बिना मरे स्वर्ग का अनुभव / जयप्रकाश चौकसे
बिना मरे स्वर्ग का अनुभव
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2012
अमेरिका के अनेक मल्टीप्लैक्सों में एक ही फिल्म २डी, ३डी, ४ और ५डी में अलग-अलग सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है। कुछ लोग उसे चारों तकनीकी जगमग में देखते हैं और प्रभाव के अंतर का मजा लेते हैं। भारतीय दर्शक एकल सिनेमाघर, मल्टीप्लैक्स में २डी और ३डी सिनेमा देख पाते हैं। मुंबई के वडाला में आइमैक्स सिनेमाघर में 'द डार्क नाइट राइजेस' के अब तक सारे शो फुल हैं, जबकि अन्य छविगृहों में दर्शक संख्या औसत है। टिकट खिड़की पर यह अंतर फिल्म के प्रभाव के कारण है। कथा वही है, परंतु तकनीकी जगमग अलग-अलग है। यद्यपि हमारे सिनेमाघर अभी शैशव अवस्था में हैं।
5डी सिनेमाघर में दर्शक की कुर्सी में फिल्म से तालमेल जमाए स्वत: चलने वाली हरकतें प्रोग्राम्ड होती हैं, मसलन नायक कार को सीधे हाथ की ओर मोड़ रहा है तो सीट भी उस तरह थोड़े-से कोण से घूमेगी। नायक के ब्रेक लगाने पर दर्शक को लगेगा कि वह भी उस गाड़ी में सवार है, जिसमें अचानक ब्रेक लगाया गया है। सारांश यह कि दर्शक कथानक का हिस्सा है। अब वह बाहर बैठा पर्यवेक्षक नहीं है। उसे पात्रों के अनुभवों या अभिनय को महसूस करने का अवसर मिल रहा है। टेक्नोलॉजी की दया है कि पात्र की मृत्यु के दृश्य में दर्शक को यम का न्योता मिलने के अनुभव से बचाया है और तेजी से बदलते मनोरंजन परिदृश्य में इन छोटी मेहरबानियों के लिए हमें टेक्नोक्रेट का शुक्रगुजार होना चाहिए, परंतु शवयात्रा में शामिल होने के दर्द से दर्शक बच नहीं सकता। गोयाकि बिना मरे टेक्नोलॉजी ने 'स्वर्ग' के अनुभव का ट्रेलर या 'प्रोमो' रचा है। संवेदनाओं के भोथरी होने के कालखंड में इस तरह का सिनेमा महसूस करने की ताकत को मांजने का काम करता है या कहें कि आत्मा पर चढ़े हुए जंग की ऊपरी परत हटाई जा सकती है और 'चांदी सी कलई' भी चढ़ाई जा सकती है। हमें टेक्नोलॉजी का फिर शुक्रिया अदा करना होगा कि अभी तक वह संवेदना की प्लास्टिक 'चिप' नहीं बना पाया है, वरना अनारकली की संवेदना चिप खाप के अकबर में लगा दी जाती और वह सलीम को दीवार में 'चुनवा' देता/देती।
सारांश यह है कि मनोरंजन टेक्नोलॉजी अब एबीसी को समझकर अभी महज 'डी' तक पहुंची है और यहां उसकी सुई अटक गई है। चौड़ाई, लंबाई और गहराई के डायमेंशन से परे अब वह अवचेतन में प्रभाव की चिप लगाना चाहता है। भारत में शीघ्र ही ५डी की सुविधा देने वाले जलसाघर खुल जाएंगे। मनोरंजन के डायमेंशन फैलते जा रहे हैं। समाज में संतोष हो तो सिनेमा व्यवसाय चलता है, असंतोष हो तो ज्यादा चलता है और अराजकता की दशा में शिखर पर होता है। शराब, मनोरंजन और देह व्यवसाय में कभी मंदी का दौर नहीं होता। जाहिर है खोखले समाज को सनसनी चाहिए। कभी कुछ नेता और बाबा भी खोखलेपन को प्लास्टिक उत्तेजना से भर देते हैं। जनता को मार्गदर्शन देने के व्यवसाय में शराब, मनोरंजन और वेश्यावृत्ति के धंधों के कुछ तत्व शामिल होते हैं। टॉम क्रूज की एक फिल्म 'प्राइमल फियर' के प्रथम संवाद में ही वह एक खोजी पत्रकार को सलाह देता है कि सत्य तुम्हें वेश्यालय में मिलेगा और प्रेमानंद राजनीति में मिलेगा। कहीं नेताजी का डीएनए उन्हें पिता सिद्ध कर रहा है, कहीं नेताजी की 'पत्नी' ने उनकी बेरुखी और स्वार्थ के कारण खुदकुशी की है, कहीं नेताजी की एक सखी ने दूसरी की हत्या करा दी है। राजनीति की 'शक्ति' विविध ढंग से अभिव्यक्त होती है।
5डी विधा की जानकारी मुझे याद दिलाती है कि लुमियर बंधुओं के रूस मेें फिल्म प्रदर्शन के समय महान लेखक मैक्सिम गोर्की मौजूद थे और उन्होंने अपने प्रतिदिन प्रकाशित होने वाले कॉलम में लिखा 'कल मैं छायाओं के अद्भुत संसार में था। इन बिंबों का असाधारण प्रभाव विलक्षण, जटिल और बहुआयामी है। मुझे नहीं लगता कि इन प्रभावों के सभी पहलुओं की स्पष्ट व्याख्या करना आज संभव है। जब माली के बगीचे में पानी देने का दृश्य आया तो बौछार सीधे दर्शक के मुंह पर पड़ेगी, इसलिए वह पीछे हटता है... तुम भूल जाते हो कि तुम कहां हो। अद्भुत कल्पनाएं तुम्हारे दिमाग में प्रवेश करती हैं...।' महान मैक्सिम गोर्की ने सिनेमा के दूसरे प्रदर्शन पर ही १८९६ में उसकी संभावनाओं और विविध प्रभावों की भविष्यवाणी कर दी थी। सृजनशील व्यक्ति वक्त के जामेजम(क्रिस्टल ग्लास) में भूत और भविष्य का आकलन कर लेता है। शायद इसीलिए वर्तमान के क्षण में वह कालातीत रचना रच पाता है। बहरहाल, जीवन में प्लास्टिक गहरे पैठा है और सुबह की सैर के बदले कुछ लोग स्टिमुलेटर मशीन लगा लेते हैं चले बिना चलना इसे कहते हैं।