बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म / लेखक की कलम से / सत्य शील अग्रवाल

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आम मानव जीवन किसी न किसी धर्म द्वारा संचालित रहा है। उसके द्वारा नियंत्रित रहा है। बदलते जीवन मूल्यों, जीवन शैली ने इंसान को परम्परागत चले आ रहे रीति-रिवाज, मान्यता, विश्वास को नये सिरे से वर्तमान संदर्भ में सोचने को मजबूर कर दिया है जिस कारण एक असाधारण बदलाव की लहर भी चल पड़ी है। इसी परिवर्तन की लहर को तर्क की कसौटी पर कसने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। यह विश्लेषण किसी धर्म की अवमानना के उद्देश्य से नहीं किया गया है। लेखक के लिए सभी धर्म सम्माननीय हैं।

आस्था और तर्क का कोई सम्बन्ध नहीं होता। धार्मिक आस्था सिर्फ एक विश्वास है और विश्वास किसी तर्क द्वारा परिभाषित नहीं होता। परन्तु यह भी सत्य है प्रत्येक धर्म का मूल उद्देश्य समाज का कल्याण रहा है ताकि मानव को इंसानियत के दायरे में रखकर समाज को मानव जीवन के अनुकूल बनाया जा सके। परन्तु जब

यही विश्वास अन्धविश्वास का रूप लेकर मानवता का तिरस्कार करने लगे, इंसान को इंसान के प्रति हिंसा के लिए प्रेरित करने लगे, इंसान के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात करने लगे तो यह विश्वास ही अभिशाप बन जाता है। धर्म अपने मूल उद्देश्य से भटक जाता है। लेखक के विचार से इंसानियत का धर्म सभी धर्मों का मूल उद्देश्य है। सभी धर्मों का सार है, आज के वैश्वीकृत युग की आवश्यकता है एवं पूरे विश्व में मान्य हैं अतः धार्मिक विश्वास से भी अधिक महत्वपूर्ण है, इंसानियत के धर्म का पालन किया जाये।

प्रस्तुत पुस्तक के सभी पात्र काल्पनिक हैं। किसी के नाम से मेल खाना सिर्फ संयोग ही माना जाना चाहिये। पाठकों की प्रतिक्रियाएँ सदैव स्वागत योग्य हैं।

-सत्यशील अग्रवाल