बाहुबली, एवेंजर्स और अवाम / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :25 अप्रैल 2018
एसएस राजामौली ने कुछ संपादित रीलों को 'बाहुबली भाग एक' से हटा लिया था। इसी तरह फिल्म के भाग दो से भी कुछ संपादित अंशों का उपयोग नहीं किया। ताज़ा खबर है कि अब वे दोनों फिल्मों के उन अंशों को आपस में जोड़ने के लिए नई पटकथा लिख रहे हैं। उनकी योजना है कि कुछ दिनों की शूटिंग करके 'बाहुबली' भाग तीन बन जाएगा और सारे अंश जोड़ दिए जाएंगे। इस तरह एक भव्य फिल्म का प्रदर्शन किया जाएगा। यह प्रकरण इसी तरह है जैसे एक जादूगर अपने पिटारे में रखी तीन वस्तुओं से तेरह किस्म के खेल रचता है।
हॉलीवुड की 'एवेंजर्स' नामक फिल्म का प्रदर्शन होने जा रहा है और हॉलीवुड बॉक्स ऑफिस पंडितों का कहना है कि यह फिल्म सबसे अधिक व्यवसाय करने वाली है। भारत के छोटे शहरों में भी 'एवेंजर्स' का इंतजार किया जा रहा है। गौरतलब है कि तर्कहीनता का उत्सव मनाने वाली 'बाहुबली' और 'एवेंजर्स' की कामयाबी उस फिल्म चिंतन को खारिज कर रही है, जिसमें आम साधनहीन आदमी को जद्दोजहद को प्रस्तुत किया जाता रहा है गोयाकि चार्ली चैपलिन की परम्परा को खारिज कर दिया गया है। सिनेमा माध्यम सूर्यवंशी, चंद्रवंशी बलिष्ठ नायकों की गाथा प्रस्तुत करने के बदले आम आदमी को नायक की तरह प्रस्तुत करता रहा है। फिल्म टेक्नोलॉजी के विकास के साथ ही विज्ञान फंतासी फिल्मंे बनाना आसान हो गया है। अब इस लगातार विकास कर रही फिल्म टेक्नोलॉजी ने 'बाहुबली' और 'एवेंजर्स' जैसी फिल्मों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इस खेल में मानवीय करुणा आधारित फिल्मों को हाशिये पर फेंक दिया गया है। इन घने स्याह बादलों के बीच भी 'अक्टूबर' जैसी फिल्में एक अाशा की किरण की तरह हमें दिखाई देती है। 'किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए जागो मोहन प्यारे..।' वर्तमान की हॉलीवुड व अन्य देशों की फिल्में कांटों के गुलदस्ते की तरह हैं, जिन पर एक हरसिंगार के फूल के रूप में हम शूजीत सरकार की 'अक्टूबर' को देखते हैं। रजनीकांत अभिनीत शंकर की 'एंथिरन' एक तरह से फिल्मों में अतिरेक का महत्व प्रतिपादित करती है। उसे 'बाहुबली'का पूर्व गान मान सकते हैं। रजनीकांत और शंकर की फिल्म '2.0' यह सिद्ध करने का प्रयास है कि वे अब भी 'बॉस' हैं, 'थलाइवा' हैं।
मनोरंजन जगत में चल रहे अंधड़ में आमिर खान योजना बना रहे हैं कि वे 'महाभारत' को तीन खंडों में बनाएं और विकसित फिल्म टेक्नोलॉजी को सीधे ही मायथोलॉजी से जोड़ दें। विगत कई दिनों से आमिर खान अमेरिका प्रवास पर हैं। वहां वे सिनेमा की आधुनिकतम मशीनों को देखने गए हैं और टेक्नोलॉजी की सहायता से प्राचीन आख्यान को फिल्मांकित करना चाहते हैं। हमारा सारा 'मेक इन इंडिया' विदेश से आयात पर केंद्रित है। हमारे राजनीतिक क्षेत्र के लौह पुरुष की प्रतिमा चीन में बनाई जा रही है। कितनी छटपटा रही होगी उनकी आत्मा। जाने किस नशे में गाफिल अवाम तर्कहीनता के इस तमाशे पर तालियां बजा रहा है।
नायक बाहुबली है गोयाकि उसे अपनी मांसपेशियों पर बहुत भरोसा है। बुद्धि से अधिक बायसेप्स बनाने में मगन है युवा वर्ग। शारीरिक बल को साधन की जगह साध्य बनाया जा रहा है। इस नशे में यह भी याद नहीं रहता कि बलिष्ठ देह का ऊपर हिस्सा मस्तिष्क है, जो दिल से ऊपर बनाया गया है। मानवीय मस्तिष्क के दाहिने भाग में भावना का संचार होता है और बाएं भाग में तर्क का जन्म होता है। हमारे दाएं भाग को सुन्न किया जा रहा है। मनोरंजन और राजनीति दोनों ही क्षेत्रों में यह काम हो रहा है। एक सार्वजनिक कोमा रचा जा रहा है। शब्दों को अफीम की तरह चटाया जा रहा है। 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे कि ये रंग का कारोबार क्या है।'