बिरसा मुण्डा / प्रदीप प्रभात
बिरसा मुण्डा के जन्म खूँटी जिला रोॅ अकड़ी प्रखण्ड अन्तर्गत उलिहातु गाँव में 15 नवम्बर 1875 ई. में होलोॅ छेलै। हिनकोॅ बाबू के नाम सुगना मुण्डा आरो माय के नाम करमी छेलै। बिरसा मुण्डा पाँच भाय छेलै। कोन्ता, दस्कीर, चम्पा, बिरसा आरो कानू। बिरसा आपनोॅ माय-बापोॅ के चौथोॅ बेटा छेलै। हिनी खेती-बारी करै वाला एक गरीब परिवार छेलै। परिवार के लोग ईसाई छेलै। र्दसाई बनै वकती हिनकोॅ बाबू के नाम पौलुस रखलोॅ गेलोॅ देलै। बिरसा के आरंभिक नाम 'दाउद' छेलै।
परिवार रोॅ आर्थिक स्थिति दयनीय रहे के कारण बिरसा के परिवार चलकद चल्लोॅ ऐल्लेॅ छेलै। यहाँ वीर सिंह मुण्डा के घरोॅ में हिनका शरण मिललै। मतर कि यहाँ भी हिनकोॅ परिवार न´ टिकें पारलै आरो हिनीं सब कुटुम्बा चल्लोॅ ऐलै। फिनू-घुमलोॅ फिरलोॅ चलकद वापस लौटी एैलै।
बिरसा रोॅ जीवन भी यहेॅ रड। नानी के घोॅर, मौसी के घोॅर, पादरी ेके घोॅर, तेॅ कखनू पाण्डेय के घोॅर घुमते हुवेॅ बीतै छेलै। जबेॅ बिरसा पाँच सालोॅ के छेलै तेॅ ऊ ननिहाल अयूबहातु गाँव चल्लोॅ गेलोॅ छेलै। यहाँ सें हुनकोॅ छोटकी मौसी जोनी आपनोॅ साथेॅ आपनोॅ ससुरार खटंगा लै गेलोॅ छेलै। यहाँ एक पादरी नेॅ हुनका कुछु पढ़ैलेॅ-लिखैलेॅ देलै। कहै छै कि पढ़ाय-लिखाय में या कोय भी कामोॅ में ऊ एतना रमी जाय छेलै कि हुनका दोसरोॅ चीजोॅ के सुधगुध न´ रहै छेलै। एक दाफी (एक बार) बकरी चराय वक्ती एक भेड़िया हुनकोॅ बकरी लैकेॅ भागी गेलै मतर कि हिनका पता न´ चललै। हुनकोॅ मौसा हिनका पेॅ खुब्बेॅ नाराज होय गेलोॅ छेलै। बिरसा दुःखी होय केॅ आपनोॅ भाय कोन्ता के पास बरटोली चल्लोॅ ऐलै। यहाँ गौड़ बेड़ा के आनंद पाण्डेय रोॅ घरोॅ पेॅ काम करेॅ लागलै। आरो दोसरोॅ सीनी बच्चा साथेॅ पढ़ेॅ भी लागलै। पाण्डेय जी आपनोॅ घरै पेॅ बच्चा सीनी के पढ़ाय करै छेलै।
याहीं बिरसा नेॅ अर्जुन, भीम, राम, लक्ष्मण, आरो सीता के कहानी सुनलकै। पाण्डेय जी गाँव में एक पोखर बनवाय रहलोॅ छेलै जेकरा में बिरसा के भागीदारी सें ऊ खुब्बेॅ खुश होलोॅ देलै। बिरसा एक अचूक निशानेबाज छेलै साथेॅ-साथेॅ बाँसुरी भी बढ़िया बजाबै छेलै। बरटोली में ही एक पादरी सें हुनकोॅ भेंट होलै आरो ऊ चाईबासा चल्लोॅ गेलै। यहाँ हुनीं 1886 में निम्न प्राथमिक परीक्षा पास करलकै आरो 1890 में उच्च प्राथमिक परीक्षा भी पास करलकै। मतर कि स्कूली में पादरी सीनी द्वारा आदिवासी धरमोॅ के उपेक्षा करतें देखी-सुनी केॅ हुनी स्कूल छोड़ी केॅ आपनोॅ गाँव चलकद में रहेॅ लागलै यहाँ रहतेॅ हुवेॅ बमनी के बड़ारक के यहाँ एक वैष्णव संत सें हुनकोॅ मुलाकात होय गेलै। बिरसा हुनका सें ऐतनै प्रभावित होलै कि हुनी चंदन, जेनऊ धोती धारण करि केॅ पूजा पाठ करेॅ लागलै। हुनी तुलसी रोॅ पूजा करेॅ लागलै आरो ईसाई धरम रोॅ त्याग करि देलकै। कहलोॅ जाय छै कि एक दिनां पाट पुरा में हुनका भगवान विष्णु के दर्शन होलोॅ छेलै। ई हुनकोॅ जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन रोॅ समय देलै। हुनी उपदेश देना शुरु करि देलकै आरो हुनी बिरसा धर्म रोॅ प्रवर्तक बनी गेलै। धरम के साथेॅ-साथ राजनीति आरो अधिकार के भी बात हुवेॅ लागलै हुनकोॅ अनुयायी सीनी रोॅ संख्या बढ़ेॅ लागलै।
1895 तांय हुनकोॅ छः हजार अनुयायी छेलै। हुनी बीमार लोगों केॅ भी चंगा करेॅ लागलेॅ। लोगोॅ हुनका 'भगवान' कहेॅ लागलोॅ छेलै।
हुनकोॅ ख्याति देखी केॅ अंग्रेज़ी सरकार परेशान हुवेॅ लागलै। अंग्रेजेॅ नेॅ षडयंत्र करि केॅ हुनका पर आरोप लगैलकै कि यें आदमी सीनी केॅ सरकार रोॅ खिलाफ भड़काय रोॅ काम करै छै। ई आरोप लगाय केॅ 1895 में हिनका गिरफ्तार करि केॅ जेल भेजी देलोॅ गेलै। अढ़ाय सालोॅ के बाद जेल सें बिरसा निकललै तेॅ अंग्रेजोॅ के प्रति हुनकोॅ मनोॅ में खुब्बेॅ आक्रोश छेलै।
आबेॅ हुनी बिरसा सेना रोॅ सर्जन करेॅ लागलै आरो खुली केॅ अंग्रेजोॅ रोॅ खिलाफ गोरी सरकार रोॅ विरोधोॅ में आगिन उगलेॅ लागलै। 1897 में हुनी सब्भेॅ मुण्डासीनी केॅ एक जुट होय रोॅ आह्वान करलकै। खूँटी के पास डोम्बारी पहाड़ आन्दोलन रोॅ केन्द्र बनी गेलै। 25 दिसम्बर 1899 के दिनां हुनी वास्तविक विद्रोह शुरू करि देलकै। राँची आरो खूँटी में आतंक फैली गेलोॅ देलै। 8 जनवरी केॅ छोटानापुर रोॅ कमिश्नर खूँटी पहुँचलै तेॅ कै एक लोग गिरफ्तार होलै, मारलोॅ गेलै मतर कि बिरसा पकडत्र में न´ ऐलै।
आबेॅ हुनी चक्रधरपुर रोॅ जंगलोॅ में रहेॅ लागलोॅ छेलै। डोम्बारी में दू-तीन सौ निहत्था आदिवासी जनानली मरद आरो बच्चासीनी केॅ मारी देलेॅ छेलै। हेकरोॅ बदला रोॅ योजना बिरसा नेॅ बनाना शुरू करि देलेॅ छेलै। मतर कि पुलिस दबाव रोॅ कारण 28 जनवरी 1900 केॅ बिरसा रोॅ 32 सहयोगी सीनी नेॅ आत्मसमर्पण करि देलकै। बिरसा केॅ पुलिस के खोजी दल राँची सिंहभूम में खोजी रहलोॅ छेलै। सरगुजा, उदयपुर, जशपुर, रंगपुर बोनाई सीनी के राजासीनी केॅ चिठी लिखलोॅ जाय रहलोॅ छेलै कि बिरसा केॅ पकड़वाय में सरकार रोॅ मदद करोॅ।
बिरसा रोॅ अनन्य साथी आरो सेना पति गया मुण्डा इटकी में पकड़ैलोॅ गेलोॅ मतर कि हुनी तीन सिपाही सीनी केॅ मारी केॅ भी पकड़ में न´ ऐल्लोॅ छेलै।
बिरसा पकड़ में न´ एैतियै मतर कि जगमोहन सिंह रोॅ आदमी जेकरा में वीर सिंह महली भी छेलै बिरसा रोॅ पता बताय देलेॅ छेलै। 3 मार्च 1900 केॅ बिरसा पकड़ाय गेलै। जेल में हुनका हैजा होय गेलै आरो राँची जेल रोॅ अंदर ही हुनकोॅ मृत्यु 9 जून 1900 में होय गेलोॅ रहै।