बार-बार पिचहत्तर / सूर्यबाला
कुछ वर्षों पहले मैंने एक व्यंग्य रचना लिखी थीए ष्पचास के हुए लेखक। ष् रचना एक नामी गिरामी पत्रिका में छपी थी और काफी चर्चित भी हुई थीए जाहिर हैए पचास के हुए लेखकों के बीच। इससे प्रेरणा लेकर कुछ वर्षों बाद मैंने दूसरा व्यंग्य लिखा । ष्साठ के हुए लेखकष्ण्ण्ण् मेरा कैलकुलेशन सही निकला और यह व्यंग्य भी पर्याप्त चर्चित हुआ क्योंकि पचास की उम्र वाले लेखक ही अब साठ के हो रहे थे।
अपनी रचनाओं को चर्चित कराने वाले इस स्वचालित फार्मेले पर मैं गद्गद् हो ही रही थी कि अचानकए उम्रदराजों पर लिखी जाती मेरी इस व्यंग्य।श्रृंखला पर जलजला-सा आ गया। वह इस तरह कि हिन्दी की एक वरिष्ठ लेखिका के पिचहत्तरवें जन्मदिवस पर नगर की एक सम्मानित संस्था द्वारा मुझे निमंत्रित किया गया और उनके साथ बिताए लंबे समय की स्मृतियों को सुधी श्रोताओं के साथ शेयर करने का अनुरोध भी किया गया।
मुझे सहसा कुछेक वर्षों बाद के अपने पिचहत्तरवें भविष्य का ध्यान हो आया और मैंने सहर्ष हाँ कर दी। समारोह में भी मैंने उक्त लेखिका के लेखन और जीवन के स्वर्णिम इतिहास पर ऐसा आत्मीय वक्तव्य प्रस्तुत किया जो हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक लेखिका द्वारा दूसरी लेखिका पर या एक रचनाकार द्वारा दूसरे रचनाकार पर दिया जाने वाला इकलौता वक्तव्य था। समारोह समाप्त हो गया लेकिन तालियों गड़गड़ाहट मेरे कानो में तब तक बजती रही जब तक अगले दिन प्रातःकाल फोन की घंटी नहीं बज गई. फोन पर पहले तो मुझे समारोह में श्रोताओं की बजायी तालियों की रिकार्डिंग सुनाई गई फिर बताया गया कि शहर के एक अन्य वरिष्ठ और प्रख्यात; उस लेखिका से भी कहीं ज्यादाण्ण्ण्द्ध लेखक की दो सप्ताह बाद पिचहत्तरवीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। अतः आप से साग्रह निवेदन है कि अपनी उपस्थिति और वक्तव्य से हमें कृतार्थ करें। मैंने उनसे क्षमा याचना करते हुए कहा कि लेकिन दो सप्ताह पश्चात तो मैं अमेरिका जा रही हूँ। उन्होंने बिना ज़रा भी परेशान हुए सुझाव दिया ष्कोई बात नहीं। आप वक्तव्य लिख कर दे जाइए बसष्
उक्त लेखक भी चूंकि सचमुच वरिष्ठ और परिचित थे और इस बीच मेरे पिचहत्तरवें जन्मदिवस की दूरी भी दो सप्ताह कम हो गई थीए अतः मैंने उक्त लेखक के भी भूत भविष्य और वर्तमान का झंडा गाड़ते हुए एक फड़कता हुआ तफसिरा लिखा और संस्था अध्यक्ष को थमा कर अमेरिका प्रस्थान कर गई.
अमेरिका में चैन से रही। चूंकि बराक ओबामा की माताजी अपना पिचहत्तरवां जन्मदिन काफी पहले मना चुकी थीं और ओबामा स्वयं ईराक और अफगानिस्तान के मसलों में फंसे मंदी के बुरे दिनों से गुजर रहे थेए तथा जन्मदिन जैसे खुशहाल दिन की कल्पना से कोसों दूर थे। अतः किसी अमेरिकी पत्रिका या पत्रकार द्वारा मुझसे संपर्क साधने की कोशिश नहीं की गई लेकिन साढ़े तीन महीने बादए मुंबई वापसी पर इंदिरा गांधी वायुपतन पर चारो तरफ इकट्ठी भीड़ और सरगर्मी देख कर मैं चकित रह गई. पास ही खड़े एक परिचित सज्जन से पूछा । ये एयरपोर्ट पर इतनी भीड़ कैसे हैघ् ष्क्या लालू यादव और ममता बनर्जी एक साथ मुंबई आ रहे हैंघ्ष्ण्ण्ण्ण् उन्होंने विनम्र भाव से कहा एष्जी नहीं ये तो आपसे ही मिलने आये हैं। मुझसेघ्ण्ण्ण् लेकिन क्योंघ्ष् कहने के साथ ही मुझे डर लगाए कहीं मेरे हैंड।बैगेज या पर्स में किसी ने हिरोइन की पुड़िया वगैरह तो नहीं सरका दी! ण्ण्ण्
लेकिन सज्जन कह रहे थे ।ष्ये सब पिचहत्तर के हुए लेखक हैं। आपको अपनी पिचहत्तरवीं वर्षगांठ पर बुक करने के लिए एयरपोर्ट आये हैं। ष्
मैं परेशान हो गई । कैसी बातें करते हैंघ् अभी चार महीने पहले शहर के सारे लेखकों को ठीक।ठाक हालत में छोड़ कर गई थी । इतनी जल्दी वे बूढ़े कैसे हो सकते हैंघ्
ष्बूढ़े कौन कह रहा हैण्ण्ण् सब पिचहत्तर के हुए हैं ण्ण्ण्ष्
पिचहत्तर मतलब बूढ़ा ही तोघ्
नहींए ये पिचहत्तर के युवा लेखक हैं । हिन्दी लेखकों को यह सुविधा मिली है कि जब तक वे समीक्षकों द्वारा सुविख्यात नहीं माने जातेए तब तक वे युवा बने रह सकते हैं।
लेकिन इतने सारे लेखकों पर भला मैं अकेली कैसे लिख सकती हूंघ्
तो मेरा कहा मानिएए सहायक रख लीजिएण्ण्ण् लेकिन अवसर मत चूकिए. वैसे भी जीवन और लेखन में बहुत चूकी हैं आप । दलित तो दलितए स्त्री होने के बावजूद एक धांसू स्त्री विमर्श तक नहीं कर पाई आप। अन्य लेखक।लेखिकाओं ने कर।कर के एक दूसरे की सात पीढ़ियाँ तार दीं।
ष्ओफ्फोह मेरी बात तो सुनिए । सहायक से लिखवा भी लिया तो वह सहायक का लिखा माना जायेगा न । मेरा लिख कैसे होगाघ्
ष्कैसे नहीं होगाघ् साहित्य के कितने ही लेखक।लेखिकाएँ सहायकों से लिखवा।लिखवा कर महानता को प्राप्त हो चुके है । नामी गिरामी पत्रिकाओं मेंए उनकी उन कृतियों पर जम कर चर्चा हुई जो उनकी थी ही नहींण्ण्ण्ष्
अरेए साहित्य जगत में किसी ने आपत्ति नहीं उठाईघ् शिकायत नहीं कीघ्
ष्किससेघ्ष्
ष्संपादकों सेए मुझे विश्वास है साहित्य की गरिमा और पत्रिका की नीतियों को समर्पित कोई भी संपादक इस अनैतिक प्रवृति और कृत्य की भर्त्सना करने वाला विचारोत्तेजक संपादकीय तो अवश्य ही लिखता।
। तो पत्रिका बंद नहीं हो जातीघ्ण्ण्
क्या मजाक करते हैंए पत्रिका भला कैसे बंद हो जातीघ्
पत्रिका के संरक्षक।रचनाकार से मिलने वाली अनुदान राशि और विज्ञापन नहीं मिलेंगे तो पत्रिकाएँ बंद नहीं हो जायेंगीघ्ण्ण्ण्
अब मुझे घबराहट होने लगीण्ण्ण् पत्रिकाएँ बंद हो जायेगी तो मेरी भी रचनाएँ कहाँ छपेंगीण्ण्ण्
अब समझ गई न आपण्ण्ण् हिन्दी साहित्य में हर लेखकए संपादक और पाठक की अपनी।अपनी लाचारी होती है।
ष्जी हाँ बिल्कुलण्ण्ण् देखिये नए मैं स्वयं कितनी लाचार हूँ। लाचारी में लचर लेखन करने के लिए अभिशप्त लेखक । इसलिए अच्छा होए आप मुझ पर दबाव न डालेंष् । तब तक भीड़ से एक सज्जन हिम्मत कर आगे आये।
ष्कहियेघ्ष्
उन्होंने कहा ।ष्कहना क्या हैण्ण्ण् बस आप तो जानती ही हैंण्ण्ण् ष्
मैंने मुस्कराकर बधाई दी । जीए यही न कि आप पिचहत्तर के हो रहे हैंघ्
जी.जी हांण्ण्ण्
कबघ्
ष्समझ लीजिए कभी भीण्ण्ण्ष्
ष्यानीघ्ष्
ष्यानी जब आपको फुर्सत होए जब आपका वक्त पूरा हो जाये। ष्
ष्तभी आप पिचहत्तर के हो जायेंगेण्ण्ण्न! ष्
मैं अगले सज्जन की ओर मुड़ी ।ष्और आपघ्ष्
ष्आपसे क्या छुपानाए हो तो पिछले वर्ष ही गया था लेकिन पता किसी को नहीं है इसलिएण्ण्ण् चाहता था कि जब आप कहेंण्ण्ण्ष्
ष्ठीक हैण्ण्ण् और आपघ्ष्
ष्मेरे तो जीए वैसे तो काफी बरस बाकी हैं अभीण्ण्ण् लेकिन आप चाहें तोष्।
ष्मेरे चाहने से क्या होगाघ्ण्ण्ण् मैं खिजलायी । ष्भगवान चाहेंगे तभी न आप पिचहत्तर के होंगे। ष्
ष्मेरे लिये तो जी आप ही भगवान हो! ष्
मैं गदगद थीं भगवान होकरण्ण्ण्। जो पैंतीस वर्षों की कलम।घसीटी नहीं कर पाई थीए वह पिचहत्तर के हुए लेखकों ने कर दिखाया था। अब मैं अमृत।महोत्सवीं समारोहों की स्टार वक्ता के रूप में स्ट्रोलर लिये एयरपोर्ट से बाहर आ रही थी।