बाबू मोशाय का संसार / जयप्रकाश चौकसे

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खामोश : अदालत जारी है
प्रकाशन तिथि :29 सितम्बर 2015


सितंबर का आखिरी सप्ताह अनेक प्रतिभाशाली लोगों के जन्म दिन का सप्ताह है। इसी सप्ताह में देव आनंद, हेमंत कुमार और यश चोपड़ा के जन्म दिन आते है। 28 सितंबर तो सर्वकालिक महानतम गायिका लता मंगेशकर का जन्म दिन था और वही तारीख ऋषि कपूर नीतू के सुपुत्र रणबीर कपूर का जन्म दिन है, जिसे उन्होंने इस साल लंदन में कटरीना कैफ के साथ मनाया, क्योंकि वहां करण जौहर की फिल्म की शूटिंग हो रही है, जिसमें ऐश्वर्या राय नायिका हैं। एक दौर में राज कपूर अपनी 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' लता मंगेशकर को नायिका लेकर बनाना चाहते थे। 30 सितंबर को ऋषिकेश मुखर्जी का जन्म दिन है, वे 2006 में 84 वर्ष की आयु में दिवंगत हुए। ऋषिकेश मुखर्जी कोलकाता की न्यू थिएटर्स के विघटन के बाद विमल राय के साथ मंुबई आए। वे उनकी फिल्मों का संपादन करते थे। 'देवदास' के बनने और संपादन के दिनों में दिलीप कुमार उनसे प्रभावित हुए और ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी पहली फिल्म 'मुसाफिर' बनाई, जो एक मकान में आए तीन किराएदारों की प्रयोगात्मक फिल्म थी, जिसमें दिलीप कुमार ने पहली और आखिरी बार एक गीत भी गाया! फिल्म असफल रही और ऋषिकेश मुखर्जी ने अपना फिल्मी रास्ता बदल दिया और राज कपूर, नूतन, मोतीलाल को लेकर 'अनाड़ी' बनाई, जिसमें शंकर-जयकिशन और शैलेंद्र-हसरत के गीत थे। इसी फिल्म में शैलेंद्र का महज एक गीत था, 'किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार...मरकर भी याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे।' इसी फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने लीला नायडू के साथ 'अनुराधा' बनाई, जिसमें शैलेंद्र का गीत था, 'मैं तो जागी थी सपनों में खो गई अखियां, जाने कैसे पल में पराई भई अखियां।'

जब राज कपूर लंदन में चार माह के लिए एक मकान लेकर 'संगम' का अंतिम चरण पूरा कर रहे थे तब ऋषिकेश मुखर्जी भी उनके साथ ठहरे थे। राज कपूर हमेशा मुखर्जी को 'बाबू मोशाय' कहकर पुकारते थे। उसी दौरान रात को सृजन का जश्न मनाने हुए 'आनंद' का परिकल्पन हुआ परंतु 'जोकर' की व्यस्तता के कारण राज कपूर स्वयं से प्रेरित फिल्म में काम नहीं कर पाए। इसीलिए उनके बाबू मोशाय ने 'आनंद' राज कपूर को समर्पित की है। ज्ञातव्य है कि फिल्म में भी एक पात्र 'बाबू मोशाय' के नाम से संबोधित किया गया है। लेखक जय अर्जुन सिंह की किताब 'द वर्ल्ड ऑफ ऋषिकेश मुखर्जी' 30 सितंबर को जारी होने वाली है। किताब के नाम के दो अर्थ हो सकते हैं- एक तो मुखर्जी साहब की फिल्मों में प्रस्तुत दुनिया, जिसमें मध्यम वर्ग के लोगों की खुशी और गम प्रस्तुत किए गए हैं तथा स्वयं ऋषिकेश मुखर्जी का संसार या उनके सक्रिय रहने वाला काल खंड! हमारे बाबू मोशाय के व्यक्तिगत जीवन की अधिक जानकारी नहीं है, सिवाय इसके कि वे अपने कुत्तों को बहुत प्यार करते थे और उन्हें शतरंज का शौक भी था! मुखर्जी महोदय को पैर दर्द की बीमारी थी परंतु कई बार वे यह नहीं बता पाते थे कि किस पैर में दर्द है। कई बार डॉक्टर गलत पैर का परीक्षण करके चले जाते थे। इससे आधारहीन संदेह यह होता है कि उन्हें पैर की कोई बीमारी ही नहीं थी। कई बार मनुष्य कुछ अनचाहे काम से बचने के लिए बीमारी का अाविष्कार कर लेता है। मनुष्य सुविधा पसंद करने वाला कल्पनाशील प्राणी है। अफसोस सिर्फ इतना है कि वह अपनी कल्पनाशक्ति को सृजन में नहीं लगाते हुए अपने लिए सुविधा का संसार रच लेता है! जैसे कुछ नटखट बच्चे बड़ों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ तोड़-फोड़ करते हैं, वैसे ही उम्रदराज लोग भी ध्यान आकर्षण के लिए बीमारियों का आविष्कार कर लेते हैं। यह बात सभी बच्चों और उम्रदराज लोगों में नहीं होती। कभी-कभी 'आविष्कार की गई व्याधि' सचमुच हो जाती है।

मुखर्जी महोदय की अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र अभिनीत 'चुपके चुपके' नामक हास्य फिल्म बंगाली भाषा में बनी 'छद्‌मभेषी' से प्रेरित थी, जिसकी कथा उपेंद्रनाथ गांगुली ने लिखी थी। मुखर्जी महोदय की साफ-सुथरी फिल्म बनाने की छवि ऐसी थी कि कोई भी सफल सितारा उनसे अपना बाजार भाव नहीं लेता था और सीमित बजट के कारण उनकी फिल्मों में घाटे की संभावना कम होती थी। 'अनाड़ी' र 'अनुराधा' के बाद एनएन सिप्पी और मुखर्जी की भागीदारी में सारी फिल्में बनीं। उनका अनुबंध यह था कि सारा सृजन कार्य वे देखते थे और सिप्पी व्यवसाय पक्ष देखते थे। दोनों की टीम में कभी मतभेद नहीं रहा। विगत समय में उनकी अनेक फिल्मों के अधिकार खरीदकर उन पर नई फिल्में बनाई गई हैं और सच तो यह है कि उनके जीवन काल में कमाए मुनाफे से कहीं गुना मुनाफा उनकी फिल्मों ने उनकी मृत्यु के बाद कमाया। अब सिप्पी के सुपुत्र व्यवसाय पक्ष देखते हैं और कोई नहीं जानता कि मुखर्जी के वंशजों को क्या मिलता है?