बिपाशा बसु : जिस्म मे आत्मा का राज / जयप्रकाश चौकसे
बिपाशा बसु : जिस्म मे आत्मा का राज
प्रकाशन तिथि : 31 अगस्त 2012
महेश भट्ट की फिल्म कंपनी से या तो लड़कियां अपना कॅरियर शुरू करती हैं या संध्या से कुछ पूर्व ताप और बाफ के लिए लौटती हैं, ताकि संध्या की छायाओं को लंबा खींचें या कुछ समय के लिए थाम लें। उन्हें कुछ ऊष्मा और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। बहरहाल, बिपाशा बसु और विक्रम भट्ट भी 'राज-३' के लिए अपने प्रारंभ की संस्था में लौटे हैं। स्वयं महेश भट्ट की शुरुआती फिल्म थी 'मंजिलें और भी हैं', जिसमें दो अपराधी एक तवायफ के साथ कानून की पहुंच के परे जाने का प्रयास करते हैं। रिश्तों की अजीबोगरीब गुत्थी की फिल्म बनाने के बाद उन दिनों वह अपने जीवन में उद्देश्यहीन आक्रोश से भरे थे और अरमान थे उद्योग के तौर-तरीके बदलने के। इस उद्योग में आए तमाम आक्रोश भरे लोग इसकी व्यावसायिक मिक्सी में घुटकर व्यवस्था का प्रतीक बन जाते हैं। यहां रेबेल स्टार भी आए हैं और सारे समय उछलकूद करके अपने हाव-भाव में कैद हो गए। अनेक नए पथ के निर्माण का दावा करने वाले सौ करोड़ की श्रेणी में घुसने के लिए गैंगस्टर फिल्में बनाने लगते हैं।
बहरहाल, महेश भट्ट ने एक दौर में 'सारांश', 'अर्थ', 'काश' और 'कब्जा' जैसी फिल्में भी बनाई हैं और सितारा चक्रव्यूह को तोडऩे का सार्थक प्रयास किया है, परंतु व्यावहारिकता का तकाजा था कि कथा और प्रस्तुतीकरण को सितारा बनाकर नए कलाकारों के साथ फिल्मों का निर्माण फैक्टरी की तर्ज पर करें और उन्होंने एक-एक रन लेकर शतक बनाने का फैसला किया। वह अब ब्रांड हो गए हैं, परंतु उनकी अपनी बेटी करण जौहर की 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' से प्रवेश करने जा रही है। यह उनकी बेटी के लिए अच्छा है कि वह अपने पिता के ठप्पे से बचकर प्रवेश कर रही है। रामगोपाल वर्मा की 'फैक्टरी' में माल बाजार में आने से पहले ही एक्सपायरी डेट में आ गया। दरअसल फिल्म उद्योग के प्रारंभिक दशक में स्टूडियो को फैक्टरी कहा जाता था और उस पर लेबर एक्ट लागू होता था। कालांतर में फिल्म विधा के कला स्वरूप उजागर हुए और कुछ फिल्मकारों ने लीक से हटकर फिल्में रचीं। आजकल कुछ निर्माण संस्थाएं फिर फैक्टरी की तर्ज पर अनेक फिल्में बना रही हैं। यश चोपड़ा, करण जौहर और साजिद नाडियादवाला एक साथ पांच से अधिक फिल्में बनाने में लगे हैं और प्रचार, पूंजी निवेश तथा वितरण क्षेत्र में भी बाजार के मुहावरे जैसे ब्रांड इत्यादि प्रयुक्त हो रहे हैं। इतना ही नहीं, बाजार के संयंत्र का एक हिस्सा हो गया है फिल्म उद्योग।
बिपाशा बसु ने शुरुआती दौर में भट्ट कैंप की फिल्में करने के बाद बड़े निर्माताओं की फिल्में कीं और डिनो मोरिया के बाद जॉन अब्राहम के साथ इश्क की पारियां खेलीं। कुछ माह पूर्व ही वह जॉन से अलग हुई हैं। उन्होंने मधुर भंडारकर की 'कॉर्पोरेट' में साहसी भूमिका निभाई। जब एक सितारा जोड़ी अनेक वर्ष की अंतरंगता के बाद अलग होती है तो टूटे रिश्ते का अनुभव उन्हें ज्यादा समझदार बना देता है। गौरतलब यह है कि क्या गुजश्ता दौर की यादों से भी मुक्ति मिल जाती है या जीवन के श्रेष्ठ वर्ष के व्यर्थ चले जाने की टीस बनी रहती है या अपने चुनाव और उस दौर के जुनून पर पछतावा होता है? कोई भी समय गुजरकर भी पूरी तरह कहां गुजरता है। जीवन के बर्तन में टूटे हुए रिश्तों की तलछट आसानी से साफ नहीं होती और जोर-जबर्दस्ती करने पर बदनुमा दाग मोहब्बत को मुंह चिढ़ाते हैं। कुछ आईने होते हैं, जिनमें छवियां विकृत नजर आती हैं।
बहरहाल, मुंबई फिल्म उद्योग में बंगाली बालाओं के दौर रहे हैं। सुचित्रा सेन के बाद शर्मिला टैगोर, राखी गुलजार, मौसमी चटर्जी, मुनमुन सेन इत्यादि नायिकाएं भी यहां सक्रिय रहीं। बंगाली बालाओं का मिजाज व तेवर थोड़े अलग होते हैं और मुंबइया लड़कियों की चालाकी उनके पास नहीं होती। वे बहुत मासूम और निरीह भी नहीं होतीं। पारंपरिक तौर पर बंगाल का जादू प्रसिद्ध है और इन बंगाली बालाओं को भी नहीं समझ पाने के कारण जादू ही मानना चाहिए। बिपाशा बसु अन्य बंगाली बालाओं से अलग बहुत कुछ महानगरीय मिजाज की रही हैं। वह मुंबई फिल्म उद्योग में अप्रवासी बंगाली की तरह रही हैं। यह बात अलग है कि 'राज-३' में वह काला जादू करने वाली पात्र की भूमिका में हैं और इसके बाद 'आत्मा' नामक फिल्म में भी नजर आएंगी। बिपाशा पहली बंगाली सितारा हैं जो किताब पढऩे से ज्यादा वक्त जिम में बिताती हैं, क्योंकि इस दौर में चुस्त-दुरुस्त शरीर एक टकसाल है। उन्हें फिल्म उद्योग में लगभग एक दशक हो गया है और अभिनय मंझ गया है, परंतुइस दौर में नई लड़कियां इतनी तेजी से आ रही हैं, जैसे पोल्ट्री फार्म में मुर्गी का दड़बा खुला रह गया हो। बहरहाल, केवल बिपाशा का सुडौल जिस्म ही उनकी आत्मा का राज है।