बाइसिकिल और बेयरा / लफ़्टंट पिगसन की डायरी / बेढब बनारसी
मैं अब साधारण हिन्दुस्तानी समझ लेता हूँ और छोटे-छोटे वाक्य बोल भी लेता हूँ। हिन्दुस्तानी सीख लेने से एक लाभ यह हो गया कि नौकरों से काम लेना तो सरल हो गया, एक और बात है, मैं पहले नहीं जानता था कि यहाँ नौकरों को गाली देना आवश्यक है।
परसों मैंने बेयरा को मैसर्स 'लूटर्स एंड को.' के यहाँ कुछ सामान के लिये भेजा। वह तीन घंटे के बाद लौटा। मैंने पूछा - 'इस समय क्यों आये?' उसने कहा - 'देर हो गयी।' मैंने पूछा - 'क्यों देर हो गयी?' वह बोला - 'बाइसिकिल टूट गयी।' मैंने पूछा - 'बाइसिकिल कैसे टूट गयी?' वह बोला - 'साहब - एक साहब मोटर चलाते थे। उन्होंने जान-बूझकर मेरी बाइसिकिल से लड़ा दी। मैंने बहुत हटाने की चेष्टा की, परन्तु जिस ओर मैं साइकिल ले जाता था उसी ओर वह मोटर लाते थे। मैंने समझा इनका मतलब यह है कि मैं चाहे जहाँ भी जाऊँ - मुझे दबाने के लिये इन्होंने कसम खा ली है। इसलिये मैंने साइकिल छोड़ दी और अपनी जान बचा ली। साइकिल तो हुजूर, बन सकती है या नई आ सकती है। मैं मर जाता तो आपकी खिदमत कौन करता? बस, यही लालच था कि आपकी खिदमत कुछ दिन और करूँ, नहीं तो जिंदगी से कोई और लगाव नहीं है। खुदा हुजूर को सलामत रखे, मैं बाल-बाल बच गया। साइकिल तो जरा-सी टूट गयी।' मैंने पूछा - 'क्या टूटा है?' बोला - 'जरा-सा पहिया टूट गया है।' 'देखूँ।' वह दो पहिये उठा लाया या यह कहना चाहिये कि वह वस्तुतः वह उठा लाया जो पहले पहिये थे। उसमें एक इस समय षट्कोण के रूप में था और दूसरा मानो गोरखधंधे को कोई खेल हो। मैंने पूछा - 'यह जरा-सा टूटा है?' वह बोला - 'हुजूर, मैंने ऐसी बाइसिकिल देखी है जो मोटर से दबकर बिल्कुल चकनाचूर हो गयी है। जिसकी एक-एक तीली सौ-सौ सूई के टुकड़ों में बदल गयी है। और हुजूर, देखिये, आपके लिये जो बोतलें ला रहा था वह सब सही-सलामत हैं। खुदा की रहमत देखिये। खुदा आप पर बहुत मेहरबान है। आप बहुत जल्दी जनरल हो जायेंगे।'
बाइसिकिल सरकारी थी इसलिये उसकी सूचना कर्नल साहब को देनी आवश्यक थी। मैंने जाकर कर्नल साहब को सब हाल बताया। उन्होंने पूछा कि तुमने क्या किया। मैं बोला - 'मैं क्या करता? मैं तो बाइसिकिल बनाना नहीं जानता।' कर्नल ने कहा - 'यह नहीं, बेयरा को क्या किया?'
मैं तो जानता नहीं था कि क्या करना होता है। कर्नल ने कहा - 'देखो, यदि तुम्हें यहाँ अपनी जान नहीं देनी है, तो दो बातें याद रखो। नौकरों को जब कुछ कहो तो गालियाँ देकर। और वह कुछ गलती करें तो दस-बीस गालियाँ दो। और अगर उससे भी बड़ी गलती करें तो ठोकर लगानी चाहिये। एक, दो या तीन। उस समय जितनी तुममें शक्ति हो उसके अनुसार।'
मैंने कहा - 'मुझे तो गालियाँ आती नहीं। आप बतायें तो जरा मैं नोट कर लूँ!' और मैंने पेंसिल और नोटबुक सँभाली।
कर्नल शूमेकर ने कहा - 'हाँ, इसका जानना बहुत आवश्यक है। लिख लो, देखो - आरम्भ करो 'पाजी' से; फिर कहो - 'गधा; फिर सूअर, और फिर सूअर का बच्चा। इसके बीच-बीच डैम, ब्लडी, इत्यादि कहने से रोब और बढ़ जायेगा। और भी गालियाँ हैं, मगर वह लफ्टंट के लिये नहीं हैं। उन्हें कप्तान और कर्नल ही दे सकते हैं।'
मैंने दो दिनों में उन गालियों को याद कर लिया। मैंने इन्हें रट लिया।