बाबाडम और बाबूडम का चक्रवात / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 अगस्त 2018
वर्तमान में योग एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है और जाने कैसे उसे 'योगा' कहना प्रारंभ हुआ अर्थात अंग्रेजी भाषा में उसे जैसे लिखा जा रहा हैं, वैसा ही बोला भी जा रहा है। पश्चिम के घनघोर भौतिकवाद से परेशान लोग अध्यात्म की तलाश में पूर्व की ओर आने लगे और उन्हें योगाभ्यास कराने का व्यवसाय चल पड़ा। सच्ची आधुनिकता की पहल करने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू भी योगाभ्यास करते थे और उनके शीर्षासन की तस्वीर कई अखबरों में प्रकाशित हुई, जिससे प्रेरित उनके कालखंड के प्रतिनिधि फिल्मकार राज कपूर ने फिल्म 'श्री 420' के एक दृश्य में संवाद अदा किया कि 'इस औंधी दुनिया को सीधा देखने के लिए शीर्षासन कर रहां हूं। योग का सर्वमान्य अर्थ है 'जुड़ना' परंतु उसे वोट बैंक की राजनीति में उपयोग करते हुए समाज को तोड़ा जा रहा। उजागर सा हुआ 'सीक्रेट एजेंडा' अब किसी के लिए रहस्य नहीं रह गया है। पुरातन ग्रंथों के रचे जाने के कालखंड को तय करने के लिए 200 वर्षों के अंतर को मान्यता प्राप्त है। पतंजलि नामक ऋषि ने 96 योग मुद्राओं एवं 32 योगासनों का उल्लेख किया है।
इसी तरह 'कामसूत्र' के लेखक गुरु वात्स्यायन का रचना काल संभवत: पतंजलि से भी पूर्व का बताया जा रहा है परंतु दोनों में वर्णित क्रियाओं में कुछ समानता है। वात्स्यायन का विचार है कि काम क्रिया के समय मस्तिष्क को विचार शून्य करते ही वह अध्यात्मिक स्वरूप ग्रहण कर लेती है। दरअसल, शब्द उच्चारित करते ही एक छवि भी उभरती है। इस तरह ध्वनि और छवि जुड़वा हो जाते हैं। औघड़ फिल्मकार राज कपूर के अवचेतन में ध्वनि पहले आती थी और छवि बाद में उत्पन्न होती थी। सारी बात गड़बड़ा जाती है। स्थिर जल में आप अपनी छवि देख पाते हैं परंतु कोई शरारती बच्चा उसमें पत्थर फेंक दे तो लहर चलते ही छवियां गड़बड़ा जाती हैं। न्यू थिएटर्स फिल्म निर्माण कंपनी में 'चंडीदास' नामक फिल्म में दृश्य है कि नदी के जल में चंडीदास अपनी छवि देखते हैं। उनसे थोड़ी दूरी पर बैठी एक छोटी जाति की स्त्री भी अपनी छवि देखती है। इस प्रक्रिया में प्रेम की भावना का उदय होता है और ठीक इसी समय एक शरारती पत्थर फेंकता है तो छवियां गड़बड़ा जाती है, जो संकेत है कि ये प्रेमी मिल नहीं पाएंगे। देवकी बोस अत्यंत प्रखर बुद्धि के फिल्मकार थे। उसी काल खंड में मुंबई टॉकीज में अशोक कुमार अभिनीत 'अछूत कन्या' भी बनी है। 'अछूत कन्या' काल्पनिक है परंतु चंडीदास की कथा यथार्थ है।
गौरतरब यह है कि आज के समय कोई फिल्मकार न तो 'चंडीदास' बना सकता है और न ही 'अछूत कन्या' बन सकती है, क्योंकि यह दौर व्यवस्था के मौन समर्थन में हुल्लड़बाजों का दौर है।
कुछ वर्ष पूर्व लंदन के एक चर्च में एक गुरु योगा सिखाता था। चर्च के अधिकारी ने इसका विरोध किया कि ईसा के इस स्थान पर हिंदू धर्म का कार्यक्रम नहीं किया जा सकता है। इसका स्पष्टीकरण यह दिया गया कि योग अच्छी सेहत के लिए गई एक्सरसाइज मात्र है और इसमें धर्म का समावेश नहीं किया जाना चाहिए। चर्च अधिकारी का कहना था कि योग क्रिया के समय मस्तिष्क में शून्य उत्पन्न करते ही यह धर्म से जुड़ जाती है और अध्यात्म के दायरे में आ जाती है। इस विवाद का यह हल निकाला गया कि योगाभ्यास चर्च के अहाते में बने बगीचे में किया जाए। अब चर्च में विराजे ईसा मसीह और बगीचे में किए जा रहे योगाभ्यास में मौजूद ईश्वर मिलनसार पड़ोसी हो जाते हैं और पड़ोसी धर्म का निर्वाह सीधे अहिंसा से जुड़ा है, अत: कही कोई विवाद नहीं है। इस तरह की कोई घटना एशिया में घटित हो तो अल्लाह भी जुड़ जाते हैं। मणिरत्नम ने 'गुरु' नामक फिल्म बनाई थी जो धीरुभाई अंबानी के जीवन से प्रेरित थी परंतु इसे कभी सरेआम स्वीकारा नहीं गया। सारा घटनाक्रम लगभग समान था।
इस फिल्म की नायिका ऐश्वर्या राय थीं, जिनका विवाह बाद में बच्चन से हुआ है। एक 'गुरु' नामक फिल्म अमेरिका में भी बनी है, जिसमें घटनाक्रम ऐसा है कि एक व्यक्ति को गुरु मान लिया जाता है और अमेरिका में टिके रहने के लिए उसे यह स्वांग करते रहना है। यह एक मनोरंजक फिल्म थी और इसमें कहीं धर्म को लेकर कोई विवाद नहीं था। विगत कुछ समय में कुछ बाबा लोग अय्याशी के आरोप में पकड़े गए हैं और 'बाबाडम' उजागर हुआ है। दरअसल, भारत 'बाबाडम' और 'बाबूडम' से ग्रस्त है। दफ्तर के बाबू फाइलों से खिलवाड़ करते हैं और रिश्वत का लेन-देन सदैव की तरह जारी है।