बिगड़ैल औरत / मधु संधु
पिता ने पुचकार कर, भाई ने लताड़ कर, पति ने गुर्रा कर, पुत्र ने तरेर कर, कवियों ने दूध-पानी का हवाला देकर, गुरुजनों ने मंत्रवादी शांत स्वर में, वैज्ञानिकों ने अबला कह कर उसे उसकी औकात बताई, पर बिगड़ैल औरत मानी नहीं।
उसने कहा औरत की अकल चोटी के पीछे होती है, उसने बाल कटवाकर लहरा दिये।
उसने कहा औरत पाँव की जूती है, वह जगमग करते हीरों में बदल गई अब पाँव में डाले या गले में।
उसने कहा औरत आटे का दीपक है, बाहर आते ही कौवे नोच खाएंगें। वह दीप ज्योति से ज्वाला बन गई।
उसने उसे ढोल-सा पीटा, उसने भास्वर में उसके कानों के परदे फाड़ दिये।
उसे गंवार कहा, वह विश्वविद्यालय में प्रथम आ फ़ेलोशिप ले विदेश यात्रा कर आई।
उसे शूद्र कहा, उसने धन-सम्पदा में हिस्सा ले महाभोज करवा गोत्र बादल लिया और पॉश इलाके में बंगला खरीद ठाठ से रहने लगी।
थका हारा वह माथे पर हाथ रख शिथिल-सा बैठ गया। अब- - - - - - -।