बाबा आजमी की निर्माणाधीन फिल्म / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 अप्रैल 2019
कैफी आजमी के पुत्र बाबा आजमी एक कथा फिल्म बना रहे हैं, जिसके एक हिस्से की शूटिंग इंदौर के आनंद मोहन माथुर सभागृह में चल रही है। फिल्म में शबाना आजमी एक चरित्र भूमिका अभिनीत कर रही हैं। ज्ञातव्य है कि बाबा आजमी पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित हैं। उन्होंने इंद्रकुमार की फिल्मों की सिनेमैटोग्राफी की है। उम्रदराज होने पर कैफी साहब अपने जन्मस्थान लौट गए थे। यह छोटा-सा गांव आजमगढ़ क्षेत्र में हैं, जहां पोस्टऑफिस भी नहीं था। चिट्ठी डालने के लिए मीलों चलना पड़ता था। कैफी आजमी ने मंत्री को पत्र लिखकर पोस्टऑफिस की मांग की और पत्र भी पद्य में लिखा। कैफी आजमी के गांव में शबाना आजमी ने एक कन्या विद्यालय की स्थापना की थी। इसी विद्यालय की एक छात्रा बाबा आजमी की फिल्म की नायिका है। हबीब तनवीर ने भी जनजातियों से नाटक अभिनीत कराए थे।
दशकों पूर्व जुहू की गली में कैफी आजमी और पृथ्वीराज कपूर पड़ोसी थे। कैफी साहब को मशीन की आवाज परेशान न करे, इसलिए पृथ्वीराज ने अपने शयन कक्ष के बाहर एयर कंडीशनर नहीं लगाया था। इसी पड़ोस में लेखक आदिल भी रहते थे, जिन्हें दमे का रोग था। पृथ्वीराज सुबह सड़क पर पानी का छिड़काव करते थे, ताकि आदिल साहब को धूल से बचा सकें। उन दिनों की याद इसलिए की जा रही है कि आज किसी का किसी पर एतबार नहीं रहा।
इंटरनेट पर साहसी फिल्में दिखाई जा रही हैं। अत: सिनेमाघर ही अब एकमात्र साधन नहीं है, परंतु सिनेमाघर में फिल्म देखने का अनुभव किसी अन्य मंच पर प्रदर्शन से कहीं अधिक गहरा है। शीघ्र ही प्रदर्शित होने वाली हॉलीवुड की 'एवेंजर्स: एंड गेम' के सिनेमा टिकट सबसे कम समय में बिक चुके हैं। भारत के किशोर और युवा लोग हॉलीवुड की फिल्में देखना पसंद करते हैं। विज्ञान फंतासी उन्हें उन फिल्मों से बेहतर लगती है, जिनमें आम आदमी नायक है और रोजमर्रा की जद्दोजहद से बखूबी ऊपर उठने का प्रयास करता है। इस तरह आम आदमी सिनेमा, साहित्य और अन्य क्षेत्रों में हाशिये पर फेंका जा रहा है। आम आदमी का पात्र अभिनीत करने वाले महान चार्ली चैपलिन का शव भी कब्रगाह से चुराया गया था।
उम्रदराज व्यक्ति का अपने जन्म स्थान पर लौटना स्वाभाविक है, परंतु जन्म स्थान तेजी से बदल जाता है और लौटने वाले को सांस्कृतिक झटका लगता है। लंबे समय तक घर से दूर रहने वाले जब लौटते हैं तो पाते हैं कि घर कहीं दूर जा चुका है। धरती में गाड़ा हुआ धन भी अपनी जगह से दूसरी जगह चला जाता है। यथार्थ जीवन में आम आदमी की मेहनत से उत्पन्न धन हमेशा उससे दूर ही जाता है। कभी-कभी आंदोलन होते हैं कि 'साडा हक एथे रख।' ज्ञातव्य है कि गीतकार इरशाद कामिल उस आंदोलन का हिस्सा थे। छात्रों का एक दल परीक्षा स्थगित करवाना चाहता था और दूसरा दल समय पर इम्तिहान चाहता था, क्योंकि उसने तैयारी की थी। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के छात्र नेता कन्हैया कुमार बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पास साधनों का अभाव है। जावेद अख्तर उनका प्रचार कर रहे हैं और शबाना आजमी भी वहां पहुंचने वाली हैं।
ज्ञातव्य है कि राही मासूम रजा भी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में जन्मे थे और उनका उपन्यास 'आधा गांव' उनके जन्म स्थान का वैसा ही विशद वर्णन करता है जैसा फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने गांव हिंगाना का वर्णन किया है। उपन्यासकार थॉमस हार्डी के सारे उपन्यासों में उनके जन्म स्थान वेसेक्स का इतना गहन विवरण है कि उनका पाठक बिना किसी गाइड के सारा क्षेत्र घूम सकता है। कहते हैं कि शिशु के जन्म के बाद उनकी नाल (अम्बिलिकल कॉर्ड) जन्म स्थान के आस-पास गाड़ी जाती है। क्या हम यह मानें कि जमीन के नीचे गड़ी नाल ही व्यक्ति को अपने जन्म स्थान पर लौटने के लिए बार-बार आवाज देती है?
'अलकेमिस्ट' उपन्यास का नायक भी जगह-जगह भटकने के बाद अपने जन्म स्थान पर ही लौटता है। एक कविता में युद्ध स्थान पर मरने वाला कहता है कि उसे इसी जगह दफनाया जाएगा तो शत्रु देश की छह गज जमीन पर तो उसका कब्जा हो जाएगा। बर्नार्ड शॉ का विचार था कि शहादत के जज्बे की मार्केटिंग बड़ी कुशलता से की गई है। बहरहाल, धर्मवीर भारती की पंक्तियां याद आती है, 'भटकोगे बेबात कहीं, लौटोगे अपनी हर यात्रा के बाद यहीं'।