बारूद गोदाम पर माचिस पहरेदार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 सितम्बर 2018
एक सितंबर 1939 को दूसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ था। अब यह तय है कि चौथा विश्वयुद्ध नहीं होगा, क्योंकि अगर तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो सभी कुछ नष्ट हो जाएगा। अनेक देश आणविक शस्त्रों से सुसज्जित हैं और इस भय के कारण ही शांति बनी हुई है। यह शांति आपसी समझदारी और सद्भावना से उत्पन्न नहीं हुई है। अत: 'ओम शांति ओम' हम जप नहीं सकते। साहिर लुधियानवी की पंक्तिया याद आती हैं, 'गुजश्ता जंग में तो घर बार ही जले/ अजब नहीं इस बार जल जाए तन्हाइयां भी/ गुजश्ता जंग में तो पैकर (शरीर) ही जले/ अजब नहीं इस बार जल जाए परछाइयां भी।
दूसरे विश्वयुद्ध का प्रभाव भारत पर भी पड़ा था परंतु उसकी धरती पर युद्ध नहीं हुआ था। इस तथ्य से बहुत अंतर पड़ता है। युद्ध के हवन कुंड में विजेता और पराजित दोनों के हाथ जल जाते हैं। यूरोप और अमेरिका में दूसरे विश्वयुद्ध पर आधारित इतनी अधिक फिल्में बनी हैं कि अगर युद्ध के अन्य दस्तावेज नष्ट भी हो जाएं तो फिल्मों के आधार पर उसके हर दिन का हिसाब कितना मिल सकता है। इस तरह दूसरे विश्वयुद्ध की डायरी सेल्युलाइड पर लिखी हुई है और वह अक्षुण्ण है, क्योंकि उस समय माध्यम डिजिटल नहीं था। आज कुछ अमेरिकन फिल्मकार महसूस करते हैं कि सेल्युलाइड लंबे समय तक कायम रहता है। वे लोग डिजिटल तजकर सेल्युलाइड पर लौट रहे हैं। क्रिस्टोफर नोलन लौट चुके हैं। रूस में बनी 'बैलाड ऑफ ए सोल्जर' एवं 'क्रेन्स आर फ्लाइंग' तथा अमेरिका की 'द लॉन्गेस्ट डे' दस्तावेजनुमा फिल्में हैं। साहित्य में लिअॉन यूरिस का उपन्यास 'आर्मागेडॉन' व अल्बर्टो मोराविया की उपन्यास 'आर्च ऑफ ट्रायम्फ' और 'डायरी ऑफ एना फ्रेंक' महान रचनाएं हैं। अल्बर्टो मोराविया के 'ट्रू वुमन' पर सोफिया लॉरेन अभिनीत फिल्म महान मानी जाती है। स्टीवन स्पीलबर्ग की श्याम श्वेत फिल्म 'शिंडलर्स लिस्ट' के एक शॉट में एक बालक द्वारा पहना मफलर लाल रंग का है और चटख रंग उस स्याह फ्रेम में रक्त का प्रभाव उत्पन्न करता है। यह फिल्म सत्य घटना से प्रेरित है। हिटलर की सेना ने यहूदियों पर बहुत जुल्म ढाए। इसके विषय में राकेश मित्तल ने अपनी किताब 'विश्व सिनेमा की सौ श्रेष्ठ फिल्में' में लिखा है- 'फिल्म की शुरुआत में मोमबत्तियों की लौ रंगीन दिखाई देती है ये बुझती है और काले धुंए की उंगली पकड़कर आगे श्वेत-श्याम कथानक प्रारंभ हो जाता है। ज्ञातव्य है कि रंगीन फिल्मों के दौर में यह श्वेत-श्याम फिल्म बनाई गई है, क्योंकि मानवीय दर्द और करुणा श्वेत-श्याम में अधिक प्रभाव उत्पन्न करती है। इसमें एक तरफ अनंत यातनाएं, अपरिमित दुख और अनगिनत छल है तो दूसरी तरफ इन्हें सहन करने की और इनसे लड़ते रहने की असमान्य ज़िद, असीमित इच्छा शक्ति और अदम्य जिजीविषा भी है।' इस कथा में ऑस्कर शिंडलर नामक उद्योगपति 1200 यहूदियों को नाजी सेना से मुक्त कराकर उनके प्राण बचाता है।
दूसरे विश्वयुद्ध के समय हिटलर ने यहूदियों को कष्ट देने के लिए कैंप्स की रचना की थी। एक कथा इस तरह है कि यातना शिविर के आला अफसर की एक आंख पत्थर की है। वह युद्ध में जख्मी हुआ था और जर्मन सर्जन ने ऑपरेशन किया था। वह एक बूढ़े अधमरे यहूदी को बुलाकर कहता है कि अगर वह यह बता पाएगा कि कौन-सी आंख पत्थर की है तो वह उसे स्वतंत्र कर देगा। बूढ़ा अधमरा कैदी एक ही क्षण में सही जवाब देता है कि उसकी दाईं आंख पत्थर की है। आला अफसर पूछता है कि यह उसने कैसे किया। बूढ़े व्यक्ति का जवाब था कि बाईं आंख में कुछ करूणा है जिस कारण उसने उसे पहचान लिया। यह एक छोटा-सा दृश्य उस कालखंड की बर्बरता का पूरा वर्णन कर देता है। इस तरह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी उस युग में बने वृतचित्रों एवं बाद में बनाई गई कथा फिल्मों के माध्यम से भी जानी जा सकती है। मार्गरेट बर्क व्हाइट नामक महिला ने गांधी जी के जीवन और दांडी यात्रा के फोटोग्राफ्स लिए हैं। सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' भी एक विश्वसनीय दस्तावेज की तरह बनाई गई है। गोविंद निहलानी की 'तमस' है और एक फिल्म का नाम है 'मैंने गांधी को नहीं मारा'। अनुपम खेर और उर्मिला मातोंडकर अभिनीत यह फिल्म देखना भी अभिनव अनुभव है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित 'मंगल पांडे' केतन मेहता की फिल्म है। सोहराब मोदी की 'झांसी की रानी'।
कंगना रनोट अभिनीत 'झांसी की रानी' बन चुकी है परंतु प्रदर्शन तय नहीं हो पाया है। आमिर खान और आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'लगान' एक काल्पनिक कथा प्रेरित फिल्म है परंतु आम आदमी के साहस और संघर्ष की गाथा है। निहत्थे आदमी के दम खम की ऐसी फिल्म है कि हम कह सकते है 'बंदे में था दम'। राज कुमार हिरानी की 'लगे रहो मुन्ना भाई' क्लासिक का दर्जा रखती है। मुन्ना भाई शृंखला की कड़ी 'मुन्ना भाई चले अमेरिका' की घोषणा हुई थी। राज कुमार हिरानी एक फिल्म में मुन्ना भाई को अमेरिका के राष्ट्रपति से मिलाना चाहते थे। हिरानी अपनी पटकथाओं पर परिश्रम करते हैं। बहरहाल, उनकी इस घोषणा के बाद करण जौहर ने 'माइ नेम इज खान' में कुछ उसी तरह की बात अपने चिरपरिचित अधकचरे ढंग से बयां कर दी। इस तरह की कथा की भ्रूण हत्या होती रहती है। बहरहाल, एक सितंबर 1939 को ग्रह नक्षत्रों की दशा क्या थी और वैसा दुर्योग कब घटित होगा। यह इसी विधा के जानकारों की वर्जिश करा सकता है।