लेते हुए भूरी आँखों से मुझे घूरने लगा.
“जहां आप चाहें.समुद्र की धारा के बीच या बड़े शहरों में,यह आपकी इच्छा पर है.ये सब मेरी हैं.”उसने धीमे लहज़े में कहा.
“ये सब आपकी हैं ? फिर तो आप राजा हैं?"
“शायद ! मुझे लगता है कि आप कवि हैं.तब हम जब तक सफ़र में हैं,मेरे लिए गाइये” उसने कहा.
मैंने अपने आपको समेटा.कुछ उस गंभीर भूरे आदमी के कारण और कुछ नदी में बेहद तेज़ी और खामोशी से नाव के चलने के कारण मेरे भीतर भय बैठ गया था.मैंने उस नदी के लिए तराना गाया जो नाव को ले जा रही थी जिसमें सूरज दीखता था और जो पथरीले किनारों पर उफनती हुई अपने सफ़र को पूरा करने पर खुश दिखती है.
नाव पर बैठे आदमी का चेहरा भावहीन था.जब मैंने गाना बंद किया तो वह एक खामोश स्वप्नजीवी की तरह चुप रहा.फिर एकाएक मुझे चकित करते हुए खुद गाना गाने लगा.उसने भी नदी पर गाना गाया.उस नदी के बारे में जो वादियों से होकर गुज़रती है.उसका गाना मेरे गाने से ज्यादा सुंदर और असरदार था.लेकिन उसमें सब कुछ अलग लग रहा था.
जिस नदी के बारे में वह गाना गा रहा था,वह एक रंगबाज की तरह उछलती-कूदती पर्वतों से नीचे उतरती हुई स्याह और उग्र थी और कारखानों और मेहराबदार पुलों की बढ़ती संख्या के खिलाफ़ दांत पीसती हुई लड़ती थी.यह नदी हर उस नाव से नफ़रत करती थी जिसे उसे ले जाना होता था.इस नदी की लहरों में और इसकी लंबी हरी जल वनस्पतियों में हंसती हुई सफ़ेद लाशें झूले की तरह धीरे-धीरे हिलती रहती थीं.
इन सब बातों से मेरा मन जरा भी खुश नहीं हुआ जबकि इसकी ध्वनि इतनी सुंदर और रहस्यमयी थी कि मैं पूरी तरह चकरा गया था और मुश्किल में फंसकर खामोश हो गया था.यदि यह रहस्यमय चतुर बूढ़ा गायक अपनी मूक आवाज़ में जो गा रहा था,अगर वह सच है,तो मेरे सभी गाने न केवल बकवास हैं बल्कि बच्चों के खेल की तरह बेवकूफ़ी भरे भी हैं.फिर तो दुनिया की सबसे निचली सतह ईश्वर के अपने दिल की तरह न तो अच्छी है और न ही चमकीली बल्कि हताश,बुरी और गंभीर है और जंगल में जब पत्तियों की सरसराहट सुनायी देती है तो वह खुशी की नहीं,दर्द की होती है.
हम नदी की सफ़र पर चलते रहे.परछाइयां लंबी हो गयीं.हर बार जब मैं गाता तो अपने तई कम मुतमईन होता और मेरी आवाज़ कमजोर होती जाती.उधर वह अजनबी गायक हर दफ़ा मेरे जवाब में जब कोई गाना गाता तो मुझे दुनिया और ज़्यादा गूढ़ और विषादपूर्ण लगती. यही नहीं,मुझे और अधिक पीड़ित और दुखी बना देती.
मेरी आत्मा कलपती रही और फूलों से भरे किनारे पर या सुंदर ब्रिगीती के साथ न रहने के लिए मैं पछताता रहाख़ुद को तसल्ली देने के लिए इस उतरती सांझ में मैं दुबारा तेज़ आवाज़ में गाने लगा.मैंने सांझ की लालिमा के बीच ब्रिगीती और उसके चुंबन के तराने गाये.
फिर उजास होने पर मैं खामोश हो गया.फिर पतवार पर बैठा आदमी गाने लगा.उसने भी प्यार और प्यार की खुशियों के गीत गाये.उसने उसकी भूरी और नीली आँखों और उसके गीले लाल-लाल होंठों के गीत गाये.आकाश से उतरते अँधेरे के बीच उसका गाना खूबसूरत और मन को आंदोलित करनेवाला था.लेकिन उसके गाने के प्यार में भी दुःख और तकलीफ थी.एक भयावह रहस्य भी जिसे इंसान अपनी तकलीफ़ में पागलों की तरह लुहुलुहान होकर और अपने को तकलीफ़ में डालकर खोजता है और एक दूसरे की हत्या भी करता है.
गाना सुनकर मैं ऐसा थका और क्लांत महसूस करने लगा गोया मैं पिछले बहुत सालों से सफ़र पर हूँ और सिर्फ दुःख तथा तकलीफ से गुज़रा हूँ.उस अजनबी से आती दुःख और वेदना के हल्की सिहरन को मैं लगातार अपने दिल में महसूस कर रहा था.
“तब तो ज़िन्दगी सबसे बड़ी और उम्दा चीज़ नहीं,बल्कि मौत है.दुखों के महाराज मैं आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि मेरे लिए मौत का एक गीत गाइये” आखिरकार कडुवाहट भरी आवाज़ में मैंने चीखते हुए कहा.
तब पतवार चलाने वाले ने मौत का गीत गाया.उसका गाना और भी ज्यादा सुन्दर था.इसके पहले मैंने ऐसा गाना कभी नहीं सुना था.हालाँकि मौत भी सबसे बड़ी और उम्दा चीज़ नहीं थी.यहाँ तक कि मौत में भी आराम नहीं था.मौत ज़िन्दगी थी और ज़िन्दगी मौत थी.वे दोनों एक दूसरे से प्यार के पागलपन की लड़ाई में शाश्वत रूप से गुंथे हुए थे.यह फैसलाकून लफ्ज़ था और संसार का यही मतलब था.फिर एक नूर की किरण आयी जो सभी तकलीफ़ों को महिमामंडित कर सकती थी.फिर एक छाया आयी जिसने सभी खुशियों और ख़ूबसूरती को तंग करके अँधेरे से ढंक दिया था.लेकिन इस अँधेरे में खुशी सबसे ज्यादा दिलोजान से और ख़ूबसूरती से जलती रही और इस रात में प्यार का नूर सबसे गहरा था.
मैं उसे सुनकर पूरी तरह से जड़ हो गया था.इस अजनबी आदमी से अपने को बचाने की अब कोई इच्छा नहीं बची थी.उसकी शांत नजर मुझ पर टिकी हुई थी जिसमें एक ख़ास किस्म की उदास करुणा थी.उसकी भूरी आँखें दुःख और दुनिया की ख़ूबसूरती से भरी हुई थीं.मेरी तरफ देखकर उसने मुस्कान फेंकी.फिर मैंने हिम्मत जुटायी और तकलीफ़ से भरकर चिरौरी की,”मुझे वापस ले चलिए.यहाँ मुझे अँधेरें में डर लग रहा है.मैं वापस लौटना चाहता हूँ और वहाँ जाना जाता हूँ जहाँ मुझे ब्रिगीती मिल सके या घर जाना चाहता हूँ जहाँ मेरे पिता हैं.”
वह आदमी उठ खड़ा हुआ और उसने अंधेरी रात की ओर इशारा किया.उसके दृढ़ चेहरे पर लालटेन की रोशनी पड़ रही थी.”वापसी का कोई रास्ता नहीं है.”उसने उसने गंभीर और विनम्र आवाज़ में कहा.फिर रुककर उसने कहा”अगर कोई दुनिया की थाह लेना चाहता है,उसे आगे बढ़ते जाना चाहिए और उस भूरी आँखों वाली लड़की से तुम सर्वोत्कृष्ट पहले ही ले चुके हो और अब तुम जितना उससे दूर रहोगे,तुम्हारे लिए उतना ही बेहतर और अच्छा होगा.लेकिन कोई बात नहीं.नाव ले जाओ जहाँ तुम्हारी मर्जी हो.मैं पतवार चलाने की ज़गह तुमको दे दूंगा ”
मैं गहरी निराशा में था.लेकिन फिर भी मुझे लगा कि वह सही है.पूरे तड़प के साथ मैंने ब्रिगीती,अपने घर और अपनी हर उन सब चीजों के बारे में सोचा जो हाल तक मेरे करीब थीं,रोशन थीं तथा मेरी अपनी थीं जिन्हें मैं खो चुका था.लेकिन अब मुझे अजनबी और पतवार खेनेवाले की ज़गह लेनी चाहिए.मुझे यह करना होगा.
लिहाज़ा खामोशी से उठकर मैंने नाविक की सीट के पास की तरफ कदम बढ़ाये और वह आदमी शांति के साथ मेरी और बढ़ा.मेरे पास से गुजरते हुए उसकी आँखे मेरे चेहरे पर टिकी रहीं.फिर उसने मुझे लालटेन थमा दी.
लेकिन जब पतवार खेनेवाली ज़गह पर मैं बैठ गया और लालटेन अपने बगल में रख ली तो मैं नाव में अकेला था.मैं यह देखकर बुरी तरह काँप गया कि वह आदमी गायब हो गया.हालांकि मुझे कोई अचरज नहीं हुआ.मुझे इसका पूर्वानुमान था.मुझे लगा कि मटरगश्ती के खूबसूरत दिन,ब्रिगीती और मेरे पिता जी,मेरा घर देश आदि मात्र सपने थे.मैं बूढा और दुखी था और बहुत पहले से पानी के सफ़र में था और हमेशा के लिए रात में नदी का सफ़र करता रहूंगा. मैं जानता था कि मुझे उस आदमी को पुकारना नहीं है और इस सच की अनुभूति से मैं ठण्ड से सिहर उठा.
अपने पूर्वानुमान की तस्दीक के लिए मैं पानी की तरफ झुका और लालटेन ऊपर उठायी तब मुझे स्याह पानी में अपनी ओर एक चेहरा ताकता हुआ मिला.एक ऐसा चेहरा जिसके नैन-नक्श तीखे और गंभीर थे,भूरी आँखें थीं.एक पुराना जाना-पहचाना चेहरा और यह मैं था.
और तब से मैं पीछे कभी नहीं लौटा.रात में गहरे स्याह पानी पर सफ़र करता ही चला जा रहा हूँ.
डेन्वेर लिण्डले के अँग्रेज़ी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद : विनोद दास