बिच्छू / पूनम तुषामड़
Gadya Kosh से
यथास्थिति से टकराते हुए: दलित स्त्री जीवन से जुड़ी कहानियां नाम का यह संकलन 'दमित, शोषित, पीडि़त स्त्री के हक में आवाज उठाने का साहस करता है.
- दलित विमर्श के हलचल भरे परिदृश्य में दलित स्त्री का प्रवेश थोड़ा बाद में होता है. रचनाकार के रूप में उसकी पहचान कठिन संघर्षों के बाद बननी शुरू होती है. लेकिन सबसे मुश्किल आती है दलित स्त्री के उठाए मुद्दों को स्वीकृति मिलने में. पारंपरिक साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों के लिए दलित स्त्री की जिंदगी कभी भी चिंता और चिंतन का विषय नहीं रही.
- इस नई स्त्री को पहचाना आंदोलनधर्मी लेखकों ने. दलित स्त्री रचनाकारों को लैंगिक मुद्दे पर सहयोग मिला संवेदनशील पुरुष रचनाकारों से.
- ऐसे ही 'जेंडर-सेंसिटिव’ (22) कहानीकारों को एकत्रित करने का काम किया अनिता भारती और बजरंग बिहारी तिवारी ने.
- टेकचंद ने उतरन कहानी में विपन्न पारिवारिक और क्रूर सामाजिक स्थितियों में फंसी दलित स्त्री कमली के जरिए उस संरचनागत हिंसा का प्रश्न उठाया है जिस पर परिवर्तनकामी रचनाकारों का ध्यान बहुत पहले जाना चाहिए था. कहानी उत्पीडऩ के चरम से एक नई कमली का उदय दिखाकर समाप्त होती है.
- केदारप्रसाद मीणा की दीपक मैठ मर गया कहानी में शोषण की शिकार सुखमणी शोषक को नेस्तनाबूद करके अपना गांव छोड़ देती है. प्रेम, परिवेश और देह-दोहन के त्रिकोण में घूमती यह कहानी अंतर्मन को देर तक झकझोरती रहती है. नौ बच्चों की मां (कृष्णकांत) में उत्पीड़क स्वयं दलित ननका का पति है. ननका अपने जीवट के दम पर भरे-पूरे परिवार का भरसक ध्यान रखती है लेकिन प्रतिकूलता उसे घर छोडऩे पर बाध्य कर देती हैं.
- पूनम तुषामड़ की कहानी बिच्छू में प्राथमिक विद्यालय का पुरुषवादी जातिवादी स्वरूप उभारा गया है.
- भंगन डॉक्टरनी (सुधीर सागर) में नई दलित स्त्री की पदचाप सुनाई पड़ती है. देहात के घिनौने जातिवादी माहौल से संघर्ष क रके डॉक्टरनी श्वेता पूरी निष्ठा से मरीजों की सेवा करती है. जो ठाकुर परिवार कभी दलितों को सहन नहीं कर सकता था वह अपनी बाकी जिंदगी बचाने के लिए डॉ. श्वेता पर आश्रित हो जाता है. श्वेता अपने अनुभवों का निचोड़ इन शब्दों में प्रस्तुत करती है: दद्दा जी, आपकी बात मानी होती तो मैं डॉक्टरनी नहीं बन पाती. अगर परंपरा की राह चली होती तब किसी का पैखाना साफ रही होती.”
- अनिता भारती ने सीधा प्रसारण में मीडिया, स्वयंसेवी संगठन और बौद्धिक जगत में व्याप्त जातिवादी मानसिकता को अपनी कहानी की विषय-वस्तु बनाया है. संकलन की अन्य कहानियों में हत्यारिन (रतन सिंह गौतम), सिलसिला जारी है (रंजना जायसवाल), वे दिन (रजत रानी मीनू), पत्थर (वाजिदा तबस्सुम), थू-थू (संदीप मील), तर्क बुद्धि (रजनी दिसोदिया), चाबी (ज्योत्सना) अपने-अपने ढंग से दलित स्त्री के चित्र प्रस्तुत करती हैं.
- संकलन की भूमिका में अनिता भारती ने कई प्रासंगिक मुद्दे उठाए हैं और 'दलित स्त्री की दुनिया’ शीर्षक से बजरंग बिहारी तिवारी ने कहानियों का विश्लेषण पेश किया है.
- दलित विमर्श के अध्येताओं के लिए यह एक जरूरी किताब है .