बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / क्या है धर्म? / सत्य शील अग्रवाल

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धर्म का मूल अर्थ है धारण करना, अर्थात जो कुछ हम खाते-पीते हैं, पहनते हैं, रहते हैं, समाज से, परिवार से व्यवहार करते हैं, देश के लिए विचार रखते हैं, सब कुछ धर्म है। मानव सृष्टि के आरम्भ में जब मानव ने विकास करना शुरू किया, सोचना-समझना शुरू किया, मानव को समाज के रूप में रहने का ज्ञान मिला, समाज को व्यवस्थित करने की महती आवश्यकता थी। शिक्षा के प्रचार के अभाव में, प्रसार माध्यमों के अभाव में, जनता तक संदेश पहुंचाने का माध्यम अध्यात्म को चुना गया जो विभिन्न धर्मों के नाम से जाने गये। जहाँ कुछ अच्छाईयाँ होती हैं वहाँ कुछ बुराइयाँ भी जन्म ले लेती हैं। इसी प्रकार विभिन्न धर्मों ने जहाँ समाज को व्यवस्था, शान्ति, भाई-चारा प्रदान किया, धार्मिक कट्टरता ने आतंकवाद के रूप में श्राप भी दिया जिसका दंश आज पूरा विश्व झेल रहा है।

अब समय आ गया है या तो विश्व में धार्मिक कट्टरपन रहेगा अथवा मानव विकास। धार्मिक कट्टरता मानव विकास को पाषाण युग की ओर धकेल देगी।अतः धार्मिक कट्टरता को समाप्त होना ही होगा, यह अनिश्चित है। शिक्षा के बढ़ते प्रभाव और विकास से उत्पन्न सम्पन्नता धार्मिकता और ईश्वरीय सत्ता का अन्त कर देगी। रह जायेगा सिर्फ ‘इंसानियत का धर्म’ अर्थात् सहिष्णुता, विशालता, शालीनता, सभ्यता द्वारा संसार संचालित होगा। धार्मिक आस्था एक अतीत का विषय रह जायेगी।

-लेखक