बाजार में खोटे सिक्कों का चलन / जयप्रकाश चौकसे

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बाजार में खोटे सिक्कों का चलन
प्रकाशन तिथि :18 फरवरी 2017


रमेश सिप्पी की सलीम-जावेद लिखित धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी और जया बच्चन अभिनीत 'शोले'फिल्म में केंद्रीय पात्र संजीव कुमार ने अभिनीत किया था। यह नायक संजीव कुमार और खलनायक अमजद खान अभिनीत ठाकुर और गब्बर की जंग की कहानी थी और धर्मेंद्र, अमिताभ इत्यादि सारे कलाकार सहायक भूमिकाओं में थे। कथा के मूल तत्व थे कानून व्यवस्था बनाम कानून तोड़ने वाले -डाकू परंतु गैर-कानूनी पाशविक ताकत से लोहा लेने के लिए स्वयं कानून का रक्षक दो अपराधियों को ही आमंत्रित करता है कि वे मनमाना धन लेकर डाकुओं का नाश करें गोयाकि सभ्यता असभ्य लोगों के सामने लाचार है और उसे व्यवस्था की कगार पर अपराध कर चुके लोगों की सहायता से ही सभ्यता को बचाना है गोयाकि जहर से जहर को मारना है। क्या हम यह नतीजा निकालें कि सरकारी जहर ही गैर-सरकारी अवैध जहर को मार सकता है। शराब बिक्री को वैधानिक व्यवसाय बनाना पड़ता है अन्यथा नकली शराब बनाकर बेचने वाले अकूत लाभ कमाते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री ने शराब-बंदी में अपनी शक्ति का अपव्यय किया, जबकि उन्हें शिक्षा पर जोर देना था, क्योंकि सच्ची और नैतिक मूल्य आधारित शिक्षा व्यक्ति को नशे से दूर रहना सिखाती है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने अमेरिका आकर बसने वालों के खिलाफ एक फरमान जारी किया परंतु आम अमेरिकी के विरोध के बाद अपना फरमान वापस ले लिया। राजा में इस तरह का लचीलापन भारत के नेताओं में नहीं है। नोट परिवर्तन असफल और देश की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाने वाला फैसला था परंतु अपनी असफलता को स्वीकार नहीं करते हुए उसे महान फैसला सिद्ध करने की अर्थहीन कवायद में सरकार और उनके कारिंदे पूरी ताकत से लगे हैं। जमींदार अपना कर वसूल करने के लिए लठैत रखते थे और हमारा मौजूदा गणतंत्र उसी सामंतवाद का एक मुखौटा मात्र है।

रमेश सिप्पी ने 'शोले' के लोकेशन की तलाश में दक्षिण भारत का सघन दौरा किया और बेंगलुरू-मैसूर हाईवे पर 44 किलोमीटर दूर एक स्थान चुना। रामादेवरा बेट्‌टा क्षेत्र में बड़े-बड़े पत्थरों वाला इलाका उन्हें पसंद आया। इस इलाके में उन्होंने फिल्म के लिए एक बस्ती का निर्माण किया, जिसका नाम रामगढ़ रखा। इस लोेकेशन तक पहुंचने के लिए निर्माता ने न केवल एक सड़क का निर्माण किया वरन सरकारी सहयोग से टेलीफोन लाइन भी डाली गई। लगभग ढाई वर्ष तक रुक-रुककर इस लोकेशन पर शूटिंग पूरी की गई। उस स्थान को उन दिनों 'सिप्पी नगर' कहा जाता था। उस वर्ष सूखा पड़ने के कारण वहां के नागरिक बेहद परेशानियों में थे परंतु शूटिंग के कारण वहां मजदूरों को काम मिला और पूरे क्षेत्र में एक बाजार विकसित हो गया। फिल्म यूनिट बेंगलुरू से प्रतिदिन शूटिंग के लिए लोकेशन पर जाती थी। अत: बेंगलुरू के व्यवसाय में सुधार आया। इसी लोकेशन पर शोले के पहले राज कपूर अपनी फिल्म 'बॉबी' की कुछ दिनों की शूटिंग कर चुके थे परंतु 'शोले' तो पूरी तरह इसी स्थान पर शूट की गई थी। 1984 में महान फिल्मकार डेविड लीन ने भी अपनी फिल्म 'पैसेज टू इंडिया' की कुछ शूटिंग इसी स्थान पर की थी। आज वह छोटा-सा कस्बा बड़ी तहसील में बदल चुका है परंतु आज भी वहां के मूल नागरिक शोले की शूटिंग के दिनों की बातें करते हैं और जनमानस की सामूहिक स्मृति में वह किवदंती की तरह स्थापित हो चुकी है।

प्राय: यह देखा गया है कि ऐतिहासिक स्थानों पर आए पर्यटकों को वहां के गाइड स्थान की ऐतिहासिकता के बदले किस फिल्म की शूटिंग वहां हुई है यह पहले बताते हैं। उदयपुर-चित्तौड़ के भव्य इतिहास के बदले विजय आनंद की 'गाइड' के लोकेशन होने की बात सगर्व की जाती है गोयाकि भारत अब फिल्म प्रधान देश हो चुका है। आश्चर्य है कि पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता में आधुनिकता ने इस तरह घुसपैठ कर ली है। यह कोई नहीं कहता कि भारत पर सबसे भयावह आक्रमण तो बाजार केंद्रित तथाकथित आधुनिकता ने किया है, जिसकी बर्बरता के सामने चंगेजखान, तैमूरलंग, हूण, मुगल, पुर्तगाली और अंग्रेज कहीं नहीं ठहरते। बाजार ने अवचेतन पर कब्जा कर लिया है, जिसकी तुलना केवल आर्यों द्वारा भारत में जमने से की जा सकती है, जो पांच हजार वर्ष पहले घटित हुआ था।

बहरहाल, शोले के व्यवसाय के कारण भी भारतीय सिनेमा के इतिहास को दो खंडों में बांट सकते हैं, 'शोले के पहले' और 'शोले के बाद' परन्तु इस तरह का दृष्टिकोण दूषित होगा, क्योंकि 'शोले' कोई महान कलात्मक फिल्म नहीं है और इसका हर अंश किसी न किसी विदेशी या देशी फिल्म से उठाया गया है। इस कथा का मूल आकल्पन तो जापान के अकिरा कुरोसोवा ने किया था, 'सेवन सुमराई' में, जिससे प्रेरित फिल्में दुनिया के हर देश में बनी हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि शोले के पहले इसी कथानक पर नरेंद्र बेदी ने फिल्म बनाई थी 'खोटे सिक्के' जिसमें सितारे नहीं थे परंतु जापान के अकिरा कुरोसोवा द्वारा किए गए मौलिक आकल्पन की नकल खोटे सिक्कों के रूप में बाजार में इस प्रवाह से आई कि असली सिक्कों का लोप हो गया। आज हर क्षेत्र में असल माल कहीं नहीं है।