बिरखा थारा कितरा नांम / भंवरसिंह सामौर / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: जनवरी-मार्च 2012 |
राजस्थानी री अेक जूनी कैबत है-
छळ बळ रा मारग किता, तो हाथां किरतार।
मारण मारग मोकळा, मेह बिना मत मार॥
राजस्थान वास्तै बिरखा जीवण रो आधार हुवै। इण वास्तै बिरखा रो सुवागत अठै रा लोग घर मांय नुवीं बीनणी-लिछमी मांन'र करै। राजस्थान मांय बिरखा अर पांवणा कदे-कदे ही आवै। पण आवै तो सुवागत मांय आखी जीया जूंण पलक पांवड़ा बिछावण में कसर कोनी राखै। अठै रा लोगां नैं बिरखा ग्यांन री जांणकारी भी कमती कोनी। सो कोस री खिंवण अर तीस कोस री गाज रै मिस प्रकास अर धुनि री चाल रो फरक अठै रो गुवाळियो ही जांणै।
बिरखा इण मरूथळ मांय सबसूं कम बरसै पण इण री आवभगत सारू पूरो चौमासो है। इण बिरखा रै वाहण बादळां रा सगळां सूं घणां नांम अठै ही लाधै। बादळां रा इतरा नांम कै बां नांवां री गिणती आगै बादळ खुद थोड़ा हो ज्यावै। बिरखा नैं धारण करणियां बादळां रा इतरा नांम कै खुद बादळ वां आगै कम पड़ ज्यावै। बादळ नैं राजस्थानी मांय जळधर, जळहर, जळवाह, जळधरण, जळद, जीभूत, घटा, घर, सारंग, बोम, बोमचर, मेघ, मेघाडंबर, मुदिर, महिमंडण, धरमंडण, भरणनद, पाथोद, पीथळ, पिरथीराज, पिरथीपाळ, पावस, डाबर, डंबर, दळबादळ, घण, घणमंड, जळजाळ, काळी, कांठळ, कळायण, कारायण, कंद, हब्र, मैंमट, मेहाजळ, मेघांण, महाघंण, रामइयो, सेहर, बसु, बैकुंठवासी, महीरंजण, अंब, इलम, नभराट, ध्रवण, पिंगळ, धाराधर, जगजीवण, जळबाहण, अभ्र, बरसण, नीरद, पाळग, बळाहक, जळवह, जळमंडळ, घणांघण, तडि़तवांन, तोईद, परजन, आकासी, जळमुक, जळमंड, महिपाळ, तरत्र, निरझर, भरणनिवांण, तनयतू, गयणी, महत, किलांण, रौरगंजण इत्याद घणां ही नाम मिलै। आं नांवां मांय गांव गेर रो नांकुछ गुवाळियो अर हाळी बाळदी दस बीस ओर नाम जोड़ देवै तो अचंभै री बात कोनी।बिरखा रा बादळां रै आकार प्रकार, चाल-ढाल रै मुजब न्यारा नांव इण भांत प्रगट हुवै। बिरखा रै बडै बादळां रो नाम सिखर तो छोटा-छोटा ल्हैरदार बादळिया छीतरी कुहावै। पसर्योड़ा बादळां रै रेवड़ मांय अळगो रह्यो थको छोटोसोक बादळो ही अठै गिणती सूं कोनी छूट्यो। उणनैं चूंखो-चूंखलो कैय बताळाईजै। पवन रै रथ में बैठ बरसण सारू दूर सूं आंवता बादळ कळायण बाजै। काळै बादळां री घटा रै आगै धोळै बादळां री धजा सी फरूकती दीखै बो कोरण अथवा कागोलड़ कहीजै। धोळी धजा बिहूंणी काळी घटा आंवती दीसै बा कांठळ बाजै। इतरा न्यारा न्यारा नांवां रा धणी बादळ आभै में हुवै तो च्यार दिसावां छोटी पड़ ज्यावै। इण वास्तै आठ, दस अर सोळा दिसावां बण ज्यावै।
ऊंचाई नीचाई अर बीचाळै उडबाळै बादळां रा ही न्यारा न्यारा नांव लाधै। पतळा अर ऊंचा बादळ कस अर कसवाड़ बाजै। नैरत सूं ईसांण धकै थोड़ा ढुकणिये बैंवता बादळ ऊंब कुहावै। घटा री छावणी घटाटोप बाजै। थोड़ी-थोड़ी बरसती घटावां सहाड़ बाजै। आथूंण सूं पवन रै बेग दोड़ती घटावां लोर बाजै अर बै लोर गळण लागै जणां लोरां झाड़ मंडै। बरस्यां पछै सुस्ताता बादळ रींछी कुहावै। काम सूं आराम करता बादळां री इतरी समझ राखणियैं समाज नै उणसूं हेत राखणियों समाज ही मेहा तो बरसत भला कैय'र बिरखा नै मंगळकारी ही मांनै। आऊगाळ बिरखा आवण री बधाई रो संकेत देवै। अठै बिरखा भलां ही कम हुवो पण उण री आव भगत सारू पूरो चौमासो है।
बिरखा रै बादळां रा ही जद इतरा नांव है तो उणरी चांदी बरणी छांटां री तो कितरा ही रूपां अर कितरा ही नांवां सूं बतळावण लाधसी। मेह री झड़ी ज्यूंही नांवां री झड़ी लाधै। छांट रो पहलो ही नाम हरि है। फेरूंस मेघपुहप, बिरखा, बरखा, घणसार, मेवलियो, बूलौ, सीकर, फुंहार, छिड़को, छांटो, छांटा-छिड़को, छछोहो, टपको, टीपो, टपूकलो, झिरमिर, पुणंग, जीखौ, झिरमिराट अर उण सूं आगै झड़ी, रीठ अर भोट बणै। झड़ी लगोलग बरस्यां जावै तो झड़ मंडण, बरखावळ, हलूर बाजै। न्यारै महिनां री बिरखा रा ही न्यारा-न्यारा नांम हुवै। सावण री बिरखा लोर, भादवै री बिरखा झड़ी, आसोज री बिरखा मोती, कातिक री बिरखा कटक, मिंगसर री बिरखा फांसरड़ो, पोह री बिरखा पावठ, माघ री बिरखा मावठ, फागण री बिरखा फटकार, चैत री बिरखा चड़पड़ाट, बैसाख री बिरखा हळोतियो, जेठ री बिरखा झपटो अर असाढ री बिरखा सरवांत बाजै।
मेहाझड़ में छांटां री चाल अर अवधी दोन्यूं बधै। झपटै में चाल बधै अर अवधी कम हुवै। त्राट, त्रम झड़, त्राटकणों, धरहरणो भी छांटां रा न्यारा-न्यारा रूप हुवै। मूसळधारा छांटा छोळ, आणंद बाजै। तेज बिरखा री आवाज सोकड़ हुवै। बादळ सूं धरती नैं अेकमेक करबाळी छांटां धारोळा बाजै। धारोळां री बोछाड़ बाछड़ बाजै। धारोळां सागै उठबाळी आवाज घमक-घोख बाजै। घमक सागै बैंवती प्रचंड पवन खरस, बावळ, सूंटो बाजै। धारोळा पाछा ऊंचा चढै तो बिरखा थमै। बादळां बिचाळै सूं छिपतो सूरज झांकै तो बै किरणां मोख नांखै। मतलब बिरखा रो जोर टूट्यो कोनी। जिण रात घणों मेह बरसै बा रात महारैण बाजै। परभातै री बिरखा सुवाव री कोनी मानीजै। पाछलै पोहर री बिरखा सुवाव री गिणीजै।
बूठणूं बिरखा बरसण री क्रिया तो उबरेळो बिरखा थमण री क्रिया बाजै। बिरखा रो जळ पालर पांणी बाजै। बिरखा बरसण सूं उबरेळै लग अेकूंक ढांणी, गांव, सहर आपरै खेत, घर आंगणै, छात तकात पर बिरखा रै सुवागत सागै उण री अेकूंक छांट नैं मोत्यां सूं मूंघी कर मानैं, घीव ज्यूं बरतै। अै बातां पोथ्यां री कोनी, लोगां री जुबानी है। इणी सूं स्रुति, स्मृति, वेद, कतेब बणी है। जिण बात नैं लोगां याद राखी, बीं नै आगै सुणाई, बधाई अर सगळो समाज आं नैं धारण कर अेक जीव हुयग्यो। राजस्थान रै सबद रूप ग्यान नैं लोगां न राज नैं सूंप्यो, न सिरकार नैं, न आज री भासा नैं सूंप्यो, न बाणियां बकालां नैं। घर-घर, गांव-गांव मांय लोगां ही इण संभाळ्यो, आगै बधायो।