बावरा मन / सुषमा गुप्ता
आज कितना फ्रीजिंग कोल्ड है, इसका एहसास मंदिर के प्रांगण में पहला पैर रखते हो गया। तलवों का खून जमने लगा था।
दिमाग का मेरा फितूर देखो
जल चढ़ाने के लिए मंदिर में रखा सबसे छोटा लोटा उठाया। बहुत नीनू-सा जल भोलेनाथ पर डाला, कहा
"आज ठंड बहुत है, ड्राइक्लीन ही कर लो।"
और लो बताओ, यहाँ प्यार जताओ वह हँसने लगे, बोले-"बावली, सुबह से सब भर-भर लोटे नहला रहे हैं, तेरे एक और लोटे से क्या फ़र्क पड़ता।"
मैंने भी हँसकर कहा-"बावले तुम, इतना भी नहीं समझते। वो सुबह से भरी ठंड में भर-भर लोटा जल से नहलाने वाले भक्त है तुम्हारे, प्रेमी नहीं है मेरी तरह।"
उन्होंने आँखे नचा कर कहा-"अच्छा!"
और देखो तो मसखरी। लोटा छूट गया मेरे हाथ से
धम्म जमीं पर गिरा और इत्ता सारा जल मेरे ही चेहरे पर आ उछला
हाआआ...
मैं और अघोरी दोनों हँस पड़े
मैंने जाते-जाते कहा-"बावला ..."
वो पीछे से हँसते हुए बोले
"बावली..."
तुम
कभी प्रेम करो तो समझना
दुनिया कितना छल करे, बेरुखी करे, आपकी पीड़ा न समझे
दिल नहीं टूटता
प्रेमी आपकी पीड़ा न समझे ...
दिल छन्न से टूट जाता है।
प्रेम करना तो, मिट-मिट करना
खेल न करना कोई...