बाजार / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
कल मैंने दार्शनिकों को बाज़ार में खड़े देखा, वे अपने सिरों को टोकरियों में लिए चिल्ला रहे थे, "अक्ल! अक्ल ले लो ...अक्ल!"
बेचारे दार्शनिक! उन्हें अपने दिलों के तर्पण के लिए अपने सिरों को बेचना ही पड़ता है।