बिना बात रोॅ बात / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
सोनमनी मड़रोॅ के अरजलोॅ अकूत संपत्ति के बंटवारा आभी नै होलोॅ छेलै। दूनों भाय लालजी आरो अधिक साथें छेलै। परिवार बढ़ी गेलोॅ छेलै। चार बेटा दू बेटी लालजी के आरो चार बेटा एक बेटी अधिक मड़रोॅ के. लालजी के तीन बेटा आरोॅ एक बेटी आरोॅ अधिकोॅ के दू बेटा रो बियाह-शादी, गौना होयकेॅ परिवार बसेॅ लागलोॅ छेलै। शालिगरामोॅ के मोसमास भी साथें रहै छेलै।
कहलोॅ गेलोॅ छै जाल जंजाल होय छै। संतान दुख रो कारण होय छै। हुरसा-हुरसी शुरू होय गेलोॅ रहै। संयुक्त परिवारोॅ के सबसें बड़ोॅ दुरगुन यहेॅ छेकै, कोय कमैतें मरोॅ आरो कोय बैठी केॅ दिन काटोॅ, बड़ोॅ होयके कारण लालजी सिरिफ संभारनैं नै छेलै बलुक बाप सोनमनी के संपत आरो यश में भी बढ़ोतरी करी केॅ चार चान लगाय रेल्होॅ छेलै। बाँका सें सटलोॅ मेहरपुर झिरबा मौजा में चौवालीस बीघा जमीन ओड़नी नदी के किनारा में लैकेॅ हुनी वहाँ बड़का-बड़का बाग-बगीचा लगवैलकै। हजारोॅ के संख्या में गाछ-विरिछ, पेड़-पौधा लगाय केॅ बंजर, परती-परांट, जमीन केॅ हरा-भरा करी देलकै। उँच्चोॅ देखी केॅ खपरैल के खूब बढ़िया सात-आठ कोठरी के बासा बनवैलकै।
गाछ-बिरिछ लगाय के अलावा लालजी मड़रें गाँमोॅ से लैकेॅ देवघर-बासुकीनाथ जाय केॅ रसता में जघ्घा-जघ्घा पर बाबा धाम जायवाला यात्राी लेली कुइयां खुदवैलकै, ओकरा पर बाल्टी-डोरी के नियमित व्यवस्था करलकै। यात्रा के दौरान हुनी पानी के ई दुख केॅ खुद भोगलेॅ छेलै आरो हुनकोॅ गाय भी नंगाजोर बासुकीधाम तक चरै लेली जाय छेलै। नंगाजोरोॅ में तीन सौ बीघा जमीन बाप सोनमनीयें खरीदनें छेलै। ओकरोॅ देखभाल करै लेली सालोॅ में तीन-चार बेर हुनका जाही लेॅ पड़ै छेलै। दू-तीन सौ कोस के ई दूर तांय के रसता में एक्को टा कुइयां गाँमोॅ से बाहर नै रहै। ढ़ेर सीनी गामों के लोगों नद्दी रो पानी पीयै छेलै। हुनी यथाशक्ति पानी पीयै के व्यवस्था लोगोॅ के हित में करलकै।
धार्मिक स्वभाव रो हुनी जनमै सें छेलै। बड़का बेटा शालिगरामोॅ के मरला के बाद धर्म, पूजा-पाठ के प्रति हुनकोॅ आस्था आरोॅ बढ़ी गेलै, तब तांय चक्रधर, गजाधर आरो किशोरी तीन-तीन बेटा जवान होय गेलोॅ रहै। खेती, गिरस्ती के जादा से जादा जिम्मेवारी छोटका भाय अधिक आरो बेटा सब पर छोड़ी केॅ लालजी मड़रें बाहारी काम-काजोॅ केॅ संभारै के साथें फुरसत के खुल्ला दिन देखी केॅ सालोॅ में तीरथ लेली निकलना शुरू करी देनें छेलै। तहिया खेती रो काम भी खासकरी केॅ दक्खिन में रोपा छोड़ी केॅ अगहनोॅ में धान काटै के सिवा कुछ्छु नै छेलै। सालोॅ में एक-डेढ़ महिना सौन-भादो आरो एक महिना अगहन काम रहै छेलै, खेती दैव आसरा छेलै। सालोॅ में आठ-नौ महिना बैठगरिये बीतै छेलै। कोय काम, कोय रोजगार नै। लोग भूख सें मरै छेलै। पेट भर खाना पर मजदूर सेथरोॅ मिलै छेलै।
शुरू फागुनोॅ के गेलोॅ लालजी मड़र बैशाखोॅ केॅ पूर्णिमा दिन काशी, प्रयाग, मथुरा, वृन्दावन के तीरथ जतरा सें लौटलोॅ छेलै। एैला के बाद हुनी ऐंगना में खाड़ेॅ होलोॅ छेलै कि सौसे घरें छोटोॅ-बड़ोॅ सभ्भैं गोड़ छूवी केॅ आशीर्वाद लेलकै। सबसें बादोॅ में जैवा डरली-लजैली आबी केॅ गोड़ छूलकै। जैवा केॅ देखतैं अचरज होलै लालजी केॅ। हँसतें हुअें बोललै, "अरे, जैवा! तोंय कहिया एैलैं?"
जैवा कुछ्छ बोलेॅ नै सकलै। बड़ोॅ भाय के यै सवालोॅ पर ओकरा आँखी सें भरभराय केॅ ढ़ेर सीनी लोरोॅ के बूंद लालजी के दूनोॅ गोड़ोॅ पर गिरी गेलै।
उमर के पाकलोॅ, देश-विदेश घुमलोॅ लालजी केॅ समझै में देर नै लागलै। साँझकोॅ समय छेलै। इंजोरिया धापी गेलोॅ रहै। सरंगोॅ में पूरनिमा के चकला भरी सौसे चान खिलखिलैलोॅ, हाँसलोॅ चल्लोॅ आबी रेल्होॅ छेलै। जैवा के माथा पर लालजी ने पियारोॅ सें हाथ राखतें हुअें पूछलकै, "केकरा साथें ऐल्होॅ?"
"चकरधरोॅ साथें ऐल्होॅ अपनें के दुलरी बहिन आरो केकरा साथें ।" झांस भरलोॅ आवाज छेले चक्कोॅ माय पंचोॅ के. पंचोॅ लालजी मड़रोॅ के कनियैनी के नाम छेलै।
वसुआ पौरा के दिलवारिन छेलै पंचो। बाइस सौ बीघा खेतोॅ के जोतदार नागेसर मड़रोॅ के बेटी. बापोॅ दुआरी पर हाथी झूलै छेलै। आवाजोॅ में झांस हुनका विरासत में ही मिललोॅ छेलै। लालजी मड़र नाटोॅ कद आरो गोरोॅ रंग के छेलै; ओकरो ठीक उलटा हुनको कनियान पंचोॅ लंबी, छरहरी आरो एकदम जमुनिया रंग के छेलै। मनरूपा के पूछला पर सोनमनी मड़रे तर्क देनें रहै, "रंगे न थोड़ोॅ दब छै। परिवार आरो खानदान तेॅ उँच्चोॅ छै। तोरोॅ लालजी नाटोॅ छौं, यही लेली देखी-सुनी केॅ कनियान लंबी करलिहौं कि बाल-बच्चा लमकरोॅ होतौं। गंगा पारोॅ के लड़की जंडो, मकेरोॅ, घांटोॅ-सत्तू खैलोॅ स्वस्थ, नीरोग आरो बरियांठी होय छै। ऐकरोॅ असर आबै वाला बच्चा पर भी पड़तौं।"
शायद यहेॅ कारण छेलै कि लालजी के छवोॅ संतान पंचोॅ नांकी ही लंबा, छरहरोॅ, बरियों आरो जमुनियां रंग के होलोॅ छेलै। बड़का बेटा शलिगरामोॅ के मरला के बाद पंचोॅ चिड़चिड़याही होय गेली रहै। जैवा के ऐवोॅ सें हुनी दुखी नै छेलै। हुनका दुख छेलै यै बातोॅ सें की जैवा लड़ेॅ नै पारलै। सास, ननदोॅ केॅ झोटोॅ लबाय केॅ मारेॅ नै पारलै।
पंचोॅ के झांस में छौंक दै के काम मँझला बेटा गजाधरें करी रेल्होॅ छेलै। गजाधरें तेॅ यहाँ तक कहेॅ छेलै कि बाजा जायकेॅ धन्नोॅ मड़र, ओकरोॅ कनियान आरोॅ जैवा के ननद सुरजी केॅ माल-मवेशी नांकी डंगाय केॅ ओकरोॅ करनी के दंड देलोॅ जाय।
लालजी ने शांत आरो सधलोॅ आवाज में कहलकै, "केकरोह बोलै के कोय काम नै छै। हमरोॅ बहिन छेकै, हम्में समझवै। मार झगड़ा करी केॅ कोय भी बेटी ससुरार नै बसेॅ पारै छै, ओकरोॅ पर मसोमास होय गेली बेटी के साथें बहुते समस्या होय छै। जैवा आरो चकरधरें हमरो कुल, खानदान आरो मरजादा के अनुकूल ही काम करनें छै। असकल्ली जैवा कत्ते खैतेॅ। जैवा रोॅ घोॅर छेकै, जैवा याहीं रहतै। सौसे घरोॅ केॅ ई हमरोॅ हुकुम छै कि यै विषय में ऐकरा कोय एक्कोॅ बात बोलतै तेॅ हमरा बहुत दुख होतै। जैवा कुटुमोॅ नांकी नै परिवारोॅ के एक सदस्य नांकी अधिकारोॅ के साथ जब तांय जीतै याहीं हमरै सीनी ठिया, हमरै सीनी के देखरेख में रहतै। हमरोॅ तोरा सीनी सबसें प्रार्थना छौं कि ऐकरा मान-सम्मान के रक्षा करिहोॅ।" घरोॅ के मालिकोॅ रो निर्णय होय गेलोॅ छेलोॅ। आवेॅ केकरोह बोलै के कोय ज़रूरते नै छेलै।
पंचोॅ ने बोलै के साहस करलकै, "सब दिन जीत्तेॅ रहवोॅ मालिक। जैवा के आगू दिनोॅ लेली भी सोचै लेॅ पड़तौं।"
"ई बात तहूँ ठीक्केॅ कहलोॅ मलकैन। जैवा केॅ पाँच बीघा जमीन ऐकरा नामें लिखी देबै। जें ऐकरोॅ सेवा, खिलौन-पिलौन करतैेॅ, जमीनोॅ के उपजा वहीं खैतेॅ। अतना बड़ोॅ परिवारोॅ में जैवा के मोॅन जन्नें, जेकरा ठिंया रहेॅ के होतै, रहतै।" अतना कहि केॅ लालजी मड़रें जैवा केॅ कहलकै, "पानी-वानी पिलाव जैवा।"
जैवा सबसें बड़ोॅ भाय केॅ पानी लानी केॅ पिलावै लेली कुइयां तरफें दौड़लै। मड़रें यै बीचोॅ में सबकेॅ गूढ़ बातोॅ के संदेश देलकै, "तीस के लगभग उमर तेॅ जैवा के ज़रूरे होय रेल्होॅ होतै। कुल-खानदानोॅ के नाम यें जोगी रेल्होॅ छौं ऐकरा सें बढ़ि केॅ की चाहियोॅ। असल उमर तेॅ यें जोगी देलखौं। ऐकरोॅ ई साधना केॅ हमरा सीनी केॅ आदर भाव सें देखना चाहियोॅ।"
जैवा पानी लैकेॅ आबी चुकलोॅ छेलै। लालजी पानी पीतें हुअें कहलकै, "बड्डी दुख भोगल्हेॅ ससुरारी में, केकरोह लगां खबरोॅ तेॅ करतिहें बहिन।"
"सौसे घरोॅ के पहरा चौवीसोॅ घंटा रहै छेलै भैया।" जैवा ऐकरा सें बेशी कुछ्छु नै बोलै पारलै। प्रेम पावी केॅ आँखे चूअेॅ लागलोॅ छेलै। "हमरोॅ अंतिम बात गिरहोॅ बान्हियोॅ, बितला केॅ भूली केॅ भगवानोॅ के चरण में धियान लगावोॅ।" अतना कहि केॅ मड़रजी दुआरी पर सबसें मिलै लेॅ चल्लोॅ गेलै।