बाबाजी का ठुल्लू / पद्मजा शर्मा
'आज स्कूल में क्या हुआ?'
'कुछ नहीं।'
'पढ़ाई तो हुई?'
'हाँ।'
'खेल के पीरियड में खेले?'
'हाँ।'
'क्या?'
'।'
'म्यूजिक के पीरियड में कुछ गाया-बजाया?'
'हाँ।'
'ज्योग्राफी की नोट बुक मिली?'
'ना।'
'मैम को बताया?'
'हाँ।'
'मैम क्या बोलीं?'
'फोटो कॉपी करवाओ.'
'मैथ्स का क्लास टेस्ट कैसा हुआ?'
'ठीक।'
'कौनसी ग्रेड मिलेगी?'
'...'
'बास्केट बॉल मैच में क्या हुआ?'
'हम हार गए.'
'तू कैसा खेला?'
'एक्सट्रा में था।'
वह बहुत कम बोलता है। अव्वल तो आपके सवालों के जवाब देगा ही नहीं। उन्हें यूं ही जाने देगा और अगर देगा तो भी बहुत संक्षेप में। मैं उसकी माँ हूँ पर मुझसे भी काम की ही बातें करता है। उसके अध्यापक, दोस्त सभी यह शिकायत करते हैं। वह पढ़ाई में अच्छा है। पर पढ़ाकू नहीं है। कहें कि 'पढ़ाई कर।' तो कहे 'स्कूल में हो गयी।' मैं बहुत चिंतित थी, उसकी इस आदत से। आगे चलकर कहीं कोई मुसीबत न खड़ी हो जाए बच्चे के जीवन में। सेंसेटिव बहुत है। किस बात का कब बुरा मान जाए, पता ही नहीं चलता। इसके मन में जाने क्या चल रहा है। हंसी-मजाक और बचपना भी ना के बराबर करता है। बचपन में इतना सीरियस रहता है। आखिर क्यों? मनोचिकित्सक को दिखाया। बोले-'कोई चिंता की बात नहीं है। कई बच्चे कम बोलते हैं।'
पर मेरी चिंता कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। सब बच्चे हँसते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं, खेलते हैं। दिन में घंटों पढ़ते हैं। यह टी.वी., कम्प्यूटर, वीडियो गेम में उलझा रहता है और ज्यादातर शांत ही रहता है।
कल उसके बैग में एक मुड़ा हुआ पन्ना निकला। उस पर लिखा था-'ओपन दिस पेपर। यू विल गेट ए प्राइज।'
मैंने उत्सुकता से पन्ना खोला। भीतर एक हँसते हुए लड़के का चित्र था। बेटे की हस्तलिपि में लिखा था-'बाबाजी का ठुल्लू।'
इसे पढ़कर जाने क्यों मेरी चिंता कम हुई है।