बादशाह जफर की बकरी / ओमप्रकाश कश्यप
‘केवल बड़ी-बड़ी बातें बनाना ही महानता का लक्षण नहीं है. व्यावहारिक समझ-बूझ भी अपनी जगह है. आदर्श कहता है कि कभी दूसरे को सताओ मत. झूठ मत बोलो…नेकनामी का साथ दो. किंतु व्यावहारिक समझ-बूझ का तकाजा है कि बेईमान से वास्ता पड़े तो उसे सबक सिखाने से चूको मत.
तो इसी को लेकर एक कहानी भी हो जाए…
बात वर्षों पहले की है. एक थे रहमत मियां. सीधे और भले. हमेशा अपने काम से काम रखने वाले. और एक था व्यापारी. जिसका नाम थाµ गुम्मा. झूठा, महाबेईमान, कपटी और ठग. ऊपर से अव्वल दर्जे का लालची और मक्कार. अपने स्वार्थ से आगे जिसे कुछ दिखाई ही नहीं देता था. लोग स्वार्थ में अंधे हो जाते हैं…गुम्मा की अक्ल लालच में घास चरने चली जाती थी. जो हो बेईमानी भरे कामों से उसने बहुत-सा धन जोड़ रखा था. दिखावे के लिए पशुओं का व्यापारी था. रहमत मियां के पास थी एक बकरी. उसकी केवल तीन टांगें थीं. चैथी टांग किसी दुर्घटना में टूट चुकी थी. घाव और ना बढ़े इसलिए डाॅक्टर ने वह टांग काटने की सलाह दी थी.
एक बार रहमत मियां को कुछ रुपयों की जरूरत पड़ी.
अगले दिन बकरी को बेचने के लिए रहमत मियां हाट में जा पहुंचे. वहां जाकर जोर से आवाज लगाई-‘बकरी बिकाऊ है.’ आवाज सुनकर ग्राहक आने लगे. पर जो भी आता उस तीन टांग वाली बकरी को देखकर वापस लौट जाता. काफी देर तक जब कोई खरीददार नहीं जमा तो रहमत मियां निराश होने लगे. परेशान थे कि अगर बकरी न बिकी तो काम कैसे सधेगा. तभी एक आदमी उनको अपनी ओर आता हुआ दिखाई दिया.
‘घर जाओ भइया. यहां क्यों अपना वक्त बरवाद कर रहे हो.’ उस आदमी ने आते ही कहा.
‘ऐसी क्या बात है…?’
‘तुम्हारी बकरी पर गुम्मा की नजर है. वह इसे बिकने न देगा.’
‘क्यों जी…मैंने उसका क्या बिगाड़ा है!’
‘सीधे और जरूरतमंदों की मजबूरी का फायदा उठाना ही तो धंधा है. जरा उस पेड़ के नीचे देखो…गुम्मा तुम्हारे ग्राहक को भड़का रहा है.’ रहमत मियां ने देखा. गुम्मा एक आदमी से जोर-जोर से बातिया रहा था—
‘उस तीन टांग की बकरी के कोई पांच रुपए भी दे तो उसके मालिक को खुशी-खुशी रख लेने चाहिए.’
‘अब क्या होगा. यह बकरी कैसी भी है पचास से तो बेशी की है. वक्त आने पर चार सेर से कम दूध न देगी. मेरा समय अगर खराब न होता तो इसे बेचने हरगिज न आता.’ गुम्मा की बात सुनकर रहमत मियां को निराशा ने घेर लिया.
‘अगर तुम्हारी बकरी के पांच सौ रुपये मिलें तो दोगे?’
‘दुःखी आदमी से मजाक करना अच्छा है क्या?’
‘इसमें मजाक कैसा. मर्जी है तो झटपट ‘हां’ करो. नहीं तो बाजार पड़ा है. मैं कोई दूसरा सौदा तलाश करूं?’
‘नहीं-नहीं भइया…अगर तुम सही कह रहे हो तो तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर.’
‘तुम सौदा तो करो, घी-शक्कर तो मैं खुद तुम्हें खिला दूंगा.’ उस आदमी ने कहा. रहमत मियां हैरान थे. उनकी अपनी निगाह में तीन टांग की उस बकरी की कीमत साठ-पैंसठ रुपए से ज्यादा नहीं थी. जरूरत को देखते हुए वे पांच-दस रुपये का घाटा उठाने को भी तैयार थे. उधर वह आदमी सीधे पांच सौ रुपए देने को कह रहा था. उनको खुश होना चाहिए था. परंतु दिल के भले और ईमानदार रहमत मियां को लगा कि कम दाम की चीज के ज्यादा लेना भी बेईमानी जैसा है. इसलिए वे बोलेµ ‘लगता है धंधे मे नए हो और बाजार में अकेले भी?’
‘बाजार में अकेला होने की बात तो ठीक है. पर धंधे में नया होने की बात तुमसे किसने कही?’
‘किसी ने भी नहीं. फिर भी मैंने सोचा कि अगर कोई साथ में हो तो उससे भी सलाह कर लो.’
‘मुझे इसकी जरूरत नहीं है.’
‘क्या तुम्हें सचमुच लगता है कि इस बकरी की कीमत पांच सौ रुपए है?’
‘कीमत तो खरीददार की निगाह में होती है. इसी बाजार में एक-दो कद्रदान ऐसे जरूर मिल जाएंगे जो इस तीन टांग की बकरी के हजार रुपए से बेशी भी देने को तैयार हों.’ उस आदमी ने हंसकर कहा. फिर तिरछी निगाह से गुम्मा की ओर देखने लगा.
‘कहीं तुम उसी ठग के साथी तो नहीं?’ रहमत मियां ने सवाल किया.
‘मैं चाहे जो भी हूं…इससे तुम्हें क्या. सौदा मंजूर है तो कहो?’
‘तो तुम इस बकरी को पांच सौ रुपए में बेच सकते हो?’
‘बिल्कुल, रही शर्त.’ उस आदमी ने बड़े अभिमान के साथ कहा, ‘इस बकरी को बेचने में जो रुपए आएं उनमें से पांच सौ रुपए तुम्हारे. बाकी मेरे. ऊपर से तुम्हारे बच्चों के लिए एक सेर जलेबी भी मेरी ओर से रहीं.’
रहमत मियां को वह आदमी पागल जैसा लगा. उन्हें रुपयों की अत्यधिक आवश्यकता थी. इसलिए ‘हां’ कह दी. रहमत मियां की स्वीकृति मिलते ही वह आदमी सावधान हो गया. फटाफट उसने अपनी जेब में पड़ा पीले रंग का रुमाल निकाला ओर उसको बकरी के गले मे डाल दिया. फिर जेब से हल्दी की पुड़िया निकाली और उसे घोलकर बकरी पर बिखेर दिया. रहमत मियां उसको गौर से देख रहे थे. अपनी प्यारी बकरी को हल्दी में रंगते देख उन्हें आश्चर्य हुआ. फिर उसने अपने कुर्ते की जेब से एक कंठी निकालकर बकरी के गले में पहना दी. इस कर्मकांड के बाद उसने बकरी की परिक्रमा की. फिर भीड़ को संबोधित करके कहने लगा—
‘बादशाही बकरी की नीलामी हो रही है हुजूर…मेहरबानो, और कद्रदानो, देर मत कीजिए…फौरन आइए और इस मुगलई बकरी की कीमत लगाइए…आइए-आइए.’ उसकी आवाज में असर था. लोग मुड़कर उसकी ओर देखने लगे. कुछ ही देर में उसके चारों ओर भीड़ जमा हो गई.
‘देखते क्या हो श्रीमान. इतना बेशकीमती माल मंडी में रोज-रोज नहीं आता. एक बार हाथ से निकल गया तो उम्र-भर पछताते रहोगे.आगे बढ़कर देखिए…इस बकरी को खुद बादशाह बहादुरशाह जफर ने अपने हाथों से खिलाया था.’
‘क्यों मसखरी करते हो यार! बादशाह जफर को गुजरे तो डेढ़ सौ वर्ष से ज्यादा हो गए.’ भीड़ में से किसी ने कहा.
‘ठीक कहा आपने…और इस बकरी उम्र क्या है…जानते हैं जनाब? रहने दीजिए…लाख कोशिश करें जनाब, पर आप असलियत का अंदाजा नहीं लगा सकते. यह बकरी दुनिया का आठवां अजूबा है. इसकी उम्र के बारे में कोई ठीक से नहीं बता सकता.’
‘अगर ऐसा है तो तुम ही बता दो.’ भीड़ में से किसी ने कहा. सुनकर लोग हंसने लगे.
‘ठीक-से तो मुझे भी नहीं पता. पर जिन दिनों बादशाह जफर रंगून के किले में बंद थे. तब यह मासूम बच्ची थी. केवल सोलह महीने की.’
‘तुम यह कैसे कह सकते हो?’
‘ बकरी के गले में कंठी देख रहे हो. इस पर साफ-साफ इसके बनने का सन छपा है. कोई भी दानिशमंद आकर जांच सकता है.’ उसके कहने पर दो-चार आदमी भीड़ से आगे बढ़े. उन्होंने कंठी पर छपे अक्षरों को पढ़ा. उसपर सन अठारह सौ छप्पन छपा था.
‘देखा जनाब. आप में से जिस किसी को भी शक हो वह आगे बढ़कर जांच ले.’
‘कंठी की बात तो ठीक है. मगर बकरी डेढ़ सौ वर्ष कैसे जी सकती है…?’
‘यह ऐसी-वैसी नहीं बहुत ही करामाती कंठी है जिसमें बेशुमार जादुई ताकत छिपी है…आप शायद समझे नहीं. इसलिए खुलकर बताना पड़ेगा. बात उन दिनों की है जब अंग्रेजों ने जफर बादशाह को रंगून में ले जाकर कैद कर दिया था. वे बादशाह को सताना चाहते थे. इसलिए उनकी खाना-खुराक पर भी नजर बिठा दी. सुबह-शाम दलिया, चूड़ा और नमक जाने लगा. रणबांकुरे बादशाह की हालत देख एक फकीर से न रहा गया. वह बहुत पहंुचा हुआ और दानिशमंद फकीर था. अनेक सिद्धियां उसको हासिल थीं. फकीर ने एक बकरी पाली हुई थी. उसी बकरी को उसने गोद में उठाया और चल दिया बादशाह सलामत से मिलने. बकरी को देखकर दरबान ने कहा, ‘आप जाइए पर यह बकरी भीतर नहीं जा सकती.’
‘क्यों भाई?’ फकीर ने सवाल किया.
‘बादशाह को दूध देने की मनाही है.’
‘ठीक है. पर यह तो छौना है. बादशाह भीतर अकेले हैं. कुछ वक्त इसके साथ खेल सकें इसीलिए लिए जा रहा हूं. दूध पीने की मनाही हो सकती है एक छौने के साथ खेलने की नहीं. इसके रहने से बादशाह का जी लगा रहेगा.’ कहते-कहते उस फकीर ने जेब से कंठी निकाल कर अपनी बकरी के गले में डाल दी. करामात देखिए जनाब. बकरी एकदम छौना बन गई. चमत्कार देखकर दरबान भी घबरा गया. उसने फकीर को रास्ता दे दिया. फकीर बकरी को बादशाह के पास छोड़कर वापस लौट गए.
‘सो तो ठीक है. पर इसकी एक टांग को क्या हुआ.’ आवाज आई. कुछ लोगों की हंसी की आवाज गूंजी. पर आधे से ज्यादा चुप ही रहे. अपनी बातों का असर देख उस आदमी का हौसला बढ़ा.
‘इस कंठी के प्रभाव से प्राणी की आयु घटकर आधी रह जाती है. जब तक यह गले में रहती है तब तक उतनी ही बनी रहती है. बकरी के पास रहने से बादशाह साहब को सुबह-शाम दूध मिलने लगा. पर न जाने कैसे एक अंग्रेज दरबान को इस करामाती बकरी के बारे में पता चल गया. वह बकरी से ज्यादा इस कंठी को हथियाना चाहता था. ताकि इसे अपने गले में पहनकर अपनी खोई जवानी को हमेशा के लिए वापस पा सके. बादशाह सलामत बीमार तो थे ही. वे उनके आखिरी वक्त का इंतजार करने लगा. आखिर वह मनहूस घड़ी आ ही गई. जिस समय बादशाह जफर को दफनाया जा रहा था, उस समय यह बकरी उस समय मौका देखकर उसने इसपर कब्जा जमाने की कोशिश की. पर बकरी तो फकीर की अमानत थी. सो अंग्रेज के हाथों से छिटककर भाग छूटी. अंग्रेज इसका पीछा करता रहा. बकरी आगे-आगे अंग्रेज पीछे-पीछे. गांव-बस्ती, खेत-क्यारी, बाग-बागान, पर्वत-दरिया पार होते गए…फिर भी अंग्रेज आगे-आगे और बकरी पीछे-पीछे. भागती-भागती बकरी वहीं जा पहंुची जहां फकीर का ठिकाना था. तब तक अंग्रेज बकरी का पीछा करते हुए परेशान हो चुका था. गुस्से मे आकर उसने बंदूक से हमला कर दिया. गोली बकरी की टांग को चीरती हुई चली गई. इधर बकरी की चीख गूंजी उधर फकीर ने आंखें खोलीं. बकरी को मुसीबत में देख उन्होंने हवा में हाथ लहराया. अंग्रेज चारों खाने चित्त जा पड़ा और बेहोश हो गया.
फकीर जानते थे कि करामाती कंठी के कारण बकरी की जान फिर मुसीबत में फंस सकती है इसीलिए उन्होंने कंठी की ताकत निचोड़ लेनी चाही. लेकिन उसकी मासूमियत उन्हें इतनी भली लगी कि केवल आधी ही ताकत निचोड़ पाए. अब यह कंठी जब तक इस बकरी के गले में है तभी तक असरदार रहेगी. तब तक यह इसी तरह जवान बनी रहेगी. किसी और के गले में जाते ही इसका असर जाता रहेगा.’
उसकी कहानी को कुछ ने कोरी गप्प माना. लेकिन कुछ लोग उसकी कहानी के प्रवाह में बह ही गए. दूसरों के साथ-साथ गुम्मा भी लालच में आ गया. उसे लगा कि नवाब के दरबार में उसकी मोटी कीमत मिलेगी. देखते ही देखते लोगों में बकरी को खरीदने की होड़ लग गई. बोली लगने लगी. पांच सौ से शुरू हुई बोली पांच हजार से ऊपर जाकर थमी. सबसे ऊंची बोली गुम्मा की ही थी. कीमत चुकाकर उसने बकरी का रस्सा अपने हाथ में लिया.
भीड़ छंट जाने के बाद उस आदमी ने हजार रुपए रहमत मियां के हाथ पर रख दिए- ‘ये लो…आज हिसाब बराबर हुआ.’
‘कैसा हिसाब?’ रहमत मियां ने पूछा.
‘तुम यह सब रहने दो…लो ये और रखो. आज पूरे गांव को जलेबी की दावत देना.’ एक हजार और उनके हाथ मंे रखता हुआ वह बोला. रहमत मियां ने रुपए तो रख लिए पर उनके मन में संकोच था. वह आदमी जाने लगा तो उन्होंने टोक दिया- ‘तुमने तो कहा कि वह दूध देती है. लेकिन वह तो अभी बच्चा है. जब उसे यह पता लगेगा तो क्या होगा?’
रहमत मियां की शंका निर्मूल नहीं थी. थोड़ी देर बाद ही गुम्मा वापस लौट आया- ‘तुम तो कहते थे कि बादशाह जफर इस बकरी का दूध पीते थे. पर इसके थनों को देखकर तो लगता है कि इसने शायद ही कभी दूध दिया हो.’
‘किसने देखा है…?’ उस आदमी ने सख्ती से सवाल किया. उसका आत्मविश्वास देखकर रहमत मियां हैरान रह गए. कोई आदमी झूठ पर भी कितना भरोसा कर सकता है, यह वे पहली बार देख रहे थे. खुद को तेज-तर्रार और आला समझने वाला गुम्मा भी सकपका गया. फिर हकलाता-सा बोला—
‘मैं…मैंने!’
‘जरा अपने हाथ तो दिखाना…’ यह कहने पर गुम्मा ने अपनी खुरदरी हथेली उसके आगे फैला दी.
‘अहमक हो तुम भी. बादशाह जफर के नर्म-मुलायम हाथों से दुहने वाली बकरी क्या इन कांटेदार हथेलियों से पसीजेगी?’
‘माफ करना भाई. मैं ही उतावलापन कर बैठा.’ गुम्मा ने कहा.
‘कोई बात नहीं है. जल्दबाजी आदमी ऐसी गलती कर ही बैठता है. पर ध्यान रहे. ऐसी गलती फिर कभी न दोहराना. नहीं तो यह नाजुक मिजाज बकरी हमेशा-हमेशा के लिए दूध से चली जाएगी. बेगम से कहना जरा आहिस्ता-आहिस्ता मलें. अच्छा हो हाथों पर थोड़ी चिकनाई भी लगा लें. जिससे इसे कोई तकलीफ न हो. और देखो यह मेरा पता है. कोई परेशानी हो तो सीधे चले आना. मैं ग्राहक की तसल्ली करना भी अपना धर्म समझता हूं.’
उस आदमी की आवाज में इतना दम था कि गुम्मा आगे कोई सवाल न कर सका और बकरी की रास थामकर वहां से चलता बना. उसके जाते ही रहमत मियां ने अंटी में खोंसे हुए रुपए निकालकर उस आदमी के आगे कर दिए- ‘लो इन्हें तुम्हीं रखो. मैं बकरी जाने का नुकसान तो सह सकता हूं, बदनामी नहीं.’
‘अब क्या हुआ?’
‘तुमने मेरे घर का पता भी दे दिया है. वह कल फिर लौटकर आएगा. भरे गांव में बात होगी. उस समय बेइज्जती होने से तो अच्छा है कि अभी से बात साफ कर दी जाए.’
‘कैसे डरपोक इंसान से पाला पड़ा है. खैर, मैंने आज तुम्हारे ही कारण पुराना हिसाब चुकाया है. इसीलिए तुम्हें किसी भी मुश्किल से बचाना मेरा धर्म है. क्या एक रात के लिए तुम मुझे अपना मेहमान बना सकते हो.’
‘घर में अकेला रहता हूं. मुझे क्या परेशानी हो सकती है!’
दोनों वहां से चल दिए. आने वाले दिन की प्रतीक्षा में रहमत मियां चिंता में पड़े थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि कल जब वह खरीददार भरे गांव में सबके सामने बेइज्जती करेगा तब क्या होगा. वे यह सोचकर पछता रहे थे कि एक अनजान आदमी की बातों में आकर उन्होंने भारी भूल की है. तय किया कि उसके आते ही माफी मांगते हुए उसके सारे रुपए लौटा देंगे. तब जाकर उन्हें नींद आ पाई. सुबह होते ही उन्होंने अपना फैसला उस आदमी को बताया तो वह हंसने लगा.
‘मंजूर है…पर तुम वही करोगे जैसा मैं कहूंगा.’ रहमत मियां उससे तंग आ चुके थे. लेकिन उनके मन में उसको आगे परखने की साध भी थी. इसलिए थोड़े असमंजस के साथ उन्होंने हामी भर दी. जैसी की उन्हें उम्मीद थी सुबह होते ही गुम्मा बकरी लेकर फिर हाजिर हो गया. आते ही उसने बकरी की शिकायत करना शुरू कर दिया. रहमत मियां चुपचाप सुनते रहे.
‘तो तुम्हें इस बकरी से शिकायत है?’
‘सोलह आना…’
‘तुम्हें लगता है कि हमने तुमने साथ ठगी की है?’
‘बतीस आना…’
‘ठीक है लो अपनी रकम. और इस बकरी को वापस हमारे खूंटे पर छोड़ जाओ. हमारी किस्मत अच्छी है. कल तुम्हारे जाते ही बकरी का सच्चा कद्रदान आया था. बता रहा था कि उस बकरी को खरीदने के लिए वह तीन सौ मील का सफर करके आ रहा है. पूरे बीस हजार अपनी अंटी में लिए था. यह कहने पर कि बकरी बिक चुकी है वह निराश हो गया. जाते समय वह अपना पता छोड़ गया है. कह रहा था कि अगर जरा भी उम्मीद बाकी हो तो उसे फौरन याद किया जाए. हजार-दो हजार कम-बेशी की भी चिंता मत करना…’ उसकी बात सुनकर गुम्मा के मन पर लालच फिर सवार हो गया.
‘जब बकरी दूध ही नहीं देती तो कोई क्या करेगा…’ उसने कहा.
‘अमा क्या कहते हो. बीस साल से तो यह हमारे खूंटे पर दूध देती आ रही थी. तुम्हारे घर जाते ही दूध देना छोड़ दिया…ऐसा कैसे हो सकता है?’
‘मैं क्या झूठ बोल रहा हूं.’
‘हूं…कुछ तो बात है. अच्छा तुमने घर जाते ही इस बकरी के साथ कैसा सुलूक किया था?’
‘करता क्या. घर जाकर खूंटे से बांधकर चारा डाल दिया था…’
‘उफ! अगर तुम्हें बादशाह की बकरी के साथ सुलूक करना ही नहीं आता तो इसे खरीदने की जरूरत ही क्या थी…बाजार में सैंकड़ों मिल जातीं.’ उस आदमी ने लताड़ा.
‘मैंने आखिर किया क्या है.’
‘जब यह बादशाह जफर के पास थी तो कैद में होने के बावजूद बादशाह की ओर से चार सेवादार इसके लिए चैबीसों घंटे तैनात रहते थे. वही इसे खिलाते-नहलाते और सुबह-शाम इसके पैरों की मालिश किया करते थे. माना कि अब बादशाहत का जमाना नहीं रहा. पर बकरी तो वही है. एक बार आदत बनने के बाद जालिम छूटती कहां है…और खाने को क्या दिया था?’
‘हरी-हरी घास…’ ग्राहक ने डरते-डरते जवाब दिया.
‘फिर वही गलती. बादाम और छुआरे पर पली बकरी घास-फूंस खाकर क्या खाक दूध देगी.’ उस आदमी ने लताड़ा तो ग्राहक वापस लौटने लगा. तभी पीछे से उस आदमी ने आवाज देकर उसे रोका— ‘ठहरो! तुमने वाजिब रकम चुकाकर बकरी का सौदा किया है. तुम्हारी पूरी तसल्ली करना हमारा फर्ज है. तुम पांच किलो बादाम, दस किलो किशमिश, दस किलो अखरोट और इतने ही छुआरे मंगवा लो. और हां, चांदी की एक बाल्टी भी. जिसमें बीस किलो दूध आ सके. घबराओ मत…मेवा खाकर जब यह बकरी दूध देगी तो वह मेवा से भी ज्यादा ताकतवर होगा. जल्दी करो. उसके बाद मुझे भी यहां से जाना है. तुम्हारी भाभी इंतजार कर रही होगी. उसकी हमेशा शिकायत रहती है कि मैं भइया के घर आते ही टिक जाता हूं. वापस लौटने का नाम ही नहीं लेता. आज दोपहर तक अगर घर नहीं पहुंचा तो वह खुद यहां चली आएगी.’
‘बकरी दूध देने लगे तो इतना खर्चा भी मैं ओट सकता हूं…’ गुम्मा ने कहा और वहां से बकरी को वहीं छोड़ बाजार की ओर चल दिया.
‘तुम आखिर किस जन्म का बैर निकाल रहे हो.’ उसके जाते ही रहमत मिंया ने उस आदमी से कहा.
‘तुम बस देखते जाओ. आज तक इस आदमी ने न जाने कितने भले आदमियों को ठगा है. न जाने कितने आदमी इसके लालच के कारण बरबाद हुए है. आगे से यह दूसरे को धोखा देने से पहले हजार बार सोचेगा. और इस घर की ओर तो झांकेगा भी नहीं…’ उस आदमी ने हंसकर कहा.
‘आखिर तुम हो कौन?’
‘समझ लो मैं भी उन सैंकड़ों लोगों में से हूं जो इसके सताए हुए है.’
करीब आधे घंटे में ही गुम्मा लौट आया. तब तक वह बकरी को नहला चुका था. आंगन में चारपाई पड़ी थी. मेवा की पोटली और बाल्टी उसने उस आदमी के सामने लाकर रख दी.
‘माल खरीदने समय कंजूसी तो नहीं की.’ उस आदमी ने पोटली खोलते हुए पूछा. फिर बाल्टी को बजाकर देखा.
‘बादशाह जफर तो सोने की बाल्टी में दूध दुहते थे. लेकिन अब वो जमाना कहां…खैर इन्हें खाकर बकरी खुश हो जाएगी और तुम्हें निहाल कर देगी. तब तुम्हें पता चलेगा कि यह सौदा कितने कम दामों में पटा है. वक्त की बात है वरना रहमत भाई इसे कहां बेचने वाले थे?’
‘एकदम बजा फरमाया जनाब.’
‘तो ठीक है. बकरी इस समय आपके खूंटे पर बंधी है. इसलिए आप ही इसे खिलाइए. और आप उधर बैठकर सिर्फ देखते रहिए. जानवर तो प्यार का भूखा होता है.’ उस आदमी के इशारे पर रहमत मियां ने पोटली खोलकर बादाम, किशमिश और छुआरे को आपस में मिलाया और दोनों हाथों में भरकर बकरी के पास ले जाने लगे.
‘रुको रहमत मियां. पहले इनकी लाई मेवा की जांच कर ली जाए. आप तो जानते हैं कि इस बेशकीमती बकरी को दुश्मनों से बचाए रखने के लिए यह कितना जरूरी है. और मियां मैं तो आपको भी कहूंगा कि ऐसी बेशकीमती बकरी रोज-रोज हाथ नहीं लगती. इसलिए आगे इसे जो भी खिलाएं, उसे अच्छी तरह जांच लें.’
‘आपने इस बकरी का इतना गुणगान किया है कि मैं गलती कर ही नहीं सकता. इसलिए एकदम काबुल का ताजा माल लाया हूं. चाहे तो चखकर देख भी सकते हैं.’
‘अच्छी बात है. सिर्फ तसल्ली के लिए…लीजिए रहमत, भाई जरा मुंह में डालकर तो देखिए…’
‘नहीं मियां…आप बड़े है.’ कहते हुए रहमत मियां ने अपनी हथेली उस आदमी के आगे फैला दी.
‘जैसी आपकी मर्जी.’ इसी के साथ एक मुट्ठी मेवा उसने अपने मुंह में डाला और उन्हें धीरे-धीरे चवाने लगा. सहसा उस आदमी चकराया और जमीन पर लुढक गया. उसके मुंह से झाग निकलने लगे.’ यह देखते ही रहमत मियां समेत दंग रह गए. गुम्मा की तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.
‘लगता है मर गया…अब मैं भाभी को क्या जवाब दूंगा.’ रहमत मिंया ने रोने का नाटक किया. ‘भाभी तो बहुत तेज है. आते ही पुलिस में रिपोर्ट किए बिना नहीं रहेगी. पर मैं तो साफ कह दूंगा कि मौत तुम्हारे लाए मेवा को खाने से हुई है.’
‘ना-ना क्यों गजब करते हो रहमत भाई. मेवा क्या मेरे घर में बनते है…’
‘पर लाए तो तुम्हीं थे.’
‘मुझे क्या मालूम था कि वे जहरीले हैं.’
‘तो और किसे मालूम था.’
‘भगवान गवाह है कि मैं बिल्कुल ताजे मेवा लाया था.’
‘जहर मिलाकर…क्यों?’
‘मैं भला ऐसा क्यों करूंगा?’
‘यह तो पुलिस पता लगाएगी.’
‘मुझे बचाओ…मैं इस उपकार के बदले तुम्हें मालामाल कर दूंगा…’
‘एक तो मेरा भाई नहीं रहा. ऊपर से तुम मुझे रिश्वत देना चाहते हो.’
‘हे भगवान….मेरी रक्षा करो.’
‘अब तो सिर्फ भगवान ही तुम्हारी मदद कर सकते है. कुछ देर बाद ही यदि इसकी पत्नी यहां आने वाली है. वह रो-रोकर आसमान सिर पर उठा लेगी. पुलिस-थाने तक बात जाएगी. ऐसा करो तुम यहां से भाग जाओ. इन्हें मैं संभाल लूंगा.’
‘सचमुच भाग जाऊं?’
‘नहीं, चाहो तो हाथों में हथकड़ी पड़ने का इंतजार भी कर सकते हो.’
इतना कहना था कि गुम्मा सबकुछ वहीं छोड़कर वहां से सिर पर पांव रखकर भाग गया. उसके बाद उसने रहमत मिंया ने उस आदमी से उठ जाने को कहा.
‘कैसा रहा मेरा नाटक.’
‘गजब! अब भूख लग आई होगी. पहले कुछ खा लें, चलो. जो भी है आज के खेल से एक सबक तो सीखने को मिला कि कभी बेईमानी मत करो. लेकिन वास्ता यदि बेईमान से पड़े तो बख्शो मत.’
‘एकदम ठीक बात…’ रहमत मिंया ने कहा और खाने का सामान जुटाने में लग