बिखरे तिनके / अमृतलाल नागर

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बिखरे तिनके
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रचनाकार अमृतलाल नागर
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भाषा हिन्दी
विषय
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विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर गद्य कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।


गुरसरन बाबू का मन ऊंचा-नीचा हो रहा है। साढ़े आठ बज रहे हैं। रघबर महाराज के यहाँ बिल्लू को भेजा है कि बुला लाए। पता नहीं...कनागत में बाम्हन और चढ़ती उमरिया में लौंडियों के नक्शे नहीं मिलते हैं।–स्साले ! नीचे का आधा मकान किराये पर एक प्रेस वाले को दे दिया है। बैठक का एक दरवाजा किरायेदार का मुख्य द्वार बन गया है, बैठक से धुर भीतर तक दीवार खिंचवा दी है। इसलिए बैठक और आंगन दालान छोटे हो गए हैं। बुरा क्या है, तीन सौ रुपये किराये के आते हैं, दीवार उठवाने का खर्च भी किरायेदार ने दिया था। वैसे सतसाईं बाबा की दया से इस समय गुरसरन बाबू के तीन कोठियां सिविल लाइन्स में है, दरीबे में एक छह दूकानों वाली इमारत है। ऊपर तीन फ्लैट बने हैं, जिनमें उनके तीन बेटे अपनी-अपनी गिरस्ती के साथ रहते हैं। बल्कि तीसरा लड़का संतोषी प्रसाद तो अब पैसेवाला हो गया है, बिशननारायण रोड पर कोठी बनवा रहा है। दुकानों का किराया आप बसूलते हैं। सब मिलाकर दो सवा दो हज़ार किराये की आमदनी है। चार लड़कियों के ब्याह किए इसलिए बैंक बैलेंस बहुत नहीं बन पाया।

पत्नी भी विरासत में एक गांव लेकर आई थीं, उसे जमींदारी अबॉलिशन से डेढ़ बरस पहले बेच कर लाख रुपये जमा किए थे, उसका ब्याज भी आता है। खाद के लिए बिकने वाली शहर भर की मैला गाड़ियों की कमाई में गुरसरन बाबू और चीफ सेनेटरी इन्स्पेक्टर तो बड़ी तोंद वाले बने ही, मेहतर महाबीर चौधरी भी लखपती बन गया। म्युनिसिपल अस्पतालों के लिए दवाओं और इंजेक्शनों आदि सामान की खरीद होने पर भी अच्छा कमीशन डकारा है। हर फूड इंस्पेक्टर की आमदनी इनकी मुट्ठी गरम किए बिना हो ही नहीं सकती। शहर भर के फूड इंस्पेक्टरों को अच्छी आमदनी वाले क्षेत्र में अपनी नियुक्ति के लिए गुरसरन बाबू के द्वारा आयोजित खुफिया नीलाम में सबसे ऊंची बोली लगानी पड़ती है। यों खाते तो सभी हैं परन्तु गुरसरन बाबू जैसे सबको बोटी-बोटी नोच कर खाते रहे, वैसा कोई बड़ा बेदिल वाला ही खा पाता है। गुरसरन बाबू ने जूनियर क्लर्क की नौकरी से शुरू किया था। तरक्की करते-करते हेल्थ अफसर के पी.ए. के पद पर पहुंचे, चींटा भैंसा बनकर रिटायर हो रहा है....अगर आर्डर्स न आए तो ? ये साला हेल्थ अफसर हरामी है, सोशलिस्टों, जनसंघियों दोनों को पटाये हुए हैं और इन्हें बेहद सताता है। हर हफ्ते दो चक्कर राजधानी के मार आता है। दफ्तर में इनके खिलाफ ऐसी पालिटिक्स फैलाई है कि यही हैं जो पिछले तीन वर्षों में शान के साथ झेल रहे हैं। अगर गुरसरन बाबू दो बरसों का एक्सटेंशन पा गए तो हेल्थ अफसर को ऐसे ठौर पर मारेंगे जहां पानी भी न मिले। वैसे अगर आज रिटायर भी हुए तो भी उसकी जनमपत्नी ऐसी बिगाड़ जाएंगे जैसी तेजाब से सूरत बिगड़ती है।

पिछले पौने दो बरसों में गुरसरन बाबू को फंसाने के लिए एच.ओ. (हेल्थ अफसर) ने क्या-क्या जाल फैलाए हैं कि बस उनका कलेजा ही जानता है। वह तो कहो कि मारने वाले हाथ से बचाने वाला हाथ बड़ा साबित हुआ, बड़े दामाद उन दिनों शहर के सुप्रिंटेंडेट पुलिस थे। अपने ससुर को बचाने के लिए उसने एच.ओ. का बिछाया जाल बार-बार काट कर फेंक दिया। दफ्तर के हर क्लर्क, हर इंस्पेक्टर के पीछे पुलिस की जतामार धमकियां छोड़ दी थीं। इमरजेंसी ही नहीं उसके बाद भी छः आठ महीनों तक न तो जनता वाले इनके दामाद को ही हटा पाए और न इनका एक बाल भी बांका हो पाया। तब तक गुरसरन बाबू ने पण्डित जटाशंकर का दरबार भी साध लिया था। इस बीच में एच.ओ. खरोंचे तो बहुत मारते रहे पर उन्हें घायल न कर पाये देखो, आज एच.ओ. जीतता है कि मैं जीतता हूं !...

बैठक जब से एक दर वाली हो गई है तब से कोठरीनुमा हो गई है। बाप-राज को एक छोटी आरामकुर्सी ती मूढ़े और एक गोल मेज़ से भरी-भरी लगती है। ऊपर जाने का एक रास्ता से कोठरीनुमा बैठक से जुड़ा है। गुरसरन बाबू ने अपनी चिन्ता समाधि से उबर कर एक खोई हुई नजर घड़ी पर दूसरी सीढ़ी पर, तीसरी दीवार पर टंगे कैलेंडर पर डाली। यहां उचटती अकुलाई नज़रें एकाएक होश में आ गईं। 13 सितम्बर। साली अंग्रेजी तारीख से भी आज का दिन मनहूस ही साबित हो रहा है। बिल्लू को बाह्यन बुलाने भेजा, वह वहीं चिपक गया। अब नौ बजने में सात मिनट हैं। सवा नौ की बस नहीं छूटनी चाहिए। खैर, आज रिक्शे से भी चला जाऊं तो कम-से-कम खाना खाकर तो घर से निकल सकता हूँ। तेलहीन दीये की बुझती बाती की चुन्नी-सी लौ जैसा गुरसरन बाबू का मन इस मनहूसियत बोध से विवश होकर अपने-आपको अनिवार्य अंत के प्रति समर्पित करने लगा। लेकिन गुरसरन बाबू को आज आफिस तो करेक्ट रेडियो टाइम से पहुंचना ही है। भले रिटायर हो जाएं पर आज अगर दफ्तर के तीन-चार चिड़ीमारों को जाल में फंसी चिड़िया बनाकर न छोड़ा तो असल बाप से पैदा नहीं। हम तो डूबेंगे सनम यार को ले डूबेंगे। एच.ओ. साले के खिलाफ ऐसे डाक्यूमेण्टस हैं कि असेम्बली तक में डूबेंगे। एच.ओ. साले के खिलाफ ऐसे डाक्यूमे्ण्ट्स हैं कि असेम्बली तक में तहलका मच जाएगा। दूसरे, स्टेब्लिशमेट क्लर्क नौबतराय की नौबत बजानी है।

कमीना अपने जातिभाई के खिलाफ एक कमीनुक्लमीन बनिये का समर्थन कर रहा है। इस कम्बख्त की तो नौकरी ही ले बीतना है। हेल्थ अफसर से भी त्यागपत्र फार्मेस्युटिकुल कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड में इनके दूसरे दामाद का सगा छोटा भाई काम करता है। सेठ का पी.ए. है। पीने की लत है। एक बार अपने सेठ के नाम एच.ओ. गोयल की एक चिट्ठी गुरसरन बाबू के हाथ पिछहत्तर रुपये में बेच गया था। दफ्तर के छपे कागज़ पर गोयल ने लिखा था-मैंने आपका भला करने के लिए आदेश पत्र टाइप करवा लिया है। आप लंच टाइम में आफिस आकर मुझसे उसपर दस्तखत करा ले जाइए। यह ध्यान रखिएगा कि वस्तु छोटी-छोटी गुड्डियों में आए बड़ी में नहीं, गिनती पूरी हो, धन्यवाद।’’ बीस-बीस रुपये हर बार देकर तीन स्लिपें गुरसरन बाबू ने और भी खरीद रखी है। कपिला कम्पनी के मालिक घीसूमल जैन को पर्ची भेज कर डा.गोयल ने नगरपालिका अस्पताल की मेट्रान सुनन्दा घूरेलाल को रुपये देने को कहा था। सुनन्दा डा. गोयल की रखैल है, यह सब जानते हैं, पर यह कोई नहीं जानता कि बाबू गुरसरन लाल ने उन सभी पर्चियों की फोटो स्टेट कापियां ही नहीं उनके ब्लाक भी बनवाकर तैयार रखे हैं। दैनिक आजकल के चीफ रिपोर्टर को गुरसरन बाबू के तीसरे बेटे संतोषी ने पहले से ही चटा और पटा रखा है। अगर आज गुरसरन बाबू रिटायर हुए तो कल सबेरे के आजकल में ये ब्लाक छप जाएंगे। लिखित न सही पर यह परम्परा बन गई थी कि लूट का माल एच.ओ. की जेब में उनके पी.ए. की मार्फत पहुंचता था परन्तु डा.गोयल की अपने पी.ए. से कुछ बिगड़ नई तब से ही नौबतराय की मार्फत यह काम होने लगा।

नौबतराय की भी एक चिठ्ठी उनके पास है। सुनन्दा के नाम लिखी गई यह चिट्ठी भी गुरसरन बाबू ने गुरदीन चपरासी से दस रुपये देकर खरीद ली थी। गुरसरन बाबू ऐसी कारसाज़ियों में आरम्भ से ही बड़े तेज रहे हैं। शुरू में कई बरसों तक एक स्थानीय नेता के लिए ऐसा बहुत-सा काम करके उन्हें लौहपुरुष बनने में बड़ी सहायता पहुंचाई थी। फिर जब लौह पुरुष मंत्री बनकर लखनऊ जा बसे और एक बार इनके सिर पर भी अपना लोहा बजाया तो दूसरे दिन से ही उनके पर्चे भी अखबारों में छप गए। लौहपुरुष मंत्री जी ने तुरन्त मोम बनकर इन्हें भी पिघला लिया। चालाक से चालाक मनुष्य बेहोशी में कभी-न-कभी और कहीं-न-कहीं चूक कर ही बैठता है। गुरसरन बाबू चतुरों के उन्हीं बेहोश क्षणों की चूकों का संग्रह किया करते हैं। अपनी इसी आदत के कारण गुरसरन बाबू से दफ्तर में ऊपर से लेकर नीचे तक सब लोग आतंकित रहते हैं।..परन्तु इस समय तो वह दफ्तर में लेट हो जाने की आशंका से स्वयं आतंकित हैं; लगता है भूखे ही जाना पड़ेगा। कैसी मनहूस है मेरी जन्मतिथि। बीस हाथों वाला रावण दो हाथों वाले के तारों से मरा जा रहा है-वही रावण जिसने काल को भी बांधकर पटक रखा था। एक गहरी सांस मुंह से निकल पड़ी। हड़बड़ाकर घड़ी पर दृष्टि डाली। इधर नौ की लकीर पर सुई आई उधर बिल्लू ने एक लड़के के साथ बैठक में प्रवेश किया कहा, ‘‘रघबर महाराज ने कहा है, रोजीने के दो पाठ करके ही आवेंगे।’’ ‘‘कमीना !’’

‘‘मैं उनके भतीजे को पटा लाया हूं। जनेऊ बहुत मैला था इसलिए एक नया जनेऊ भी पहना दिया है। आप इसे लेकर ऊपर चलें।’’ तभी बिब्लू को मां सीढ़ी के दरवाजे पर दिखलाई दीं। बिल्लू हड़बड़ा कर बोला,‘‘मम्मी रघबर तो पापा का टाइम साध न सकेंगे। उनके भतीजे को ले आया हूं।’’ ‘‘रघबर के कोई भाई ही नहीं, भतीजा कहां से हो गया। यह तो मनुआ महाबामन का भांजा है।’’ ‘‘हां है, पर पण्डित तो है ममी।’’ ‘‘बिल्लू इसे दस पैसे दे के विदा कर ! महाबामन को सराध नहीं जेवाऊंगी।’’ फिर पति से कहा, ‘‘तुम पण्डित की पत्तल मंस के खाना खाओ। जनमदिन के दिन भूखे नहीं जाने दूंगी।’’ महाबाह्मन का भांजा पैसों के लिए अड़ गया। चवन्नी लेकर ही टला। टन्न !

दफ्तरी घड़ी की आवाज आज अरसे बाद गुरसरन बाबू के कानों में पड़ी, अपनी रिस्टवाच पर दष्टि डाली, ढाई बजे थे। उनके मन में इस समय संतोष का सागर आनन्द-तरंगों से लहरा रहा है। अभी आधे पौन घण्टे पहले ही वह अपने सर्विस कैरियर की सर्वोत्तम उपलब्धि प्राप्त कर चुके हैं। बाईस फाइलों के बोझ में सबसे नीचे अपनी नई कारगुजारी की फाइल लेकर डा. गोयल के पास पहुंचे। थोड़ी देर पहले उन्होंने एच.ओ. कि मैं ठीक सवा बारह बजे दफ्तर से उठ पड़ूंगा। गुरसरन बाबू ठीक बारह बजके दस मिनट पर साहब के पास पहुंचे। गुरसरन बाबू को देखते ही साहब की त्यौरियां आमतौर से चढ़ जाया करती थीं लेकिन आज अच्छे मूड में थे, बोले कहिए गुरसरन बाबू, कैसे तकलीफ की ?’’ ‘‘हुजूर नौकरी का अन्तिम दिन है, अपना पूरा नमक अदा कर जाने की चिंता से आपको यह कष्ट देने आया हूं।’’ ‘‘इतनी फाइलें। पर मुझे तो अभी पांच मिनट में जाना है, भई।’’

पांच ही मिनट का काम है सर, सिर्फ साइन करना है आपको, बड़ी मामूली सी फाइलें हैं।’’ कहते हुए पहली फाइल पेश की। गुरसरन बाबू की मनोयोजनानुसार ही पहली फाइल ही डाक्टर साहब को दुर्वासा बना गई। लगभग बीस-बईस दिन पहले पालिक अस्पताल की मेट्रेनसुनन्दा के पति घूरेलाल (जो संयोग से दफ्तर में जनम मरन रजिस्टर सम्भालने वाले क्लर्क हैं) के विरुद्ध नाइट सॉयल क्लर्क माताप्रसाद की शिकायत पर साहब ने अपने पी.ए. को जांच के लिए आदेश दिया था। गुरसरन दुखी घूरेलाल ने अपनी नसबन्दी करवा के अपनी पत्नी को यह धमकी दी थी कि अब जो तुम्हारे बच्चे होंगे उनका बाप कानूनी तौर पर मैं नहीं तुम्हारा यार ही कहलाएगा। सुनन्दा ने डर कर यह बात अपने यार से कह दी। यार ने दुष्ट पति को दण्डित करने के लिए उसके विरुद्ध शिकायत लिखवाकर फाइल चलवा दी। बाद में घूरेलाल अपनी पत्नी और उसके प्रतापी प्रेमी के चरणों में पाहिमाम हो चुके थे और एच.ओ. ने मौखिक फाड़ कर फेंक दें, इंक्वायरीन करें। फिर भी फाइल पेश थी और घूरेलाल सुलफेबाज जुआरी और लड़ाका साबित कर दिया गया था, साथ ही यह नोट भी था कि इस बार घूरेलाल को केवल कठोर चेतावनी ही दी जाए। यह फाइल देखते ही डा. साहब का मूड ऑफ हो गया, मैंने आपसे कहा था कि इसलेटर को डिस्ट्राय कर दीजिए।’’

‘‘गलती हो गई सर, सुन नहीं पाया था। इसे अभी खतम कर दूंगा। बाकी फाइलें-’’ गुरसरन बाबू का चलाया तीर अपने ठीक निशाने पर लगा। घूरेलाल प्रकरण साहब के काले क्रोध को जगा गया। जाने की जल्दी भी थी इस लिए गुरसरन बाबू की मनहूस सूरत को जल्द से जल्द टालने की उतावली में आंखें मींच कर दस्तंखत करते चले गए। घूरेलाल के कागज फाइल से नोच कर, गुरसरन बाबू ने साहब के सामने ही फाड़ फेंके और हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘आज मेरा आखिरी दिन है, सर, मुझसे जो अपराध हुए हों उन्हें क्षमा करें।’’

एच.ओ. यह कहते हुए निकल गए कि बाबू नौबतराय को चार्ज देकर जाइएगा। साहब के जाने के बाद मनोवैज्ञानिक धोखाधड़ी से जिस सादे कागज़ पर साहब के दस्तखत करा लाए थे उस पर गुरसरन बाबू ने डा. गोयल के खासुलखास चमचों के विरुद्ध एक बड़ा ही सख्त नोट टाइप किया। साहब की दस्तखती चिड़िया के ऊपर प्रशासक के नाम यह नोट लिखा कि इन लोगों के विरुद्ध कुछ प्रमाण एकत्र किए जा चुके हैं जो संलग्न है। इनके विरुद्ध उच्चस्तरीय जांच करने के आदेश दिए जाएं। प्रमाणों की फोटोस्टेट प्रतियों के साथ चार व्यक्तियों पर आरोप लगाए गए थे : पालिका अस्पताल की मेट्रेन सुनन्दा घूरेलाल, इस्टेब्लिशमेंट क्लर्क नौबत-राय, फूड इंस्पेक्टर गुरुबचन सिंह और नाइट सॉयल क्लर्क माताप्रसाद।

किसी को कबूतर पालने का शौक होता है, किसी को टिकट जमा करने का, गुरसरन बाबू की हॉबी दूसरों की कमजोरियों के प्रमाण एकत्र करने की रही है। उसी शौक की बदौलत अपने सेवा काल की यह अन्तिम फाइल लेकर ढाई बजे वह प्रशासक के.पी.ए. चंद्रप्रकाश अग्रवाल के पास गए। चंद्रप्रकाश और डा. गोयल सजातीय और सम्बन्धी हैं पर उनके चंद्रमा आठवें-बारहवें पड़े हुए हैं। गुरसरन बाबू ने बातों में मिठास घोल कर एच.ओ. और पी.ए. की आपसी कड़ुवाहट को उभारा। रखैल सुनन्दा को कैसा सफ़ाई से उसके यार के हाथों ही कत्ल करवाया है कि उसे देखकर चंद्रप्रकाश बाबू गुरसरन बाबू को अपना गुरु मान गए। प्रशासक महोदय सवा तीन बजे लंच से लौटे। चंद्रप्रकाश फाइल पर एक हफ्ते में रिपोर्ट देने के आदेश लिखकर अपने बड़े साहब के दस्तखत करा लाए। चलते-चलाते गुरसरन बाबू भी बड़े साहब को अपना विदा प्रमाण निवेदन करने गए। बड़े साहब ने कहा, ‘‘मिस्टर गुरसरन मुझे दुख है कि आपको एक्सटेंशन न मिल सका। मेरे पास ऊपर से भी आपके लिए फोन आया था मगर चूंकि डा. गोयल का नोट आपके बहुत खिलाफ था इसलिए...’’ ‘‘....कोई बात नहीं हुज़ूर, आपके दिल में मेरा ख्याल है यही बहुत है।’’

लगभग पौने चार बजे अपने विभाग में पहुंचे। स्वास्थ्य विभाग दर असल रोज़ इसी समय गुलजार होता है। विभिन्न क्षेत्रों के खाद्य सफाई आदि के निरीक्षण तीन बजे के बाद ही यहां अपनी रिपोर्ट देने आते हैं। केसरगंज वार्ड के फूड इंस्पेक्टर मानस महोदधि पंडित रामखेलावन मिश्र गुरसरन बाबू से लगभग पांच-दस सेकेण्ड पहले कमरे में आए थे। क्रय विक्रय क्लर्क एस.डी. शर्मा की मेज़ के सामने पड़ी कुर्सी खींच कर बैठ ही रहे थे कि गुरसरन बाबू ने प्रवेश किया। उन्हें देखते ही मिश्र जी बोले, ‘‘अरे गुरसरन बाबू, बड़ी उमर हो आपकी, मैं अभी रास्ते में आप ही के विषय में चिंता करता आ रहा था...पहले बतलाइए शुभादेश आ गया ?’’ आमतौर से गम्भीर रहनेवाले गुरसरनन बाबू इस समय परम प्रसन्न थे। दायें हाथ की फाइल बाईं बगल में दबाकर तपाक से शेकहैंड के लिए हाथ बढ़ाया और कहां, आफिस में आज आपसे पार्टिंग शेकहैंड कर लूं पंडित जी। ब्राह्मन हैं इसलिए चरन भी...’’

‘‘अरे, अरे, आप आयु में, पद में मुझसे ज्येष्ठ हैं।’’ गुरसरन बाबू को चरणों तक न झुकते उठकर दोनों हाथों से खींचकर छाती से कसकर लगा लिया। फिर नौबतराय की मेज के पास रखी कुर्सी खींचकर गुरसरन बाबू को हाथ पकड़कर बैठाया। फिर कहा, ‘‘अरे हमें तो बड़े विश्वस्त सूत्रों से पता चला था कि आपको अट्ठावन वर्ष....’’ ‘‘वह सत्य था मगर यह भी सत्य है, मिश्र जी। हमारे माननीय बॉस ने बहुत एडवर्स कमेण्ट्स दिए थे। प्रशासक बेचारे क्या करते। वह तो बहुत ही इंसाफपसंद और सज्जन पुरुष हैं।’’ एच.ओ. की निंदा सुनकर उनके सबसे बड़े चमचे नौबतराय उचके, बोले, ‘‘बड़ी-बड़ी रमायनें बांचते हैं आप पंडितजी, न्याय की कहिए। भला काले नाग को पालने के लिए भी कोई उसे दूध पिलायेगा।’’ दफ्तर में सन्नाटा छा गया। प्रसंग को आध्यात्मिक बनाते हुए मिश्र जी बोले, ‘‘देखिए बाबू नौबतरायजी, किसीको दोष देना उचित नहीं है। मैं तो सच पूछिए यह मानता हूँ कि न तो डाक्टर साहब को दोष है और न हमारे मानवीय गुरसरन बाबू का ही श्रीराम सरकार की मर्जी अब कुछ और है। वह यह देखते हैं कि म्युनिसिपल सर्विस से पाई हुई लक्ष्मी से अब यह कोई धन्धा करें कि जिससे इनका और सैकड़ों बेकारों का भला हो...’’

‘‘अपना भला ये अवश्य करेंगे, मगर दूसरों का भला ?-यह इनके धरम में लिखा ही नहीं। एक लड़का स्मगलर प्रिंस हो ही गया। भारत हांगाकंग से ऐसे आता-जाता है जैसे घर-आंगन में घूमता हो।’’ ‘‘देखिए नाइट सॉयल बाबू, अपने काम की सड़ाध सज्जनों के बीच में मत फैलाइए....’’ ‘‘अरे, उसीकी बदौलत तो कोठियां खड़ी की है इन्होंने।’’ कहते-कहते नाइट सॉयल बाबू अपनी कुर्सी पर दोनों पैर उठाकर उचककर बैठ गए।

गुरसरन बाबू कुर्सी से उठे, ‘‘अच्छा मिश्र जी...’’ ‘‘अरे वाह, इस प्रकार कैसे ? बंधुओ, आज हमारे बाबू गुरसरन लाल जी श्रीवास्तव हमारे कार्यालय से विदा ले रहे हैं, उनके लिए अपशब्द बोलना उचित नहीं है। हमें कम से कम अपने कार्यालय की परम्परा रखते हुए एक फेयरवेल पार्टी देनी चाहिए। लाइए, एक-एक रुपया निकालिए फटाफट।’’ ‘‘नहीं पंडित जी, आपने अपने श्रीमुख से ये जो शब्द कह दिए यही फेयरवेल बहुत है। अब आज्ञा दीजिए।’’ चलने के लिए खड़े होकर एक बार नौबतराय की ओर मुड़े, मुस्कराकर कहा, ‘‘आपसे भी एच.ओ. ने कहा होगा। मुझे भी आदेश दिया है कि नौबतरायजी को चार्ज दे दो पांच बजे तक जब चाहिए चार्ज ले लीजिए।’’

नौबतराय भी अब नर्म पड़ चुके थे, कहा, ‘‘चार्ज में लेना ही क्या है। टाइप राइटर रहेगा ही। स्टेशनरी...हां फाइलें....’’ ‘‘मैंने आज ही सब साइन कराके रख ली हैं, एक भी पेंडिंग में नहीं रखी। आप कल से कल का काम ही शुरू करेंगे।’’ गुरसरन बाबू एक बार मानस महोदधि मित्र जी को दूसरी बार सबको एक घुमौवा हाथ जोड़ करके अपने कमरे में चले गए। उनके जाने के बाद इस्टेब्लिशमेंट बाबू दबी जबान में बोले, ‘‘हजार हरामियों के सांचे जोड़कर ब्रह्मा जी ने इसको ढाला था। इनकी थाह न धरती के भीतर लगती है और न आकाश में।’’ मिश्र जी बोले, ‘‘अरे कुछ भी हो यार, आफिस का ट्रेडीशन मत बिगाड़ों विदाई समारोह होना ही चाहिए। लाओ, सब जने एक-एक रुपया निकालो, शर्माजी, हां, यह बात है। धन्यवाद, बाबू नौबतराय। अरे डाक्टर कुलश्रेष्ठ, निकलो भाई। ‘‘एक रुपया बहुत होता है, मिश्रा जी’’-

‘‘मिश्र कहिए, मैं स्त्री थोड़े ही हूं, जो मिश्रा कहते हैं।’’ ‘‘अरे खैर, मिश्र ही सही ? अमा रुपये में पूरे सौ नये पैसे होते हैं महाराज।’’ स्टेनो बाबू डाक्टर कुलश्रेष्ठ हंस पड़े बोले, ‘‘आपकी बात पर एक पुराना कवित्त याद आ गया। किसी उन्नीसवीं शताब्दी के कवि ने आप ही की तरह रुपये का बड़प्पन बखाना था।’’ ‘‘अरे सुनाओ यार, कविताओं और भविष्यवाणियों के तो तुम बादशाह हो।’’ एस.डी. शर्मा की बात पर और भी एक दो बातें उठीं। डाक्टर कुलश्रेष्ठ सुनाने लगे, ‘‘रुपये की महिमा बखानते हुए कवि कहता है- जामे दू अकेला, चार पावली, दुअन्नी आठ, तामै पुनि आना सखि सोलह समात हैं। बत्तिस अधन्नी जामैं चौंसठ पैसा होत, एक सौ अट्टठाइस अधेला गुनमात हैं। जुग सत छप्पन छदाम तामैं देखियत, दमड़ी सु पांच सत बारह लखात हैं। कठिन समैया कलिकाल की कुटिल दैया, सलग रुपैया भैया कापै दियो जात है।’’

‘‘अरे वाह कुलश्रेष्ठ नौबतराय तो केवल सौ तक ही गिन पाए परन्तु तुमने तो सैकड़ों से रुपये का वजन बढ़ा दिया। देख लिया मिश्र जी, कोई रुपयै दिवैया यहां दिखलाई नहीं पड़ता। चाहें तो मरे रुपये से आप फेयरवेल दे सकते हैं।’’ ‘‘अरे यार, रखो भी अपना रुपया, आफिस में किसी का भी फेयरवेल देने का मूड नहीं है।’’ नौबतराय बोले। स्टेनो बाबू ने कहा, ‘‘अरे ये तो अपनी मर्जी से जा रहे हैं, चुनाव के बाद बड़े-बड़े यहां से बेआबरू होकर निकाले जाएंगे, तब फेयरवेल का मूड बनाइएगा बाबू नौबतराय जी।’’ ‘‘तो क्या तुम समझते हो कि तुम्हारी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध होगी ?’’ मिश्र जी ने बड़े रौब के साथ पूछा। स्टेनो बाबू भी उसी तरह रौबीले शब्दों में (कुछ-कुछ मुस्कराते हुए, भी) बोले, ‘‘मान्यवर, आप कुलदीप कुलश्रेष्ठ की बात पर अविश्वास कर रहे हैं। क्या आपको यह स्मरण नहीं है कि मैंने ही पहले वाले मुख्यमंत्री का तख्ता पलटने की भविष्यवाणी सबसे पहले की थी, तब आप ही की तरह तीन-चार भविष्यवक्ताओं के कमेण्ट्स मेरी भविष्यवाणी के विरुद्ध निकले थे।-’’

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