बारहसिंगे / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / सरोज शर्मा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1 भूमध्य सागर में एक छोटा-सा द्वीप है। यहाँ के पत्थरों, मोटे-मोटे भारी कैक्टसों और बौने ताड़ वृक्षों के बीच हँसमुख यूनानी देवताओं के भूत-प्रेत अभी भी मँडराते हैं। प्राचीन समय से ही यहाँ एक बड़ी ही अजीब और अबूझ-सी परिपाटी चली आ रही है। यदि रास्ता भटका कोई सनकी सैलानी कभी इस जगह पहुँच जाएगा तो वह भी यह परम्परा देखकर हैरान रह जाएगा। यहाँ के पादरियों और समाज के प्रबुद्ध नागरिकों ने इस प्रथा को रोकने की बहुतेरी कोशिशें कीं, पर आज तक कुछ न बदला। सदियों से चली आ रही इस ठिठोली प्रथा की ताक़त इस हद तक बढ़ गई है कि जो लोग इसमें कुछ सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं, उलटे वे ख़ुद ही हँसी के पात्र लगने लगते हैं।

कुछ लोग इस परम्परा को एक बड़े मेले के रूप में देखते हैं, जिसका आयोजन हर साल सर्दियों के शुरू में तब किया जाता है, जब अँगूर की फ़सल इकट्ठी की जाती है और लोग उसकी वाइन भी बना लेते हैं। जिन लोगों को वाइन पीने में मज़ा आता है, वे यह पर्व मनाते हुए ताज़ा वाइन का पूरा लुत्फ़ उठाते हैं। इस उत्सव के आयोजक अपनी बीवी से धोखा खाए पुरुष होते हैं। वे अपने सर पर बैल, बकरे या अन्य किसी जानवर के सींग बाँधकर या’नी बारहसिंगा बनकर जुलूस निकालते हैं। यूरोप में बारहसिंगा ऐसे पुरुष को कहते हैं, जिसकी बीवी आवारागर्दी करती है। इस अनोखे त्योहार को मनाने की कोई एक निश्चित तारीख या दिन नहीं होता। दरअसल इसके सक्रिय भागीदार कभी भी पहले से यह ऐलान नहीं करते कि फलाँ दिन वे यह त्योहार मनाएँगें। वे छुप-छुपकर इसकी तैयारियाँ करते रहते हैं और सर्दियों के शुरू में किसी एक ख़ास दिन बारहसिंगों का जुलूस निकालते हैं। मेले की रौनक देख-सुनकर अपनी बीवियों की बेवफ़ाई से पीड़ित लोग अपने सिर पर सींग लगाकर अपने-अपने घरों से निकलकर जश्न में शामिल होते जाते हैं और कारवाँ बढ़ता जाता है। ये लोग पूरे दिन मटरगश्ती करते हुए शहर भर में घूमते हुए नज़र आते हैं।

इस त्योहार के मनाने की वज़ह से यह ज़ाहिर होता है कि ज़रूर यह मायूसी या मातम का पर्व होगा, परन्तु हक़ीक़त इसके एकदम उलट है। यह अजीबोग़रीब जश्न खुशियों से भरपूर होता है। इसमें लोग ज़ोर-ज़ोर से बातें करते, चुटकुले सुनते-सुनाते और गाते हुए चलते हैं। कोई गिटार बजाता है, कोई ढोल-ढपली तो कोई बाँसुरी। बहुत से लोग नाचते-गाते भी हैं। खिलखिलाती धूप, पहाड़ों और नीले समुद्र की पृष्भूमि में जश्न मना रही भीड़ के नज़ारे कहीं से भी ग़मगीन नहीं लगते हैं।

जैसे अंगूर और जैतून की फ़सल हमेशा एक जैसी नहीं होती, वैसे ही कई सदियों से मनाए जा रहे इस त्योहार में इन बारहसिंगों की संख्या भी साल-दर-साल घटती-बढ़ती रहती है। किसी-किसी साल तो ऐसा भी हुआ कि महज़ बीस-तीस बारहसिंगों ने ही सुस्ती से घूमते और बोर होते हुए जुलूस निकाला। परन्तु ज़्यादातर ऐसा होता है कि आधा शहर बारहसिंगा बना मौज-मस्ती में डूबा घूम रहा होता है।

लेकिन सवाल यह उठता है कि जब ये बदक़िस्मत बारहसिंगे इस बेढब तरीके से मौज-मस्ती का मज़ा ले रहे होते हैं, तब उनकी गुनहगार आवारा बीवियाँ क्या करती होंगीं ?

2

ख़ूबसूरत, चुलबुली और आवारा रोज़ीना ने जब यह देखा कि उसका पति टिपे इस बार शहर से अपने कोट के नीचे छिपाकर कुछ लाया है और उसने उसे सपने सन्दूक में ताला लगाकर रख दिया है, तो उसे बेहद चिन्ता हुई। उस नुकीली-सी चीज़ से उसे बैल के सींगों का ध्यान आया और उसके ज़ेहन में यह ख़याल आया — क्या मेरे शौहर को सच में कुछ मालूम हो गया है ?

कुछ साल पहले अपने आपको महत्त्वपूर्ण मानने वाले उबाऊ टिपे ने मज़ाक में एक दिन अपनी बीवी से कहा था कि यदि वह उसे धोखा देगी तो वह सुनहरे रंग के लम्बे-लम्बे सींग लगाकर जुलूस में जाएगा। उसका मानना है कि सुनहरा रंग उसकी अमीरी और उम्रदराज़ी को दिखाएगा। रोज़ीना जानती है कि उसका मियाँ एकदम शान्त स्वभाव का है, इसलिए उसने उस समय उसकी इस धमकी को नज़रअंदाज़ कर दिया और वह उससे ज़रा भी नहीं घबराई। बाद के सालों में टिपे के पास जलसे में शरीक होने के कुछ कारण होने पर भी जब वह महज़ एक दर्शक बना रहा, तो रोज़ीना की हिम्मत और बढ़ गई और वह शेरनी बन गई।

लेकिन अब अपने पति से मज़ाक में लम्बे-लम्बे सुनहरे सींगों वाली बात सुनकर उसके दिल में उथल-पुथल होने लगी। यदि यह मान लिया जाए कि उसके खसम के सन्दूक में बन्द रखी चीज़ सींग नहीं हैं और न ही टिपे का ऐसी नीच हरकत करने का कोई इरादा ही है, तो फिर आजकल वह उसके साथ इतना अच्छा बरताव क्यों कर रहा है ! उठते-बैठते हर समय वह उसका इतना ज़्यादा ध्यान क्यों रख रहा है ! ज़रूर दाल में कुछ काला है।

अंगूर के बागानों में लोगों ने अंगूर तोड़कर एक जगह जमा करने शुरू कर दिए थे। रोज़ीना को यह लगने लगा कि मुसीबत आने से पहले ही उसे जल्दी से जल्दी रोकना ज़रूरी है। उन दिनों वह अपने पति के साथ कुछ ज़्यादा ही प्रेमभरा बरताव करने लगी। एक दिन सुबह के काम निपटाकर वह घर से बाहर जाने की तैयारी कर रही थी, तो उसने बाहर निकलने से पहले प्यार से अपने पति का मुँह चूमा और फिर सीधी दवाइयों की उस दुकान पर गई, जिसका मालिक दवाइयाँ बेचने के साथ-साथ जुलूस में बारहसिंगा बनने वाले लोगों से सींगों की साज-सज्जा के ऑर्डर भी लिया करता था। नाम था उसका मरतुच्छिओ। वह सींगों को चमकाने, उनपर सुनहरा लेप चढ़ाने और उन्हें सर के माप के अनुसार बनाने का काम करता था। रोज़ीना मरतुच्छिओ के पास इस उम्मीद से आई थी कि शायद वह उसे मेले में टिपे के बारहसिंगे बनने या न बनने के बारे में कुछ बता सके।

रोज़ीना जब मरतुच्छिओ की दुकान पर पहुँची, वह दुकान के सामने बैठा हुआ बड़े ध्यान से बहुत बड़े-बड़े और ख़ूबसूरत सींगों की घिसाई कर रहा था। दुकान के बाहर उसके चारों तरफ़ पुरुषों और महिलाओं का एक झुण्ड बैठा हुआ था। वे लोग मरतुच्छिओ को सींग तैयार करते हुए देख रहे थे और आपस में हँसी-मज़ाक कर रहे थे। उन्हें देखकर रोज़ीना थोड़ा झेंपी। वहाँ बैठे लोगों ने रोज़ीना को पहले तो हैरानी से देखा, पर जब उसने मरतुच्छिओ से अपने पति के लिए पेट साफ़ करने वाली दवाई देने को कहा तो वे समझ गए कि वह यहाँ दवाई ख़रीदने के लिए आई है। उसके बाद उन लोगों ने उस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। दवाई की दुकान के पास बैठी सब औरतें शक़्ल से एकदम मासूम लग रही थीं और वे सब दवाई ख़रीदने के बहाने ही वहाँ आई थीं, जबकि मर्द बस, ऐसे ही ख़ाली समय काटते हुए सिगरेट फूँक रहे थे। दरअसल, उन लोगों की शक़्ल देखकर उनके बारे में कुछ भी कहना ज़रा मुश्किल था।

रोज़ीना ने अपनी भौहें चढ़ाते हुए कहा — ये क्या बकवास है ! सींग लगाकर ये लोग किसे डराते हैं ? मेरा पति टिपे तो बेवकूफ़ी वाली कोई ऐसी हरकत नहीं करेगा। उँह ! ये बारहसिंगे और उनके सींग !

दुकान के बाहर बैठे लोगों के बीच ढीठ पाओलो भी मौजूद था। उसने ताना मारते हुए रोज़ीना से पूछा — क्या ?…।

रोज़ीना ने चुटकी लेते हुए कहा — अरे ! इसमें ‘क्या’ वाली कोई बात नहीं है। मैं तो बस, ऐसे ही कह रही हूँ। पाओलो, कहीं ये सींग तुम्हारे लिए ही तो नहीं हैं ?

पाओलो ने धीरे से जवाब दिया — तुम जुलूस वाले दिन देख लेना, तब पता चल जाएगा कि ये किसके लिए सजाए जा रहे हैं।

यह सुनकर सबने एक बार फिर ठहाका लगाया। मरतुच्छिओ ने एक पट्टी से जुड़े हुए सींगों को अपने सामने रखा और उन्हें बड़े ध्यान से निहारते हुए बोला — ये मेरे लिए हैं। अच्छे लग रहे हैं न ?

पिरेता नाम की एक चंचल महिला खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली — जनाब ! आप ये सींग ज़रा पहनकर दिखाइए। आपके पहनने पर ही तो मालूम चलेगा कि ये कैसे दिखेंगे !

मरतुच्छिओ उन्हें पहनने के लिए अपने माथे पर लगाने लगा तो मालूम हुआ कि वे उसके लिए बहुत बड़े हैं। यह देखकर वहाँ बैठी सारी महिलाएँ यह याद करने की कोशिश करने लगीं कि उनके पति के माथे और सर कैसे हैं, परन्तु इस तरह से नाप का अन्दाज़ लगाना बेहद मुश्किल था। इतने में मरतुच्छिओ ने बकरे के सींग लेकर उन्हें सजाना शुरू कर दिया और वहाँ मौजूद सब लोग फिर से उसे सींगों पर कारीगरी करते हुए देखने लगे। उन सींगों का घुमाव इतना ख़ूबसूरत था कि लोग उनकी तारीफ़ किए बिना नहीं रह सके। कतेरिना नाम की एक सुन्दरी ने तो मरतुच्छिओ को उन पर सुनहरा रंग चढ़ाने की सलाह तक दे डाली।

मरतुच्छिओ ने जब कतेरिना से यह पूछा कि क्या वह वास्तव में ऐसा चाहती है कि इन सींगों को सुनहरा रंगा जाए, तो उसका मुँह शर्म से लाल हो गया और सारे मर्द उस बात पर ज़ोर से हँस पड़े।

दवाई की दुकान के बाहर बैठे लोगों की बातें सुनकर रोज़ीना को यह लगने लगा कि वह जिस काम के लिए यहाँ आई है वह तो हो ही नहीं रहा, तब उसे बुरा लगा और उसने दुखी स्वर में मरतुच्छिओ से कहा — ओहो ! मैं तुमसे अपने बेटे के लिए दवाई ख़रीदना तो भूल ही गई… वह पेट दर्द की शिकायत कर रहा था… चलो, दुकान के अन्दर चलते हैं, मैं तुम्हें बताती हूँ कि उसके लिए मुझे कौनसी दवा चाहिए।

दवाफ़रोश बड़ी विनम्रता से उसके साथ दुकान के भीतर चला गया। बाहर मौजूद लोग मज़ाकिया अन्दाज़ में उन्हें अन्दर जाते हुए देखते रहे। जब रोज़ीना को इस बात का पक्का भरोसा हो गया कि अब उन्हें कोई नहीं देख रहा है, तब उसने बूढ़े औषधविक्रेता का हाथ दबाते हुए फ़ुसफ़ुसाकर धीरे से कहा — सुनो मरतुच्छिओ, मेरी तुमसे एक गुज़ारिश है। तुम मुझे यह बताओ कि क्या मेरा मियाँ टिपे तुमसे सींगों के बारे में बात करने आया था ? मैं तुम्हें यह बताने के दस लीरा दूँगी।

— बिलकुल नहीं बताऊँगा। दस तो क्या, तुम मुझे हज़ार लीरा दो तो भी नहीं बताऊँगा। तुम्हें तो मालूम है कि यह हमारा रिवाज़ है ! तुम ज़रा यह तो सोचो कि यदि मैं ऐसे लोगों के रहस्य खोलने लगूँ तो मुझे सींगों का कोई ऑर्डर ही नहीं देगा।

रोज़ीना टसुए टपकाते हुए बोली — अगर टिपे ने ऐसा कुछ किया है तो वह झूठ बोल रहा है। मैंने उसे कभी धोखा नहीं दिया। तुम तो मुझे ख़ूब जानते हो, क्या मैं ऐसा कर सकती हूँ ? क्या मैं अपने शौहर को धोखा देने वाली लगती हूँ ?

— मैं तुम पर विश्वास करता हूँ। देखो रोज़ीना, मैंने तुमसे यह नहीं कहा है कि तुम्हारे पति ने मुझे सींगों का ऑर्डर दिया है।

— ये बड़े-बड़े सुनहरे रंग के… इतने ख़ूबसूरत … लाल फ़ीते लगे सींग आख़िर किसके लिए हैं ?

इतना कहकर रोज़ीना फिर रोने लगी, लेकिन दवावाले ने उसे कुछ नहीं बताया। उसने फिर से यही दोहराया कि वह उसे कुछ नहीं बताएगा। रोज़ीना ने मरतुच्छिओ को देने के लिए बीस लीरा निकाले ही थे कि इतने में बाहर से लूसिया की कोमल आवाज़ आई — दवावाले साहब, नमस्कार…मैं आपके पास अपने बच्चे के लिए दवा लेने आई हूँ। वह पेट दर्द की शिकायत कर रहा है… अरे रोज़ीना, तुम यहाँ ? कैसे आई हो ? क्या किसी की तबियत ख़राब है ?

तब रोज़ीना को बिना कुछ मालूम किए ही दुकान से निकल जाना पड़ा। उसने उसके बाद सींगों के बारे में पता लगाने की बहुतेरी कोशिशें कीं। जब भी वह इस बारे में मरतुच्छिओ से बताने को कहती, वह टस से मस न होता। घर लौटते समय वह मन ही मन उसे कोसते हुए कहती — गधा कहीं का ! वफ़ादार महिलाओं की बेइज़्ज़ती करता है। इससे अच्छा तो वह ख़ुद के पहनने के लिए सींगों पर सुनहरा रंग चढ़ाए।

3

इन दिनों टिपे में एक बड़ा बदलाव यह आया कि अब वह कभी-भी पहले की तरह हाथ अपने सर पर धरे न बैठा रहता। वह अपनी बीवी के साथ बहुत ज़्यादा प्यारभरी बातें करता और उसके लाड़ लड़ाता। एक बार उसने उसे जाप करने वाली माला दी, तो दूसरी बार सर पर बाँधने वाला एक रंगीन रूमाल तोहफ़े में दिया। वह उसे ऐसे दुलारता मानो उनकी नई-नई शादी हुई हो और उस पर नाराज़ होने से बचता।

इधर रोज़ीना की एक अजीब-सी आदत हो गई थी। जब वह अपने पति के पास बैठी होती, उसका हाथ अनायास अपने पति के गंजे सर की ओर जाने लगता। एक बार उसके सर पर हाथ फेरते हुए वह भीतर ही भीतर यह सोचकर कुढ़ रही थी कि यह कितना बदमाश और पाखण्डी है। उसका सर सहलाते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो उसकी हथेलियों में काँटे चुभ रहे हों। नक़ली हँसी हँसती हुई वह बोली — आप कितने नेक और अक़लमंद हैं, मुझे आपसे बेइन्तहा मोहब्बत है। सुनिए जी, क्या आप जानते हैं कि ये बेवकूफ़ लोग इस साल फिर जुलूस निकाल रहे हैं ?

— मेरी जान, क्या कोई जुलूस निकाल रहे हैं ? मुझे तो कुछ पता नहीं !

— अजी, फिर से वही सींग… कैसी बेहूदगी है यह ! मैं दवाई की दुकान के बाहर से गुज़र रही थी तो देखा कि उसके पास मेले में बारहसिंगा बनने वालों के लिए सजाए जा रहे सींगों का ढेर लगा हुआ है। है न मज़ेदार बात, मुझे तो बहुत हँसी आ रही है !

— हाँ, सुनने में आया है कि इस साल बहुत अधिक लोग बारहसिंगा बनने वाले हैं। मुझे याद नहीं आ रहा है, लेकिन किसी ने तो मुझे बताया था कि इस साल अंगूर की फ़सल अच्छी हुई है इसलिए सींग भी बहुत से लोग पहनेंगे।

— आपका इसके बारे में क्या कहना है ? मुझे तो यह सब बड़ी बेवकूफ़ी लगती है।

— मेरी जान ! यह तो एक रिवाज़ है। कोई इस तरह के रिवाज़ मानता है और कोई नहीं।

— क्या तुम मेले में जाओगे ? जुलूस देखने के लिए ?

— हाँ, देखने तो जाऊँगा। सब जाते हैं, तो मैं घर पर रुककर क्या करूँगा ?

बारहसिंगों के बारे में पति के साथ बात करने के बाद भी रोज़ीना को कुछ साफ़-साफ़ पता न चला। एक दिन टिपे सन्दूक की चाबी घर पर भूल गया। रोज़ीना ने मौके का फ़ायदा उठाकर सन्दूक खोलकर देखा, तो वह ख़ाली था। यह देखकर वह पहले तो बेहद ख़ुश हुई, लेकिन फिर उसे लगा कि टिपे सन्दूक में रखे सींगों की जगह और बढ़िया सींग लाने के लिए उन्हें दवाई की दुकान पर ले गया है या फिर उसने उन्हें किसी दूसरी जगह पर छिपा दिया है। रोज़ीना को यह भी लगा कि मुझे बेवकूफ़ बनाने के लिए चाबी उसने जानबूझकर घर पर छोड़ दी थी। यह सब जानकर उसे बहुत दुख हुआ, पर अब वह करे भी तो क्या करे ?

उस शहर में रोज़ीना जैसी कुछ और स्त्रियाँ भी थीं, जो एक दूसरे की सच्चाई से वाकिफ़ थीं। उन सबने मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने शाम के धुँधलके में वहाँ के पादरी के पास जाकर उनसे यह हानिकारक और रूढ़िवादी रिवाज़ ख़तम करने की गुहार लगाई। बुजुर्ग पादरी ने उनकी बातें ध्यान से सुनी और कहा — मैं जानता हूँ कि यह परिपाटी अच्छी नहीं है और इस बुरे रिवाज़ के ख़िलाफ़ मैं लड़ भी रहा हूँ। एक सच्चे ईसाई को ऐसे ग़लत रिवाज़ का ख़ात्मा शान्ति से करना चाहिए, न कि बेशर्म की तरह सड़कों पर निकलकर, उछल-कूद, शोर-शराबे और अश्लील गीतों से। मेरे प्यारे बच्चो, मैं तो ख़ुद इस गन्दी परिपाटी से बहुत दुखी हूँ, लेकिन जब तुम्हारे पति लोग ही इतने नासमझ हैं, तो मैं कर ही क्या सकता हूँ !

पादरी साहब जब अपनी बात कह रहे थे, तभी गिरजे की देखभाल करने वाली उनकी सहायिका मोटी एस्मिनिया कमरे में घुसी और वहाँ मौजूद औरतों की हिमायत करते हुए बोली — फ़ादर, इनकी मदद कीजिए, आप देख तो रहे हैं कि ये औरतें कितनी दुखी हैं ! इनके मर्द बेकार ही इन्हें बदनाम करते हैं।

फ़ादर ने तिरछी नज़रों से एस्मिनिया को घूरा और अपने गंजे सर पर हाथ फेरते हुए कहा — भई, मैं तो ब्रह्मचारी हूँ। फिर भी मैं यह नहीं समझ पाता कि अपने सर पर सींग लगाकर जुलूस निकालने से उन्हें सुकून कैसे मिलता होगा ? ढोल-ढपली के साथ सर पर नकली सींग लगाकर शहरभर में घूमने से मुझे क्या आराम मिलेगा ? हाँ, ऐसा हो सकता है कि अपने जैसे बहुत सारे लोगों को देखकर मुझे थोड़ा-बहुत सन्तोष मिल जाए।

यह सुनकर एस्मिनिया ग़ुस्से से बोली — ये बात मेरी समझ से परे है कि इससे किसी को सन्तोष कैसे मिल सकता है। हाँ, एक अच्छी-भली वफ़ादार औरत पर तोहमत लगाने से मर्दों को क्या मिल जाता है ! और उनकी बीवियाँ बेचारी समाज में बदनाम हो जाती हैं।

इतना कहकर वह ग़ुस्से में धड़ाम से दरवाज़ा बन्द करके बाहर निकल गई। और पादरी साहब अपनी खोपड़ी के सामने वाले हिस्से पर हाथ फेरते हुए मौन हो गए। फिर ज़रा ही देर में संजीदा होकर कहने लगे — इस तरह से खुशियाँ मनाने से पाप नहीं लगेगा क्या ? यह सब ख़ुद पर आज़माने की ज़रूरत ही क्या है ! कहीं ऐसा तो नहीं कि यह किसी शैतान का बिछाया हुआ जाल हो ? क्या यह गन्दी हरकत हमारे बीच बढ़ती ही जाएगी ? और रोम या पेरिस जैसे बड़े शहरों में भी इस तरह के जुलूस निकाले जाएँगे …।

ऐसे परस्पर विरोधी कथनों से पादरी साहब ने उन औरतों की रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया। मदद पाने के लिए आई सारी की सारी औरतें पादरी साहब को आँख मूँदकर सोचता देखकर चुपचाप एक-एक करके वहाँ से बाहर निकल गईं। रास्ते भर उन्होंने पादरी साहब की इस हद तक खिल्ली उड़ाई कि उनके लिए दवाई वाले की दुकान से उचित सींग तक तय कर लिए।

अबूझ हँसी-मज़ाक का वह दिन, जिसकी कोई तारीख़ तय न थी, पास आ रहा था। अंगूर की फ़सल इकट्ठी करके उसकी वाइन बनाई जा चुकी थी। हर रोज़ गन्दी हँसी-ठिठोलियों का शोर और मैन्डोलिन व गिटार बजने की आवाज़ें भी सुनाई देने लगी थीं। ऐसे में रोज़ीना ने अपने आशिक जूलिओ से मिलने की ठानी। पिछले कुछ दिनों से वह मारे डर के उससे मुलाक़ात नहीं कर रही थी, पर अब वह उससे सलाह लेना चाहती थी। वह यह जानना चाहती थी कि क्या करना बेहतर होगा — पति को सब कुछ साफ़-साफ़ बताकर उससे बेवफ़ाई के लिए माफ़ी माँग ले या फिर यह मानकर चले कि वह सब कुछ जानते-बूझते भी उसे कुछ नहीं कहेगा और सब कुछ पहले की तरह ही चलता रहेगा।

जूलिओ ने जब यह सुना कि इस बार शायद टिपे ने भी मरतुच्छिओ से सींग तैयार करवाए हैं और वे भी सुनहरे, तो वह हक्का-बक्का रह गया, उसका मुँह पीला पड़ गया।

जूलिओ ने निराशा से अपना सिर हिलाते हुए कहा — ऐसा नहीं हो सकता ! हे भगवान, यह साल कितना ख़राब है ! रोज़ीना, क्या तुम्हें मालूम है कि हमारे नोटरी साहब बुम्बा ने भी ख़ुद के लिए सींग बनवाए हैं !

— जूलिओ, मेरा क्या होगा ? यदि टिपे बारहसिंगे का भेस धरेगा, तो मैं यह सब सह नहीं पाऊँगी, मैं तो शरम से मर जाऊँगी। टिपे सचमुच बेहद नेक आदमी है, बेहतर यह होगा कि मैं उसके सामने अपनी ग़लती मान लूँ।

यह सुनकर जूलिओ ग़ुस्से में लाल-पीला हो गया और उसने कहा — यदि उसने सींग बनवाए हैं और वे भी सुनहरे, तो वो नेक आदमी तो नहीं है।

रोज़ीना ने थोड़ी नाराज़गी से कहा — हम लोग अमीर हैं, इसलिए सींग तो सुनहरे होने ही थे। इस मामले में तो तुम्हारी और हमारी भला, क्या बराबरी। ख़ैर, इसे छोड़ो। अब सवाल यह है कि यदि मैं टिपे को तुम्हारे साथ अपनी क़रीबी के बारे में बताऊँ और बाद में मालूम हो कि उसे तो इस बारे में कुछ पता ही न था, तो यह सब जानकर तो वह हैरान हो जाएगा !

जूलिओ ने सहमति में अपना सिर हिलाते हुए कहा — हाँ, शायद ऐसा ही होगा। और एक बात यह भी है कि यदि तुम उसे हमारे रिश्ते के बारे में बताओगी, तो अग़र उसने सींग नहीं भी ख़रीदे होंगे तो अब ख़रीद लेगा और यह बात अच्छी नहीं होगी। मेरा तो मानना है कि भगवान जो करेगा ठीक ही करेगा। हाँ, अब हमें थोड़ा चौकन्ना रहना होगा। आगे से हम नहीं मिलेंगे। अब न तुम मेरे पास आना और न मुझे अपने घर बुलाना और चर्च में तो मेरी तरफ़ देखना भी नहीं। नमस्ते !

रोज़ीना की रुलाई फूट पड़ी, टसुए बहाते हुए वह बोली — जूलिओ, तुम बहुत ख़राब आदमी हो, अग़र मुझे पहले पता होता तो मैं तुम्हारे इश्क़ में नहीं फँसती।

— अच्छा, तो क्या तुम्हें मुझसे इश्क़ हो गया ! क्या हम इश्क़ करने के लिए मिलते थे ! यह बताओ कि तुम इतनी लापरवाह क्यों थी कि तुम्हारे टिपे को हमारे बारे में पता चल गया ? तुम्हारी तो कोई इज़्ज़त है नहीं, लेकिन मुझे तो अपनी इज़्ज़त की परवाह है। मैं नहीं चाहता कि लोग मेरी तरफ़ उँगली उठाएँ और मुझे दिखा-दिखाकर मेरा मज़ाक उड़ाएँ और कहें — वो देखो, टिपे की बीवी का आशिक़ जा रहा है ! मैं तो समाज में सिर उठाने के क़ाबिल नहीं रहूँगा। अब बेहतर यही होगा कि मैं यह शहर छोड़कर चला जाऊँ। ख़ुदा हाफ़िज़ !

और जूलिओ रोज़ीना को छोड़कर चला गया। रोज़ीना ने फ़ैसला किया कि वो रातभर अपने पति की निगरानी करेगी और अग़र टिपे बारहसिंगों के जुलूस में जाएगा तो वो उससे सींग छीन लेगी।

रोज़ीना उस दिन का इन्तज़ार करने लगी जब अपनी-अपनी बीवियों की बेवफ़ाई से नाराज़ ख़ाविन्द अचानक बारहसिंगों का जुलूस निकालेंगे। वह सारी-सारी रात नहीं सोती थी ताकि टिपे से उसके सींग छीन सके। परन्तु सुबह-सुबह उसे इतनी गहरी नींद आ जाती कि फिर दोपहर में ही आँख खुलती थी। जब वह सोकर उठती तो सबसे पहले घबराकर वह यही सोचती कि टिपे घर पर है कि नहीं। उधर टिपे उनींदी रोज़ीना को प्यार से देखता और पूछता — अरे, क्या बात है ? तुम आजकल बहुत देर से उठने लगी हो। तुम्हारी तबियत तो ठीक है ? अगर तुम्हें हरारत है तो चलो डॉक्टर के पास चलते हैं।

4

और फिर वो दिन आ गया। देर सुबह जब रोज़ीना की आँख खुली तो धूप चढ़ आई थी और टिपे घर पर नहीं था। कहीं दूर से गाने-बजाने और लोगों के चीख़ने-चिल्लाने की आवाज़ें आ रही थीं। रोज़ीना एक मिनट में समझ गई कि यह शोर बारहसिंगों का है। बेवफ़ाई के शिकार शौहर उन्माद और जूनून में दीवाने होकर बावलों की तरह चीख-चिल्ला रहे हैं। टिपे भी उनके बीच होगा — यह सोचकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।

रोज़ीना बेहद परेशान और चिन्तित थी। उसने सोचा कि आज मैं घर से नहीं निकलूँगी। टिपे ने मुझे शक़्ल दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा। ऐसे इन्तिक़ाम सहने से तो मर जाना बेहतर है। वो बिस्तर में ही टसुए बहाने लगी।

अचानक उसके मन में एक ख़याल आया — कहीं ऐसा तो नहीं, हमेशा की तरह वो बस, बारहसिंगों का जुलूस देखने गया हो। और वो बिस्तर से उछलकर खड़ी हो गई।

वह जल्दी-जल्दी नहाई-धोई और ड्रेसिंग-रूम में जाकर अपने कपड़े निकालने लगी। वह यह नहीं समझ पा रही थी कि उसे कौनसी पोशाक पहननी चाहिए। वह चटकीले बेलबूटों वाली कोई रंग-बिरंगी ड्रेस पहने, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो या फिर उन बीवियों की तरह काले कपड़े पहने, जिनकी बेवफ़ाई की बात उनके खसमों ने सबके सामने खोल दी हो। आख़िरकार उसने गहरे रंग का सुरमई स्कर्ट और उससे मिलता-जुलता ब्लाउज़ पहनने के लिए निकाल लिया। उसे लगा कि इस मौक़े पर ऐसे ही कपड़े पहनना ठीक होगा। इसके साथ ही उसने वो चटक रंगीन रूमाल अपने सिर पर बाँध लिया, जो टिपे ने उसे तोहफ़े में दिया था और अपने गले में एक ख़ूबसूरत, चमकदार हार पहन लिया। वो बेहद आकर्षक लग रही थी। राह पर चलते समय जब रोज़ीना अपनी हयादार पलकें ऊपर उठाती तो बेहद वफ़ादार और हँसमुख लगती, पर जब पलकें झुकाती तो लगता कि वह ग़म में है। उसने अपने हाथ में एक सौ आठ मोतियों वाली जाप की माला लपेट रखी थी।

अपने ही ख़यालों में डूबी रोज़ीना धीरे-धीरे उस दिशा में जा रही थी, जहाँ से ढोल-ताशे बजने की आवाज़ें आ रही थीं। जुलूस से पहले जलसे में लोग इकट्ठे हो रहे थे। कुछ देर बाद जब जुलूस शुरू हुआ तो उसे वही दिखाई दिया, जिसका डर उसे सता रहा था। जुलूस में आगे ही आगे उसका पति टिपे किसी जानेमाने आदमी की तरह बड़ी शान से चला जा रहा था। सुनहरे रंग के बैल के जो ख़ूबसूरत सींग उसके सिर पर लगे थे, रोज़ीना उन्हें देखते ही पहचान गई। टिपे एक शानदार, लम्बा सिगार पीते हुए बड़े आराम से चल रहा था। उसे देखते ही रोज़ीना वहीं की वहीं बैठ गई। अच्छा हुआ कि उसके सामने केली के चौड़े-चौड़े पत्ते थे, जिनकी आड़ में शायद ही वह टिपे को दिखाई दी होगी। अब वो वहाँ से भागकर जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँच जाना चाहती थी।

बारहसिंगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। चारों ओर से आ-आकर दूसरे बारहसिंगे जुलूस में जुड़ते जा रहे थे और उसकी लम्बाई बढ़ती जा रही थी। ज़्यादातर बारहसिंगों के हाथ में कोई न कोई बाजा था, जिसे बजा-बजाकर वे मजमे का ध्यान अपनी ओर खींच रहे थे।

जब घर के बाहर इतनी रौनक हो तो भला, बच्चे घर में शान्त कैसे बैठे रह सकते हैं। इस जश्न का मतलब समझे बिना ही बच्चे हो-हल्ला करते और ख़ुशी से चिल्लाते हुए जुलूस देखने के लिए बाहर आ गए थे और बारहसिंगों के झुण्ड में अपने पिता और अन्य रिश्तेदारों को देखकर बेहद ख़ुश हो रहे थे।

चारों तरफ़ से हल्ले-गुल्ले की आवाज़ें आ रही थीं। बारहसिंगों के बीच कई संगीतप्रेमी भी थे, जो गा-बजा रहे थे और नाच रहे थे। बारहसिंगों की तादाद को देखकर यह लग रहा था कि यह साल बहुत सफल रहा है और इसमें हर वर्ग और हर स्तर के लोगों को उनकी बीवियों ने बारहसिंगा बनाया है।

जुलूस के दर्शकों के बीच सिर्फ़ बच्चे और पुरुष ही नहीं थे, बल्कि बहुत सी स्त्रियाँ भी थीं। ज़ोर-ज़ोर से उनके चहकने की आवाज़ें आ रही थीं। बारहसिंगों को देखकर वे उनका मज़ाक उड़ा रही थीं। कुछ औरतें अपने परिचित बारहसिंगों से हमदर्दी जता रही थीं और उनकी आवारा बीवियों पर खीज रही थीं। एक बारहसिंगे को देखकर अचानक कुछ औरतें ठहाके लगाने लगीं। एक औरत ऊँचे सुर में चिल्लाईं — अरे… अरे… वो देखो, हमारे मोहल्ले का मोटू बेनेवोलिओ भी बारहसिंगा बना है ! क्या इसकी मोटी और बेडौल बीवी भी आवारागर्दी करती है ? बकरे के सींगों वाले बेनेवोलिओ साहब ने उस औरत की बात सुन ली और जवाब में उसकी तरफ़ देखकर बस, आँख मारी और आगे बढ़ गए।


— ये लो, ये आए लिओने मियाँ ! आदाब मियाँ, आदाब !

लिओने ने नाचते हुए बिना पीछे मुड़े ही जवाब दिया — हैलो कन्छिता, कैसी हो तुम ?

कन्छिता से दुआ-सलाम करके लिओने ने अपना सीधा पाँव ऐसे घुमाया जैसे शिवजी एक पैर पर खड़े हों। उनकी यह मुद्रा देखकर सब ज़ोर-ज़ोर से खिलखिलाने लगे।

धोखा खाए इन मर्दों के जुलूस में सींग पहने हुए हर मर्द वैसा ही लग रहा था जैसा वह सचमुच अपने जीवन में था। लिओने जितना मस्त नाचता हुआ आगे बढ़ रहा था, उसकी बग़ल में चल रहा लम्बी नाक वाला बूढ़ा मछुआरा जियोवानी जैसे-तैसे घिसट रहा था। इनके पीछे था बाँका रिकार्दो, जिसकी हाल ही में शादी हुई थी और अब कुछ ही महीनों बाद बारहसिंगों की झाँकी में वह छैल-छबीला बना हुआ था। उसके चौड़े माथे पर गधे के छोटे-छोटे सींग उगे हुए थे, जिनके नुकीले कोने सुनहरी थे। वह दर्शकों के जोशीले बर्ताव का जवाब देते-देते थक चुका था और उसका घमण्ड चूर-चूर हो चुका था। जबकि घुँघराले बालों वाले मस्तमौला अलेसियो का सलूक एकदम अलग था। उसने अपने सींगों के कोनों पर बैंगनी रंग चढ़ा रखा था और जब वह इतराता हुआ अपना सर इधर-उधर हिलाता था, तो उसके सींगों पर बँधी हुई छोटी-छोटी घंटियाँ टन-टन बजती थीं। बच्चे-बड़े सभी उसे ज़ोर-ज़ोर से कुछ न कुछ कहकर उससे मज़ा लेते और उसकी उन छोटी-छोटी घंटियों की ख़ूब तारीफ़ करते। एक-दो ने तो यह भी कहा — शाबाश अलेसियो! मेरी तरफ़ से एक गिलास वाइन का वादा रहा !

भूमध्य सागर में बने इस द्वीप की इस अनोखी परम्परा में नोटरी बाबू बुम्बा जी भी शरीक हुए थे। उन्हें देखते ही लोग ख़ुशमिजाज़ी से चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे — देखो ! देखो ! वे रहे बुम्बा साहब ! सलाम बुम्बा जी ! सलाम ! सलाम !

नोटरी बाबू ने भी जुलूस के दर्शकों का अभिवादन किया, पर वे कुछ खोए-खोए से थे। दरअसल, उनका ध्यान यहाँ जुलूस में कम, अपने कामकाज में ज़्यादा था और वे लगातार अपने धन्धे और गाहकों के बारे में सोच रहे थे। उनके सर पर छोटे-छोटे, गन्दे-से, टेढ़े-मेढ़े सींग जैसे-तैसे लगे हुए थे। उनके सींग एक तरफ़ को लटके हुए थे, पर उन्हें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं थी। उनकी ऐसी लापरवाही देखकर तमाशगीर उन पर ग़ुस्सा करने लगे। कुछ ने तो उनके सींग पहचान लिए। ये वही सींग थे, जो पिछले साल कंगाल पिएत्रो ने पहन रखे थे। उसके बाद तो लोग मज़े लेते हुए ज़ोर-ज़ोर से कहने लगे — अरे भई ! इतनी भी क्या कंजूसी, कम से कम आज तो नए सींग ख़रीद लिए होते !

लोग जुलूस को बड़े कौतूहल से देख रहे थे। तभी उनकी नज़र जनाब मरतुच्छिओ पर पड़ी। बूढ़े मियाँ की आँखों से चालाकी झलक रही थी। उनके गंजे सर पर बड़े-बड़े, सीधे सींग लगे हुए थे, जिनके सिरों पर चाँदी की कलई चढ़ी हुई थी।

दर्शकों के बीच मौजूद औरतें मरतुच्छिओ को फटकार रही थीं, पर मर्द उनके सींग सजाने के काम की बड़ी तारीफ़ कर रहे थे। मरतुच्छिओ जी सबके साथ दुआ-सलाम और हँसी-मज़ाक करते हुए आगे बढ़ रहे थे। बीच-बीच में उनका हाथ अपने सर पर लगे सींगों पर चला जाता था क्योंकि अपनी जवानी में उन्होंने बतौर सैनिक काम किया था और उन्हें सल्यूट करने की आदत पड़ चुकी थी। वे बड़े व्यवहार कुशल दवाई वाले थे। पूरे जुलूस में चल रहे बारहसिंगों को अपने हाथ से दिखाते हुए वे बड़े फ़ख़्र से बोले — ये सारे के सारे सींग मैंने ही बनाए हैं। ख़ूबसूरत हैं न !

अपनी धुन में चलते-चलते मरतुच्छिओ नोटरी बाबू से आगे निकल गए और उन्होंने पीछे मुड़कर उनसे कहा — अरे ! जनाब बुम्बा जी ! आप कम से कम आज त्योहार के दिन तो कामकाज की बात न सोचें ! मैंने तो बस, एक काग़ज़ दिया है, यह कहकर बुम्बा जी भी उनके साथ हो लिए।

दिन चढ़ गया था, गरमी होने लगी थी। शहर में घुसने से पहले जुलूस चाय-पानी और जाम पीने के लिए एक जगह पर रुका। ज़्यादातर लोग मेज़ों के चारों तरफ़ बैठ गए। उनमें से कुछ एक ने अपने सींग उतारकर उन्हें अपने सामने मेज़ पर रख लिया, फिर पसीने से तर अपना माथा पोंछकर और कुछ हवा खाकर उन्हें फिर से पहन लिया। बुजुर्ग लोग अपनी खेतीबाड़ी की बातों में मशगूल हो गए। अंगूर की खेती, उसमें लग सकने वाले कीड़ों और इस साल समय से पहले शुरू हुई सुबह-शाम की सर्दी पर सबके अपने-अपने विचार थे।

नौजवान बारहसिंगें वहीं एक मैदान में घास पर खेलने और नाचने लगे। मोटे बेनेवोलिओ साहब ढपली बजाने लगे और ख़ुशमिजाज़ एलेसियो उसकी थाप पर नाचने लगा। मज़ेदार बात यह हुई कि स्त्री-पुरुष के इस युगल नाच में किसी स्त्री पार्टनर की जगह रिकियार्डो था और वे लोग एक विरह नाच नाच रहे थे।

थोड़ी देर आराम करने के बाद जुलूस आगे बढ़कर शहर की सड़कों पर पहुँचा, जहाँ रास्तों के दोनों तरफ़ के घरों के खिड़की-दरवाज़ों पर बारहसिंगों को देखने के लिए दर्शक पहले से ही खड़े थे। इनके बीच वे आवारा महिलाएँ भी थीं, जिनके पति ये अनोखा जुलूस निकाल रहे थे। जुलूस जब मोटे बेनेवोलिओ के घर के नीचे पहुँचा, तब उसकी बीवी लुकरेत्सिया खिड़की से झाँक रही थी। उसके बाल बिखरे हुए थे। रोने-चीख़ने से उसकी आँखें सूज गई थीं। वह अपने पति द्वारा लगाए गए झूठे इलज़ाम के लिए चिल्ला-चिल्लाकर अपने शौहर को फटकार रही थी, ताकि पूरी गली उसकी बात सुन सके — ज़रा इस पियक्क्ड़-बदमाश को तो देखो ! इस झूठे पर यकीन ही कौन करेगा ! इस फ़रेबी पर बिजली गिरे और इसको नरक में भी जगह न मिले !

बेनेवोलिओ खिलखिलाता हुआ खिड़की के सामने खड़ा हो गया और वह इतनी ज़ोर-ज़ोर से ढोल पीटने लगा कि उसके शोर में लुकरेत्सिया की आवाज़ दब गई । तब वह बेचारी और अधिक नाराज़ हो गई और उसने फटाक से खिड़की बन्द कर दी।

लुकरेत्सिया की यह अदा देखकर तमाशबीन चिल्लाए — अरी, ओ धोखेबाज़, अब रो रही है। जब मस्ती कर रही थी तब नहीं सोचा ! आवारा ! दग़ाबाज़ ! तेरे साथ तो ऐसा ही सलूक होना चाहिए।

जुलूस धीरे-धीरे आगे खिसक रहा था। अभी वह कुछ ही मीटर आगे खिसका था कि एलेसियो की पत्नी एमीलिया दौड़कर अपने घर से बाहर निकल आई। हाय-हाय करते हुए उसने एलेसियो का गिरेबान पकड़ लिया और उसे घर में खींचने की कोशिश की। पर एलेसियो अपनी ही रौ में तुरही बजाता हुआ आगे बढ़ता गया। बेचारी एमीलिया को भी उसके पीछे-पीछे घिसटना पड़ा। यह नज़ारा देखकर लोग उनका मज़ाक उड़ाने लगे और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। अन्त में तंग आकर एमीलिया ने पति को छोड़ दिया और उस पर गालियों की बौछार करने लगी। अब वह भी उसके साथ-साथ चल रही थी। जब-जब जुलूस रुकता, वह भी उसके साथ उसी के गिलास से जाम पीती।

पादरी साहब का घर भी जुलूस के रास्ते में था। वे अपने छज्जे में खड़े होकर जुलूस देख रहे थे। लोग उनके सामने सिर झुका रहे थे। पादरी जी एकदम शान्त थे, पर उनकी प्रमुख सहायक एस्मिनिया अपना सर खिड़की से बाहर निकालकर जुलूस में शामिल बारहसिंगों को भला-बुरा कह रही थी। उसकी गालियाँ सुनकर लोग फिर से जोश में आ गए और हो-हल्ला करते हुए हँसने लगे।

दवाफ़रोश मरतुच्छिओ हालाँकि नास्तिक था पर उसने ज़ोर देकर पादरी जी से कहा — सारे मर्द सड़क पर हैं और आप घर में अकेले बैठे हैं। इससे तो अच्छा होता कि आप हमारे साथ आ जाते। आप सींगों की चिंता न करें, उसका इन्तज़ाम हम लोग कर देंगे।

दवाफ़रोश की इन बातों का पादरी साहब ने ज़रा भी बुरा नहीं माना और वे बहुत देर तक अपने छज्जे में खड़े उन्हें देखते रहे। जुलूस में शामिल संगीतप्रेमी बारहसिंगों ने उनके लिए विशेषतौर पर प्रसिद्ध ऑस्ट्रियाई संगीतकार फ्रांज़ शूबर्ट का ईसाई धार्मिक संगीत ‘आवे मरिया’ बजाया, जो पादरी जी को बहुत पसन्द आया। वे इन संगीतप्रेमी बारहसिंगों के लिए अपने घर की बनी वाइन के जाम पेश करना चाहते थे, पर एस्मिनिया ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।

बारहसिंगे देर रात तक मस्ती करते रहे और उनकी बीवियाँ घर में रोती-बिलखती रहीं। मग़र आज तक किसी को यह मालूम नहीं है कि इन बेहया, आवारा औरतों के आशिक़ कहाँ छिपे हुए हैं। ऐसा जान पड़ता था कि वे उस द्वीप को हमेशा के लिए छोड़कर भाग चुके हैं।

5

जुलूस ख़तम होने के बाद टिपे जब देर रात को मौजमस्ती के बाद अपने घर लौटा तो रोज़ीना चादर से सर ढककर सो रही थी। उनका बेटा भी सोया हुआ था। टिपे बहुत नशे में था और बेहद ख़ुश था। वह धीमे-धीमे कुछ गुनगुना रहा था। उस दिन रोज़ीना ने बड़े ध्यान से घर की साफ़-सफ़ाई की थी और बड़े प्यार से अपने पति के लिए खाना बनाकर रखा था। टिपे को खाना इतना स्वादिष्ट लगा कि वह उँगलियाँ चाट रहा था।

रोज़ीना सर ढककर लेटी हुई थी और गहरी नींद में होने का बहाना कर रही थी। वह डर रही थी कि कहीं टिपे उसे जगाने की कोशिश न करे ? टिपे ने उसे तो नहीं जगाया, पर बेटे को उठाकर उसके साथ बहुत देर तक खेलता रहा। भोलेभाले बच्चे ने अपने पापा से पूछा — क्या बड़ा होकर मैं भी आपकी तरह जुलूस में जाऊँगा ? पापा, आपको वहाँ देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। आप बहुत ख़ूबसूरत लग रहे थे !

टिपे ने बेटे को चूमते हुए कहा — हाँ बेटा, बड़े होकर मेरी तरह तुम भी इस अनोखे मेले में जाना।

इतना कहकर टिपे ने बेटे को सुला दिया और ख़ुद रोज़ीना की बग़ल में लेट गया। पूरे घर में शान्ति छाई हुई थी। रोज़ीना ने बिस्तर पर अपने पास लेटे हुए टिपे की ओर हाथ बढ़ाना शुरू किया। उसे यह नहीं मालूम था कि टिपे प्यार से उसका हाथ थाम लेगा या ग़ुस्से से उसे झटक देगा ! बहुत देर तक सोचने के बाद उसने डरकर धीरे से उसका कन्धा छुआ। बहुत इन्तज़ार करने के बाद भी टिपे ने उसे कोई जवाब नहीं दिया। वह बेहद थका हुआ था, इसलिए अब वह ऐसे सो रहा था जैसे घोड़े बेचकर सोया हो। और रोज़ीना उस दिन दूसरी बार फूट-फूटकर रो रही थी।


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सरोज शर्मा

भाषा एवं पाठ सम्पादन : अनिल जनविजय

मूल रूसी भाषा में इस कहानी का नाम है रगअनोस्त्सी (Леонид Андреев — Рогоносцы)