बिरादरी / सुकेश साहनी
"बाबू!" मैं कार से उतरा ही था कि अपने बचपन का सम्बोधन सुनकर चौंक पड़ा। किसी पुराने परिचित से सामना होने की आशंका मात्र से मेरे कान गर्म हो उठे और मैं उस पुकार को अनसुनी कर जल्दी-जल्दी पार्किंग से आगे चल दिया।
"अबे ओ बाबू!" अब किसी ने जोर से पुकारा।
मुझे पीछे मुड़कर देखना ही पड़ा। वह लंबे-लंबे डग-डग भरता हुआ मेरी ओर ही आ रहा था। दायीं आँख के नीचे बड़े-से मस्से के कारण मुझे अपने बचपन केे दोस्त सीताराम को पहचानने में देर नहीं लगी। वह जिस अंदाज में मेरी ओर बढ़ रहा था, उससे जाहिर था कि वह नजदीक आकर मुझे बाँहों में भर लेगा।
मुझे लगा, वह भरे साउथ एक्सटेंशन मेरी इज्जत धोकर रख देगा...बेवकूफ नहीं जानता कि मैं अब वह पुराना फटीचर बाबू नहीं बल्कि अनेक फैक्ट्रियों का मालिक बी.के.हूँ। मैंने जान बूझकर अपने हाथ अपने पैंट की जेेेबों में डाल लिए.
मेरे ठंडे व्यवहार के कारण वह मेरे नजदीक आकर ठिठक गया था। मैंने बड़ी मुश्किल से उसकी ओर आँख उठाकर देखा। उसका दाहिना हाथ मेरी ओर बढ़ा हुआ था।
"सीताराम, कैसे हो?" मैंने उसके बढ़े हुए हाथ को नजरअंदाज करते हुए इस तरह पूछा मानो वह मेरी किसी फैक्ट्री का वर्कर हो।
"अबे तू दिल्ली में है और मुझे खबर ही नहीं?" मेरे ठंडे व्यवहार के बावजूद वह उत्तेजित स्वर में बोला।
"अभी तो मैं ज़रा जल्दी में हूँ।" उसकी बेेेतकल्लुफी से मैं पसीने-पसीने हो रहा था। मैेंने घबराकर चारों ओर देखा। शुक्र है किसी का ध्यान इस और नहीं था। मैंने उससे पिंड छुड़ाने की नीयत से कहा, "कभी ऑॅिफस में मिलोेेे तो बातेें होेंगी।"
"इतनेे सालों बाद मिले हो, ऐसे थोड़े ही जाने दूँगा।" वह बोेला, "आओ, तुम्हंें अपने शो-रूम दिखाऊंँ... 'फैब्रिका' , 'फैषन इन' इस बंदे के ही तो हैं।"
मैं बुरी तरह चौंक पड़ा, सोचा...'सीताराम साउथ एक्सटेंशन के दो शानदार शो-रूम्स का मालिक! इट हैेज सम मीनिंग!'
'अबे मोेटू, तू तो बहुत बड़ा आदमी बन गया है। " मैंने बड़े प्यार से उसकी तोंद को मुकियाते हुए कहा। अगले ही क्षण हम एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले, धीरे-धीरे फैब्रिका' की ओर जा रहे थे।