बिखराव / सुदर्शन रत्नाकर
जबसे विनय का फ़ोन आया है उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे। चार वर्ष के अंतराल के बाद वह घर लौट रहा है। उसने फ़ोन पर उसे कितनी ही बार आग्रह किया था, थोड़े दिन के लिये ही सही वह एक बार आकर मिल जाये। लेकिन हर बार वह काम की अधिकता की बात कह कर टाल जाता था। फिर उसने वहीं विवाह कर लिया। विनय ने जो वीडियो भेजी वह उसी को देख कर संतुष्ट हो गई। उसकी बलाएँ लेती रही। धीरे-धीरे उसके फ़ोन आने कम हो गये। सप्ताह की बजाये पन्द्रह दिन में आने लगे। निखिल के पैदा होने के बाद उसकी अवधि और बढ़ती गई। पर उसने कभी गिला नहीं किया। जहाँ भी रहे, प्रसन्न रहे। अब उसका परिवार हो गया है। अपनी ज़िम्मेवारियाँ बढ गई हैं। वह अपने मन को सांत्वना देती।
विनय के आने की सूचना पाकर उसने तैयारियाँ शुरु कर दीं। बहु, पोते की हर सुविधा का सामान जुटाया। कहीं कोई कमी नहीं रहने दी। बहु विदेशी है इस बात का उसने पूरा ध्यान रखा।
वह दिन भी आ गया जब विनय बहू और निखिल के साथ घर पहुँचा। वह दिन उसका आवभगत और मिलने मिलाने में लग गया। जेट लेग के कारण सोने का समय अलग था। दो तीन दिन इसी में निकल गये। जैसे ही वे लोग सामान्य हुए विनय ने माँ से कहा, "मम्मी आप इतने समय से अकेली रह रही हैं, हमारे रहने से आपको असुविधा हो जाएगी। मैंने होटल में कमरा बुक करवा लिया है। शेष दिन वहीं रहेंगे। बीच में आपसे मिलने आते रहेंगे।" कह कर विनय अपना सामान समेटने लगा। लेकिन उसके भीतर सब कुछ बिखरने लगा था।