बिपाशा बसु को नया अवसर / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिपाशा बसु को नया अवसर

प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2011


'सिटी ऑफ जॉय' नामक फिल्म के लिए चर्चित फिल्मकार रोलैंड जॉफ की नई फिल्म अजेय झंकार की कहानी पर आधारित अंग्रेजों और मराठा के बीच युद्ध की काल्पनिक कहानी है जिसमें मराठा महिला योद्धा दुश्मन अंग्रेज से प्यार कर बैठती है। इसकी पटकथा कुछ इस ढंग से लिखी गई है कि विगत के दो कालखंड इसमें प्रस्तुत हैं और दो महाद्वीपों में शूटिंग होने वाली है। बिपाशा बसु महिला योद्धा की भूमिका करने जा रही हैं। यह अवसर उन्हें उस समय मिला जब उनका कॅरियर डूबता सा नजर आ रहा था। बिपाशा बसु उनके पहले प्रस्तुत बंगाली बालाओं से अलग लगती रही हैं। आज उन्हें सुचित्रा सेन, शर्मिला टैगोर, राखी गुलजार या मौसमी चटर्जी की तरह नहीं देख सकते। वे उस श्रेणी का सौंदर्य नहीं हैं परंतु उनमें अपना कुछ नमक है, सांवलेपन में कशिश है और अदाओं में आमंत्रण है। गोयाकि बंगाल का काला जादू ऐसे भी अभिव्यक्त होता है।

वह हमेशा शर्मिला या राखी सा उजागर नहीं होता और सुचित्रा सेन कभी दोहराई नहीं जा सकतीं। उनकी मौलिकता शताब्दियों के वर्कों में महफूज है। बहरहाल बंगालन बिपाशा बसु अपने फिसलन के दौर में मराठा महिला की भूमिका करने जा रही हैं। हॉलीवुड के पास विगत कालखंड पर विशाल फिल्में रचने की अद्भुत योग्यता है। उनके पास विकसित टेक्नोलॉजी है और विशेष प्रभाव के दृश्यों में उनका कोई सानी नहीं है। पूरी रचना सुनियोजित होगी।

यह गौरतलब है कि इतने सफल विदेशी निर्माता की रुचि इस तरह के विषय में कैसे जागी। अंग्रेज और मराठों के युद्ध में आज भारतीय दर्शक रुचि ले सकते हैं, परंतु अन्य देशों में इसे कैसे स्वीकार किया जाएगा। अगर कालखंड, वेशभूषा और पृष्ठभूमि को नजरअंदाज करें तो यह कथा देशप्रेम बनाम व्यक्तिगत प्रेम के द्वंद्व की कथा है, जैसे आम्रपाली नगरवधु थी और प्रेम उसका पेशा था परंतु उसने देश को महत्व दिया। दो विरोधी खेमों के लोगों के बीच प्रेम की कहानियां पहाड़ों की तरह पुरानी हैं। 'काबुल एक्सपे्रस' के फिल्मकार कबीर खान के पास एक कहानी है जिसमें पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था और भारतीय गुप्तचर संस्था के दो सदस्यों के बीच प्रेम पनपता है और वे दोनों पक्षों को अपरोक्ष रूप से एक-दूसरे के खिलाफ उकसाने वाले तीसरे पक्ष के षडयंत्र को विफल करके तमाम सरहदों के परे अपनी छोटी सी गृहस्थी बनाते हैं।

किशनचंद्र एक इसी तरह की एक भारत-पाक कथा पर 'जर्रा जर्री' नामक पटकथा गुलजार के पास बरसों से रखी है। सआदत हसन मंटो की 'टोबा टेकसिंह' पर भी फिल्म बनाए जाने की कोशिश हो रही है। अनेक शक्तियां हैं जो इस तरह के प्रेम के खिलाफ खड़ी होती हैं। निदा फाजली की पंक्तियां इसे कुछ यूं बयां करती हैं-

यह कंकर पत्थर की दुनिया जज्बात की कीमत क्या जाने,

दिल मंदिर है दिल मस्जिद भी है, यह बात सियासत क्या जानें।