बाबाक सीख / एस. मनोज
जजाइतकें'धंछ भेल देखि उमा बाबूक तामस आकाश ठेकि गेल रहनि। तामस सँ लाल भेल मुँह हुनक तामसकें प्रदर्शित करैत रहै, लागै जे जजाइत धंछ करै बला भेटि जाय त' ओकर रान चीरि देथिन। ओ तामसे अंट-संट बाजथि, मुदा ने कियो सुननहार आ ने कियो उतारा देनिहार रहै। ओ कनी काल चुल्हि-खापड़ि फोड़ैत रहलाह आ फेर शान्त भ'गेलाह। तामस आ चिन्ता में पड़ल कनी काल धरि किछु सोचैत रहलाह, फेर जाकें खेत में नुकाकें बैसि गेलाह आ जजाइत धंछ करै बलाकें जोहैत रहलाह। जखन बड़ी काल धरि ओम्हर कियो नहि गेलै त' घुरिकें घर आबि गेलाह।
दुर्गाक छुट्टी में दूनू बेटा, पुतहु, पोता, पोती सभ घर आइल रहनि, तें घर आबितहिं सभ तामस बिसरि गेला आ पोता-पोतीक संग पढ़ाइ-लिखाइक गप्प सँ ल 'क' आन-आन गप्प में समय कखन बीत गेलनि से किनको धियाने नहि रहलै। जखन बाबी भोजन ल'बजबै अइली त' बैसार खत्म भेलै। फेर भोजन-भातक बाद सभ सुतै लेल गेलाह।
काल्हि भेने सभ अपन-अपन काज में आ खेल धूप में लागल, मुदा उमा बाबू जजाइत धंछ करै बलाक जोह में लागल रहलाह। ओ भरि दिन घर सँ बथान आ बथान सँ घर करैत रहलाह आ बाट में पड़ैत ओहि खेतक रखबारी सेहो करैत रहलाह।
सांझ भेने गोलू, भोलू, टीनू, मीनू आ दीपक सभ दलान पर खेलै लेल पहुँचल। सभ अपना में बतियाबै-'आइ कौन खेल खेलभीं?'
बेसी बच्चा सभक मोन रहै काल्हि जकाँ चोरिया-नुकिया खेलल जाय, मुदा आन बच्चा सभक पीसी मीनू चोरिया-नुकिया खेलै लेल तैयार नहि रहै। सभ बच्चा ओकरा सँ कतबो निहोरा कयलक, मुदा ओ तैयार नहि भेल। तखन मीनूक छोड़ि सभ बच्चा चोरिया-नुकिया खेलै लेल चलि गेल। बच्चा सभक जनतब रहै जे ई खेत अपन बाबाक छिकै, तें ओ सभ ओहि खेत में घुसिकें चोरिया-नुकिया खेलै लागल। अइ बच्चा सभक खेलैत देखि गामक एकटा छौड़ा कमलेश आयल आ कहलक-हमहूँ खेलियौ तोरा सभक संग?
कमलेशक बात सुनि गोलू आन बच्चा सभकें बजैलक आ अपना में किछु-किछु गप्प क'कमलेश सँ कहलक-नहि, तोरा नै देबौ अपना सभक संग खेलै। कमलेश कनि देर अपना खेलै क' जोगार लगबै ल'अनुरोध करैत रहल आ जखन ओ सभ नहि तैयार भेल त' बाजल-'जखन हमरा नहि देभीं खेलै ल' त'तोरो नहि देबौ खेलै' आ ओ ओतय सँ दौगैत चलि गेल। कमलेशक गेला क'बाद फेर सभ बच्चा अपना खेल में व्यस्त भ' गेल।
ओम्हर कमलेश दौगल गेल आ उमा बाबू सँ बाजल-बाबा यौ, कतेक न छौड़ा-छौड़ी सभ अहाँक जजाइत धंछ क'रहल अछि। कमलेशक बात सुनि उमा बाबू तामसे लहलह करैत झटकल वा कहियौ दौगैत खेत पर आबि गेला आ जखन खेत में अपना पोता पोतीक नुकाइत आ दौगैत देखलाह त' माथ पीटै लगलाह। तामसमे हा-हा करैत, बच्चा सभक बाहर बजबैत एना शांत भ'गेलाह, जेना लहकैत आगि पर कियो पानि ढारि देने हुअ। ओ सभ बच्चाक संग क' घर ल' गेलाह आ जजाइत धंछ नहि करबाक बात समझाबैत रहलाह आ फेर बथान पर चलि गेलाह।
बथान पर बड़ी काल धरि ओ सोचैत रहलाह जे बच्चा सभकें कोना बुझायल जाय जे जजाइत धंछ नहि करबाक चाही। जखन मोनमे एकटा विचार फुरलनि त'ओ घर आबि गेलाह आ बच्चा सभकें बजैलाह आ बजलाह-तों सभ खेत में खेलै रहक, मुदा हम ओतय सँ ल' आनलियह। कियैक न आब एकटा खेल अहि दलान पर खेलल जाय आ हमहूँ तोरा सभक संग खेली।
संगमे बाबा खेलताह से सुनि सभक अचरज भेलै आ गोलू हुनक सँ पुछलक-अहाँ खेलबै हमरा सभक संग में?
बाबा बजलाह-हँ, हमहूँ खेलब तोरा सभक संग मे, मुदा ओ खेल कोना खेलल जइतै से हम बतायब।
बाबाक बात सुनि बच्चा सभ बाजै लागल-त' बताबियौ न ओ खेल कोना खेलल जइतै?
बाबा बजलाह-तोरा सभ में सँ कियो एकटा चोर बनतै। ओकर आंखि आ मुँह फीता सँ बान्हल जइतै आ हाथ-पैर रस्सी सँ बान्हिकें बीच दलान पर ठाढ़ कयल जइतै। आन बच्चा सभ ओकरा घेरने ठाढ़ रहतै आ किछु-किछु करतै। की करतै से हम बाद में कहब, पहिने चोर के बनब से आगू आबह।
सभ बच्चा एक दोसराक मुँह ताकैत रहल आ कियो आगू नहि बढ़ल त' बाबा बजलाह-कियो आगू आबह।
किछु काल धरि सभ एक दोसराक ताकते रहल त'दीपक आगू आबि क' बाजल-हम तैयार छी। हमरा तैयार कयल जाय।
तकर बाद दीपक कें आंखि-मुँह फीता सँ आ हाथ-पैर रस्सी सँ बान्हिकें बीच दालान पर ठाढ़ कयल गेलै। फेर बाबा गोलू, भोलू आ टीनूकें किछु-किछु सिखा देलखिन। खेल शुरू भेलै त'दीपक कें चारू दिस सँ घेरने ओ सभ किछु-किछु बाजै आ कियो केस घीचै त' कियो अंगा घीचै। दू-चारि मिनट ई खेल अहिना चलैत रहल आ जखन कियो जोर सँ दीपकक केस घीच लेलक त'ओ छटपटा गेलै, मुदा मुंह बान्हल रहै तें सँ किछु बाजि नहि सकल। फेर कियो ओकरा धकेल देलकै त' ओ खसि पड़ल आ हाथ पैर पटकै लागल। ई देखि बाबा दौगकें अइला आ दीपक कें सभ बन्धन सँ मुक्त क'अपना कोरामे बैसा लेलका। दीपक जोर-जोर सँ कानै लागल आ बाबाक कोरा सँ उतरै ल' हाथ पैर फेंकै लागल। ओ कानै आ बाजै-हम अहाँ लग नहि रहब। अहाँ हमरा मारि खुअएलियै, केस घीचबैलियै। अहाँ गंदा आदमी छियै, कहैत ओ जिद्द कय क' बाबाक कोरा सँ उतरि कानैत-कानैत अपन मम्मी लग चलि गेल।
उमा बाबूक फेर दोसर फेरा लागि गेलनि। जजाइत धंछ बला खिस्सा बिच्चे में छुटि गेलै आ पोताक कानै पीटै के'छगुन्ता मोन में लागि गेलेन। ओ गोलू, भोलू आ टीनूकें बैसा क' किछु-किछु गप्प करै लगलाह, मुदा अवचेतन मोन में दीपक क'काननाय आ ओकरा चुप करबाक उपाय मथैत रहलेन। ओ उठिकें बाज़ार चलि गेलाह आ सभ पोता पोती ल' टॉफी, कुरकुरे आ टकाटक ल'आनलाह। सभ बच्चाक ओकरे पसीन सँ टॉफी, कुरकुरे आ टकाटक देलकाह, मुदा दीपक किछु लियै ल' तैयार नहि रहै। बड़ निहोरा कयला पर एकटा कुरकुरेक पैकेट अपना हाथ में ल 'क' कननमुँह कयने ठाढ़ रहल।
उमा बाबूक मोन रहेन जे सभ बच्चाक समझाबै ल'बैसार कयल जाय। तें ओ अपन जेठकी पोती शालूकें बजाकें किछु-किछु समझैलाह। शालू अपना बाबी आ मम्मीक दलान पर बजा आनलक। बाबी दीपक कें अपना कोरा में ल' क'बैस गेली। सभ बच्चा चौकी पर आ बाबा कुर्सी पर बैसला। दीपकक मम्मी अपना सासु माँ क' पाछाँ में ठाढ़ रहली। अहि तरहें फेर सँ बैसार शुरू कयल गेल।
उमा बाबू जेठकी पोती सँ पुछलाह-दीपक बला खेलक बारे में जानल्ही शालू?
शालू बाजल-हँ बाबा।
फेर ओ पुछलाह-की सभ जानल्ही?
शालू बाजल-ई सभ जे जजाइत धंछ कइलकै से नहि करबाक चाही, यैह समझाबै लेल अहाँ एकटा खेल खेलबैलियै।
उमा बाबू कनी प्रसन्न होइत बजलाह-सुनल्ही रे बाउ सभ, दीदी की बाजै छौ आ शालू दिस घुरिके बजलाह-हँ शालू बताभीं ओ खेलक बारे मे।
शालू बाजल-अहाँ दीपक क'एकटा गाछ बना देने रहियै। ओकर आंखि बन्न रहै, मने ओ देखि नहि सकैत अछि। ओकर मुंह बन्न रहै, मने ओ बाजि नहि सकैत अछि। ओकर पैर बान्हल रहै, मने ओ चलि नहि सकैत अछि। ओकर हाथ बान्हल रहै, मने ओ प्रतिकार नहि क' सकैत अछि।
बच्चा सभ शालू दीदीक मुंह देखै आ गप्प सुनैत शब्द-शब्द सँ सहमत होइत जाय से भाव सभक चेहरा पर उभरैत जाय। शालूकें बजलाक बाद उमा बाबू बच्चा सभ सँ पुछलाह-की यौ बटुक आ की यै बुच्ची दाइ, शालू दीदी ठीक बाजि रहल छैक?
सहमति में माथ डोलबैत टीनू बाजल-सांचे दीपू त'एकटा गाछ जकाँ रहै वा कहल जाय जे सभ गाछ दीपू सन रहैत छैक, जे हम सभ ओकर फूल पात तोड़ैत रहैत छियै आ ओ प्रतिकार नहि क' पाबैत छैक।
फेर उमा बाबू पुछलाह-अच्छ एतेक बात बुझैत छय त'एकटा बात आओर बताब' जे जहिना दीपक क'धक्का देल गेलै, केस घीचल गेलै त' ओकरा कष्ट भेलै, तहिना गाछ बिरीछकें नोकसान कयला पर ओकरो कष्ट होइत होइतै?
बाबा का प्रश्न सुनि सभ सोच में पड़ि गेल आ किछु नहि बाजल त'फेर शालू बाजल-अहाँ सभ वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोसक नाम सुनने होइबै। ओ एकटा मशीन बनैने रहथिन, जकर नाम क्रेस्कोग्राफ अछि। ओ मशीन गाछ बिरीछकें सुख-दुखक अनुभूति केे बारे में बता दैत छैक। जँ गाछ बिरीछकें कोनो कष्ट होइत छैक त' ओ मशीन टिन-टिन आवाज करैत छैक आ मशीन में लागल घड़ीक कांट कांपै लागैत छैक।
शालू दीदीक गप्प सुनि गोलू बाबा सँ पूछलक-हँ बाबा एहन मशीन बनल छैक?
उमा बाबू बजलाह-हँ हँ, एहन मशीन बनल छैक आ ओ मशीन अपने देशक वैज्ञानिक बनैने छलाह।
दीपक कें अपना कोरा सँ उतारि अपने लग चौकी पर बैसैने बाबी दीपक के मुंह छुबि दुलार करैत बाजली-जखन एहन मशीन बनल छैक त'अहाँ सभ प्रयोग अपने पोता पर कथी ल' करै लागलियै? जजाइत धंछ नहि करबाक बात कहि देतियै आ ओ मशीन में सभ किछु देखा देतियै। एतबेटा बात खातिर अहाँ हमरा सोन सनक बाउकें नंगों चंगों क' देलियै।
बाबीक पाछाँ में ठाढ़ दीपकक मम्मी बाबाक पच्छ लैत बाजली-माँ जी, बाबू जीक ई प्रयोग बेसी कारगर रहतै। ई प्रयोग में बच्चा सभ अपने सँ सभ किछु अनुभव कयलक। जीवन में पढ़ला वा देखला सँ बेसी ज्ञान अनुभव सँ प्राप्त होइत छैक। कनी काल दीपू कें किछु कष्ट भेलै, मुदा वनस्पतिक प्रति संवेदना ल' ई तरीका बेसी कारगर रहतै।
मम्मीक एहि बात पर सभ बच्चा खुशी सँ हुनक मुंह ताकै लागल आ दीपक रस-रस कुरकुरे का पैकेट फारै लागल।