बारबरा यंग / बलराम अग्रवाल
खलील जिब्रान के जीवन में बारबरा यंग (Barbara Young) का साथ अन्तिम सात वर्षों में रहा। इस दौरान वह उनकी पहली शिष्या रही जिसने उनकी प्रशंसापरक जीवनी ‘द मैन फ्रॉम लेबनान’ लिखी।
“जिब्रान ने अगर कभी कोई कविता न लिखी होती या कोई भी पेंटिंग न बनाई होती तो भी काल के सीने पर उनके मात्र हस्ताक्षर ही अमिट होते। उन्होंने अपनी चेतनशक्ति से अपने युग की चेतना को झकझोर कर रख दिया है। जिसकी आत्मिकउपस्थिति अभूतपूर्व और अमिट है — वह जिब्रान है।” बारबरा ने लिखा।
1923 में बारबरा ने ‘द प्रोफेट’ का एक पाठ सुना। उसे सुनकर जिब्रान को उसने अपने प्रशंसापरक मनोभाव लिखे। जवाब में उसे जिब्रान का गरिमापूर्ण पत्र मिला जिसमें उन्होंने उसे ‘कविता पर बात करने और पेंटिंग्स देखने आने’ का न्योता दिया था।
“मैं,” उसने लिखा, “ओल्ड वेस्ट टेन्थ स्ट्रीट की पुरानी इमारत में गई। चौथे माले तक सीढ़ियाँ चढ़ीं। वहाँ उसने ऐसे मुस्कराते हुए मेरा स्वागत किया गोया हम बहुत-पुराने दोस्त हों।”
कद में बारबरा जिब्रान से ऊँची थीं, गोरी थीं और आकर्षक देह्यष्टि की स्वामिनी थीं। उसका परिवार इंग्लैंड के डिवोन स्थित बिडेफोर्ड से ताल्लुक रखता था। वह अंग्रेजी अध्यापिका थीं। वह किताबों की एक दुकान भी चलाती थीं और उक्त चौथे माले तक सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरान्त जब तक जीवित रहीं, जिब्रान के बारे में लेक्चर देती रहीं। जिब्रान के देहांत के बाद उसने जिब्रान पर अपनी अपूर्ण पुस्तक ‘गार्डन ऑफ द प्रोफेट’ को तरतीब दी और प्रकाशित कराया।
बारबरा यंग और दूसरे जीवनीकारों ने जिब्रान के बारे में लिखा है कि वह दुबले-पतले, पाँच फुट चार इंच ऊँचे मँझोले कद के व्यक्ति थे। उनकी मोटी-मोटी उनींदी-सी भूरी आँखें देर में झपकती थीं। बाल अखरोट के रंग वाले थे। मूँछें इतनी घनी थीं कि दोनों होंठों को ढँके रखती थीं। उनका शरीर गठीला और पकड़ मजबूत थी।
जिब्रान के देहावसान के समय बारबरा अस्पताल में उनके निकट ही थीं। उनकी मृत्यु के तुरन्त बाद उसने जिब्रान के स्टुडियो से, जहाँ वह अठारह साल तक रहे थे, कीमती पेंटिंग्स और दूसरी चीजें काबू में ले लीं और उन्हें लेबनान में उसके गृह-नगर बिशेरी स्थित उनके घर भेज दिया।
भाषण के अपने दौरों के दौरान बारबरा जिब्रान की साठ से ज्यादा पेंटिंग्स जनता को दिखाती थीं। इन सब का या जिब्रान की बनाई अन्य अधूरी पेंटिंग्स का, लेखों का, पत्रों का क्या हुआ? उन्हें पाने के लिए उसे उन लोगों का पता लगाना था जिन्होंने उन्हें खरीदा, उपहार में पाया या कबाड़ में डाल रखा हो और दयालुतापूर्वक जो उन्हें वापस दे सकें। जब तक वह सारी सामग्री सामने नहीं आ जाती, जिब्रान की सम्पूर्ण जीवनी नहीं लिखी जा सकती थी। कम-से-कम बारबरा द्वारा लिखा जाने वाला अध्याय तो नहीं ही पूरा होने वाला था।
सम्पर्क के बाद सात सालों में वह सम्बन्ध कितना प्रगाढ़ हुआ? इसका उत्तर बारबरा के लेखन का आकलन करने वाले विशेषज्ञ समय-समय पर देते रहते हैं। वह जिब्रान के साथ कभी नहीं रहीं। वह न्यूयॉर्क के अपने अपार्टमेंट में रहती थीं।
“एक रविवार को,” बारबरा ने लिखा है, “जिब्रान के एक बुलावे पर मैं उसके स्टुडियो में गई। जब पहुँची, अपनी डेस्क पर बैठा वह एक कविता लिख रहा था। लिखते समय आम तौर पर वह फर्श पर घूमता रहता था और एक या दो लाइनें जमीन पर बैठकर भी लिखता था।
“उसका कविता लिखना, उठकर बार-बार घूमना शुरू कर देना जब तक जारी रहा, तब तक मैं इन्तजार करती रही। अचानक मुझे एक बात सूझी। अगली बार जैसे ही उसने घूमना शुरू किया, मैं उसकी मेज पर जा बैठी और उसकी पेंसिल उठा ली। जैसे ही वह घूमा, मुझे वहाँ बैठा पाया।
“तुम कविता सोचो, मैं लिखती हूँ।” मैंने कहा।
“ठीक, तुम और मैं एक ही कविता पर काम करने वाले दो कवि हैं।” कहकर वह रुका। फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद बोला,“हम दोस्त हैं। मुझे तुमसे और तुम्हें मुझसे कुछ नहीं चाहिए। हम सहजीवी हैं।”
जैसे-जैसे उन्होंने साथ काम किया और जैसे-जैसे वह उसके सोचने और काम करने के तरीके के बारे में उलझती चली गई, उसने उसके बारे में एक किताब लिखने का अपना निश्चय उस पर जाहिर कर दिया। जिब्रान ने इस पर खुशी जाहिर की और “उसके बाद वह उसे अपने बचपन की, अपनी माँ और परिवार की तथा जीवन की कुछ विशेष घटनाएँ भी बताने लगा।
‘सैंड एंड फोम’ में जिब्रान ने एक सूक्ति लिखी है — “एक-दूसरे को हम तब तक नहीं समझ सकते जब तक कि आपसी बातचीत को सात शब्दों में न समेट दें।” शायद यही विचार रहा होगा कि एक दिन जिब्रान ने बारबरा से पूछा, “मान लो तुम्हें यह कहा जाय कि सिवा सात शब्दों के तुम सारे शब्द भूल जाओ। तब वे सात शब्द, जिन्हें तुम याद रखना चाहोगी, कौन-से होंगे?”
“मैं सिर्फ पाँच ही गिना सकी,” बारबरा ने लिखा है, “ईश्वर, जीवन, प्रेम, सुन्दरता, पृथ्वी… और… और,” और फिर जिब्रान से पूछा, “दूसरे कौन-से शब्द वह चुनेगा?” जिब्रान ने कहा,“सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शब्द हैं — तुम और मैं… इन दो के अलावा किसी अन्य की आवश्यकता नहीं है।” उसके बाद उसने ये सात शब्द चुने — तुम, मैं, त्याग, ईश्वर, प्रेम, सुन्दरता, पृथ्वी।
“स्टूडियो में जिब्रान को सलीका पसन्द था।” बारबरा ने लिखा है, “विशेषत: उस वक्त, जब वह मनोरंजन कर रहा हो या खाना खा रहा हो। एक शाम जिब्रान ने कहा कि — पूरब में पूरे कुनबे के लोगों का एक ही बड़े बर्तन में खाना खाने का चलन है। आज शाम अपन क्यों न एक ही कटोरे में सूप पिएँ!” हमने वैसा ही किया। जिब्रान ने एक काल्पनिक लाइन सूप में खींचकर कहा, “उधर का आधा सूप तुम्हारा है और इधर का आधा मेरा। देखो, हममें से कोई भी दूसरे के हिस्से का सूप न पी ले!” उसके बाद उसने जोर का ठहाका लगाया और अपने हिस्से का सूप पीते हुए हर बार हँसा।
एक अन्य अध्याय में बारबरा ने लिखा है : “एक शाम, जब हम ‘सी एंड फोम’ पर काम कर रहे थे, अपने लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुर्सी पर न बैठकर मैंने फर्श पर कुशन डाले और उन पर बैठ गई। उस पल मैंने सोचने की प्रक्रिया के साथ अनौपचारिक हो जाने का अभूतपूर्व रोमांच महसूस किया। मैंने कहा — “मुझे लगता है कि मैं जाने कितनी बार इस तरह तुमसे सटकर बैठती रही हूँ, जब कि इससे पहले कभी भी नहीं बैठी!” जिब्रान ने कहा, “हजार साल पहले हम ऐसे बैठते थे और हजारों साल तक ऐसे ही बैठा करेंगे।”
“और ‘जीसस, द सन ऑव मैन’ रचने के दौरान जब-तब कुछ अजीब घटनाएँ मैंने महसूस करनी शुरू कीं। मैंने कहा — ‘यह तो एकदम जीती-जागती-सी बातें हैं। लगता है कि मैं खुद वहाँ थी।’ वह लगभग चीखकर बोला, ‘तुम वहाँ थीं! और मैं भी!’ ”
मूल अरबी से जिब्रान की अनेक पुस्तकों का अंग्रेजी में रूपान्तर करने वाले जोसेफ शीबान ने एक स्थान पर लिखा है : “जिब्रान के देहावसान के दो साल बाद बारबरा की मुलाकात इन पंक्तियों के लेखक से क्लीवलैंड शहर में हो गई। उसने मुझसे पूछा — “अरबी सीखने में कितना समय लग सकता है?” मैंने उससे कहा कि “जिब्रान की किसी भी किताब का अनुवाद करने के लिए अरबी भाषा के सांस्कृतिक पक्ष की जानकारी जरूरी है जिसमें कई साल लग सकते हैं, केवल बोलना सीखना है तो अलग बात है। कुल मिलाकर अरबी एक कठिन भाषा है।”
बारबरा यंग ने अपनी पुस्तक में लिखा है: "एक बार कुछ महिलाएँ जिब्रान से मिलने आईं। उन्होंने उससे पूछा: अभी तक शादी क्यों नहीं की? वह बोला: देखो… यह कुछ यों है कि… अगर मेरी पत्नी होती, और मैं कोई कविता लिख रहा होता या पेंटिंग बना रहा होता, तो कई-कई दिनों तक मुझे उसके होने का याद तक न रहता। और आप तो जानती ही हैं कि कोई भी अच्छी महिला इस तरह के पति के साथ लम्बे समय तक रहना नहीं चाहेगी।"
उनमें से एक महिला ने, जो मुस्कराकर दिए हुए उसके इस जवाब से सन्तुष्ट नहीं थी, उसके जख्म को और कुरेदा, "लेकिन, क्या आपको कभी किसी से प्यार नहीं हुआ?” बड़ी मुश्किल से अपने-आप पर काबू पाते हुए उसने जवाब दिया : “मैं एक ऐसी बात आपको बताऊँगा जिसे आप नहीं जानतीं। धरती पर सबसे अधिक कामुक सर्जक, कवि, शिल्पकार, चित्रकार, संगीतकार… आदि-आदि ही हैं और सृष्टि के आरम्भ से यह क्रम चल रहा है। काम उनमें एक सुन्दर और अनुपम उपहार है। काम सदैव सुन्दर और लज्जाशील है।”
सम्भवत: इसी प्रसंग को जिब्रान ने ‘The Hermit and The Beasts’ का रूप दिया है जो उनके देहांत के उपरांत सन 1932 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘द वाण्डरर’ में संग्रहीत हुई।