बिंदास, बहादुर कंगना रनोट के तेवर / जयप्रकाश चौकसे

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बिंदास, बहादुर कंगना रनोट के तेवर
प्रकाशन तिथि :22 फरवरी 2017


कंगना रनोट सुन्दर भी हैं अौर बहुत साहसी भी। हाल ही में करण जौहर ने उनसे पूछा कि उनके संघर्ष के दिनों में उन्हें सबसे अधिक अपमानित किसने किया? कंगना ने कहा कि स्वयं करण जौहर ने ही यह काम किया है। पहाड़ों से आईं कंगना को महानगरों में चापलूसी से अपना उल्लू सीधा करने में कोई यकीन नहीं है। यह पहले भी कहा जा चुका है कि अपने संघर्ष के दिनों में वे फुटपाथ पर भी सोईं हैं। करण जौहर के पक्ष में यह कहा जा सकता है कि सफल निर्माता से काम मांगने अनेक लोग आते हैं, इसलिए कुछ सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। इस दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि सफल व्यक्ति के आसपास सुरक्षा का घेरा रहता है और वह मिलने से ही इनकार कर सकता है। अत: किसी को अपमानित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

डोनाल्ड ट्रम्प, मोदी और मुकेश अम्बानी से कहीं अधिक व्यस्त करण जौहर रहते हैं। एक ही समय में अनेक फिल्मों के निर्माण के साथ करण जौहर फिल्मोद्योग की हर दावत में शरीक होते हैं। कभी भी किसी चीज के उद्‌घाटन का अवसर हाथ से नहीं जाने देते। जिन मित्रों से प्रतिदिन मिल नहीं पाते उनसे फोन पर लंबे समय तक बात करते हैं। दरअसल, अपने असली काम फिल्म निर्माण के लिए संभवत: उनके पास सबसे कम वक्त है। उन्होंने फिल्म अभिनय में भी स्वयं को आजमाया है साथ ही उन्हें अपनी फिल्म के सितारों के पोशाक निर्माण में भी बहुत काम करना पड़ता है। वे कपड़ों के ही नहीं फिल्मों के भी डिज़ाइनर फिल्म मेकर हैं।

वे हमारे हुक्मरान की तरह अपने कुछ निर्णय और वादों पर खरे नहीं उतर पाए। मसलन, अपनी आरंभिक फिल्मों की सफलता के बाद उनके बारे में कहा गया कि बिना शाहरुख खान के वे किसी फिल्म का आकल्पन नहीं कर पाएंगे परंतु उन्होंने शाहरुख विहिन अनेक फिल्में बनाई हैं। यहां तक कि सलमान खान के साथ 'शुद्धि' नामक फिल्म की योजना भी बनाई परंतु इस शुद्धि का कोई मंत्र पढ़ने में वे असफल रहे। कई बार 'खुल जा सिमसिम' बोलते समय उच्चारण के छोटे से दोष के कारण तिलस्मी गुफा का द्वार नहीं खुलता। क्या हम यह समझे कि ये 'खुल जा सिमसिम' हकलाने वाले लोगों के साथ अन्याय है। हुक्मरान का भी खयाल है कि अवाम के उच्चारण दोष के कारण ही वह 'अच्छे दिनों का तिलस्मी द्वार' नहीं खोल पाया। हुक्मरान अपने को निर्दोष कहता है। दरअसल, उन्होंने सदैव सहिष्णु रहे भारत में हर धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय की विचार शैली में कट्‌टरता का समावेश करके वैचारिक उदारता समाप्त कर दी। इस तरह उन्होंने देश के लिए गृहयुद्ध की भूमिका रच दी है।

एक और कुरुक्षेत्र, एक और महाभारत संभव है। एक विद्वान ने सही कहा है कि जो वेदव्यास के महाभारत में वर्णित नहीं वह हमेशा अघटित ही रहेगा। अत: बार-बार कुरुक्षेत्र घटने की आशंका है। सारांश यह कि महाभारत ही हमारा कल, आज और कल रहेगा। बहरहाल, महाभारत फिल्म में कंगना रनोट द्रौपदी की भूमिका निभा सकती हैं अौर इस संभावित संस्करण में उनकी साफगोई से भयभीत दुर्योधन युद्ध ही नहीं करेगा गोयाकि जो श्रीकृष्ण नहीं कर पाए वह कलयुग की द्रौपदी कंगना कर सकेंगी। करण जौहर अपने स्वभाव के अनुरूप कंगना के साथ फिल्म बनाने का प्रयास करेंगे। वे यह भी कर सकते हैं कि अपने 'किंग' शाहरुख खान और स्वयंसिद्धा 'क्वीन' कंगना को प्रस्तुत करें। केवल इस पैतरे से ही वे अपने फिल्म उस्ताद आदित्य चोपड़ा को चित कर सकते हैं, क्योंकि फिल्म अखाड़े के गामा पहलवान आदित्य चोपड़ा को चित करना संभव नहीं है।

कंगना रनोट ने केतन मेहता की प्रस्तावित फिल्म 'झांसी की रानी' के लिए अपनी सहमति दे दी है। झांसी की रानी पर सोहराब मोदी ने अपनी पारसी पत्नी मेहताब को बतौर नायिका लिया था और इसी गलती के कारण फिल्म असफल रही। मेहबूब खान ने 1939 में अपनी पत्नी को नायिका लेकर 'औरत' बनाई थी परंतु उसी कहानी को 'मदर इंडिया' के नाम से नरगिस के साथ बनाया, जो सिने व्यवसाय की सदाबहार फिल्म सिद्ध हुई। जब किसी फिल्मकार ने अपने पति स्वरूप को तरजीह दी है तब उसे हानि उठानी पड़ी है। काम, काम है; प्यार, प्यार है और मिलावट करते ही हानि उठानी पड़ती है।

कंगना रनोट का शारीरिक गठन किताबों में वर्णित झांसी की रानी से बहुत लग है। जाने कंगना तलवार हाथ में लिए कैसी लगेंगी, क्योंकि उनकी मारक तलवार तो उनकी अपनी विचार-प्रणाली और जिव्हा है, जिसने कई कलेजे छलनी किए। ऋतिक रोशन बनाम कंगना के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर अभी थमा हुआ है परंतु इस दौर के दरमियान कंगना का मिज़ाज एक गीत के मुखड़े से मिलता है, 'विरह ने कलेजा यूं छलनी किया, जैसे जंगल में कोई बांसुरी पड़ी हो।' कंगना कुछ इस कदर बिंदास और बहादुर हैं कि अगर वे बांसुरी होतीं तो हवा को उनके हुक्म पर बहना पड़ता। एक पुरानी अमेरिकी फिल्म के पहले दृश्य में बगीचा दिखाया है, जिसमें भांति-भांति के फूल लगे हैं और जगह-जगह लिखा है कि फूलों को तोड़ना मना है। तेज हवा चलती है और तमाम फूल नीचे गिर जाते हैं। बगीचे के मािलक का पुत्र अपने शक्तिशाली, तानाशाह पिता से कहता है, 'क्षमा करें पिताजी, इन अनपढ़ हवाओं को पढ़ना नहीं आता।' हर तानाशाह याद रखे कि हवाओं को पढ़ना नहीं आता और तानाशाह को समय की दीवार पर लिखी इबारत पढ़ना नहीं आता।