बिछड़न / एक्वेरियम / ममता व्यास
तुमसे अलग होने का कोई भय नहीं, दु: ख है तो बस इतना कि हम साथ-साथ रह न सके. तुम्हारे साथ घने जंगलों में गुम हो जाना था। इन्द्रधनुष को छू लेना था। तुम्हारा हाथ पकड़ कर बहुत दूर तक आसमान में उडऩा था। थक कर तुम्हारी बांहों में मर जाना था।
बिछडऩ का दु: ख नहीं मना रही, हम कभी बिछड़ ही नहीं सकते और हम कभी मिल भी नहीं सकते ये बात तो उस दिन ही तय हो गयी थी जिस दिन हम आसमान से शापित होकर धरती पर आ गिरे थे।
न जाने क्यों तुम्हें लगता है तुम मेरी कल्पना हो और मैंने अकेले ही इस तस्वीर में अपनी पसंद के रंग भरे हैं। तुम कल्पना नहीं हो, हकीकत हो तुम, उतने ही वास्तविक हो जितने गालों पर चिपके हुए मेरे आंसू।
पलकों के कोनों पर जो एक उदास आसूं रुका हुआ है उस से पूछ लो तुम कल्पना नहीं हो। मैंने अपनी भारी होती सांसों में महसूस किया है तुम्हें हर बार, बार-बार।
फिर भी तुम कहते हो मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं है ये सब भ्रम है, चलो मान भी लिया, लेकिन एक बात बताओ ये सब बताने के लिए तुम इतनी दूर आये हो? क्यों बता रहे हो मुझे ये सब...और तुम्हारे चेहरे पर इतनी बेचैनी क्यों है? आंखें क्यों नम