बांग्ला वचनाम्रित / महेन्द्र नाथ गुप्त / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: जनवरी-मार्च 2012 |
स्रीरामक्रिस्ण परमहंस रै वचनां अर उपदेसां रो सै सूं पैली संकलन अर सम्पादन वांरा गिरस्त भगत 'श्री म' (स्री महेन्द्र नाथ गुप्त) कर्यो हो। बांग्ला में इणरो नांव 'श्रीरामकृष्ण कथामृत' है। इणरो हिन्दी उल्थो महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निरालाÓ कर्यो। चावा कवि-कथाकार मालचंद तिवाड़ी आं दिनां निराला जी रै 'रामकृष्ण वचनामृत' रो मायड़भाषा राजस्थानी में उल्थो करण रो सरावणजोग काम कर रैया है। उणरै तीजै भाग रै तीजै पाठ रै तीजा दरसण रौ पैलो अंस पाठकां री निजर है।
-सम्पादक
सर्वभूतस्य मात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन:।। (गीता, 6/29)
नरेन्द्र, भवनाथ अर मास्टर
मास्टर वां दिनां वराह नगर में आपरी बैन रै अठी ठैर्योड़ा छा। जद सूं स्रीरामक्रिस्ण रा दरसण व्हिया तद सूं मन में आखै वगत वांरौ ई चिन्तण चाल रैयौ छै। जांणै आंख्यां रै साम्हीं हरमेस वौ ई आनन्द मगन रूप निजर आवतौ व्है, कानां में वा ई इमरतछली वाणी सुणीजती व्है। मास्टर सोचण लाग्या, ओ निरधन विरामण आं गभीर आध्यात्मिक ततवां नै कियां खोज काढ्या, किण तरै वांरौ ग्यान हाथ बसू कर्यौ। इण सूं पैली वै इतरी सरलता सागै आं गूढ ततवां नै समझावता थकां कदी किणी नै कोनी देख्यौ छौ। मास्टर रात-दिन ओ ई विचार करण लागा कै कद वांरै पाखती जाऊं अर वांनै देखूं।देखतां-देखतां ई अदीतवार (5 मार्च) आयग्यौ। वराहनगर रा नेपालनाथू भेळै मै दुपारै रा तीन-च्यार बज्यां रै लगै-टगै नै दाखिणेसर में आय पूगा। देख्यौ, स्री रामक्रिस्ण आपरै कमरै मांय छोटै तखतै रै उपरां विरजमांन छै। कमरौ भगतां सूं ठसाठस भर्यौ थकौ छै। अदीतवार री वजै सूं मौकौ लाग्यां कैई भगत दरसणां सारू आया छै। उण वगत मास्टर री किणी रै सागै जांण कोनी व्ही छी; वै भीड़ में अेकै कांनी जायनै बैठग्या। देख्यौ, स्रीरामक्रिस्ण भगतां रै सागै राजी-मुंहडै व्हैयनै बात-बंतळ कर रैया छै।
अेक उगणीस बरस रै छोरै साम्हीं देखता थका स्रीरामक्रिस्ण बडै मजै सूं बात-बंतळ कर रैया छै। छोरै रौ नाम छै नरेन्द्र*। अजेस अै कॉलेज में भणै छै अर साधारण बिरमसमाज में कदी-कदी जावै छै। आं री आंख्यां पांणीदार अर बातां जोसीली छै। चेरै माथै भगतीभाव छै।
मास्टर रै अंदाजै सूं ठा पड़्यौ कै विसय-झिल्या संसार्यां री बातां चाल रैयी छै। अै लोगड़ा ईसरभगत, धरमपरायण मिनखां री निन्द्या कर्या करै छै। फेरूं संसार में कितरा दुरजण मिनख छै, वांरै सागै किण तरै बरताव करणौ चाइजै- अै सैंग बातां व्हैण लागगी।
स्रीरामक्रिस्ण- कियां नरेन्द्र, बता तौ थारौ कांई कैवणौ छै। संसारी मिनख तौ कांई ठा कांई-कांई कैवै छै। पण चेतौ रेवै कै हाथी जद आवैै छै, तद उणरै लारै-लारै कितरा ई जिनावर कोजै ढाळै कूका-रोळौ करै छै। पण हाथी पलटनै देखै तकात कोनी। थारी कोई निन्द्या करै तौ थूं कांई समझैला?
नरेन्द्र- म्हैं तौ आ समझूलां कै कुत्ता भूसै छै।
स्रीरामक्रिस्ण (हंसी भेळै)- नीं अठी तांई नीं। (सगळां री हंसी) सरवभूतां मांय परमात्मा रौ ई वासौ छै। पण मेळ-मिळाप करणौ व्है तौ भला मिनखां सूं ई करणौ चाइजै, भूंडा मिनखां सूं अलायदौ ई रैवणौ चाइजै। बाघ में ई परमात्मा रौ वास छै, इण वजै सूं कांई बाघ नैं ई छाती रै लगावणौ चाइजै? (लोग हंस दीन्या) जे कैवौ कै बाघ ई तौ नारायण छै, इण सारू क्यूं भाजां? इणरौ जवाब ओ छै कै जिका लोग कैवै छै कै भाजो, वै भी तौ नारायण छै, वांरी बात क्यूं नीं मानो?
अेक कथा सुणौ। किणी जंगळ में अेक महात्मा छा। वांरा कैई चेला छा। अेक दिन वै आपरै चेलां नै सीख दीवी कै सरवभूतां मांय नारायण रौ वासौ छै, आ जाणनै सगळां नै निवण करौ। अेक दिन अेक चेलौ हवन सारू जंगळ में लकड़्यां चुगण नैं गियौ। उण वगत जंगळ में ओ रोळौ माच्योड़ौ छौ कै कोई कठी व्है तौ भाजै,मदवौ हाथी जावै छै। सगळा भाजग्या, पण चेलौ कोनी भाज्यौ। उणनै तौ ओ विसवास छौ कै हाथी ई नारायण छै, इण सांतर भाजण रौ कांई कांम? वौ खड़्यौ ई रैयौ। हाथी नैं निवण कर्या अर उणरी अस्तुती करण लाग्यौ। अठीनै मावत रै रोळौ मचायां ई कै भाज, वौ पग कोनी उठाया। पाखती पूगनै हाथी उणनैं सूंड में लपेटनै अेकै पासी लगाय दीन्यौ अर आपरै मारग लागौ। चेलौ घायल व्हैयग्यौ अर बेहोस पड़्यौ रैयौ।
अै समचार गुरुजी रै कानां तांई पूग्या। वै दूजा चेलां नैं सागै लेयनै वठी गिया अर उणनैं आसरम में उठाय लाया। वठी उणरी दवा-दारू करी, तद वौ होस में आयौ। कैई ताळ पछै किणी उणनैं पूछ्यौ, हाथी नैं आवतौ सुणनै थूं वठी सूं हट क्यूं नीं गियो? वौ कैयौ कै गुरुजी ई तौ कैयौ छौ कै जीव, जन्तु आद सै में परमात्मा रौ ई वासौ छै, नारायण ई सै कीं व्हिया छै, इणी वजै सूं हाथी नारायण नैं आवता देख म्हैं कोनी भाज्यौ। गुरुजी कनै ई छा। वै कैयौ- बेटा, हाथी नारायण आवै छा, ठीक बात छै, पण मावत नारायण तौ थनै बरज्यौ छौ। जे सगळा ई नारायण छै तौ उण मावत री बात माथै विसवास क्यूं कोनी कर्यौ मावत नारायण री ई बात मांन लेवणी चाईजै छी। (सगळा हंस दीन्यौ।)