बिहार की माटी, हीरामन, रेणु और शैलेन्द्र / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :14 सितम्बर 2015
शैलेन्द्र के पिता, दादा और परदादा बिहार में जन्में थे और पिता सरकारी नौकरी में तबादलों के सिलसिले में जालंधर में थे जहां शैलेन्द्र का जन्म हुआ। इस दलित परिवार के युवा की शिक्षा कानपुर में हुई और रेल्वे विभाग की नौकरी उन्हें मुंबई ले आई जहां वे इंडियन पीपुल्स थियेटर से जुड़े और उनके लिए कुछ प्रेरणा गीत लिखे जैसे 'तू इंसा हैं, इंसा की जीत पर यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीं पर'। उस काल खंड में उन्होंने 56 कविताएं लिखीं, जिनका संकलन भी 1956 में प्रकाशित हुआ। आजादी का जश्न मनाने मुंबई की चौपाटी पर एक भव्य काव्य सम्मेलन हुआ जिसकी सदारत पृथ्वीराज कपूर कर रहे थे। वे विभाजन के दिन थे और शैलेन्द्र की कविता 'मेरा जलता पंजाब' सुनाई। दर्शक दीर्धा में बैठे राज कपूर सम्मेलन समाप्त होने पर शैलेन्द्र से मिले और उन्हें फिल्म में गीत लिखने के लिए आमंत्रित किया। शैलेन्द्र ने हिकारत के साथ इंकार कर दिया। उन दिनों साहित्यकारों का फिल्म के प्रति घृणा का रिवाज था परंतु उर्दू के अदबों में इस तरह की भावना नहीं थी। जोश मलीहाबादी 'जुबना का उभारा देखो जैसे गद्दर अनार देखो' लिख चुके थे। मंटो, कृश्न चंदर, मजरुह इत्यादि जुड़ चुके थे और साहिर का आगमन होने को था। बहरहाल राज कपूर ने अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा कि वे हमेशा गुणीजनों की सेवा बिना किसी शर्त करने को तत्पर रहते हैं और यह बात उन्होंने अपने पिता पृथ्वीराज से सीखी है। ज्ञातव्य है कि पृथ्वीराज की मित्रता मैथिलीशरण गुप्त से भी थी। संभवत: पृथ्वीराज पहले स्नातक थे, जिन्होंने सिनेमा और रंगमंच से जुड़ना पसंद किया और सरकारी नौकरी के आमंत्रण को अस्वीकार किया था।
कुछ समय पश्चात शैलेन्द्र की पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी और उस समय शैलेन्द्र के प्रथम पुत्र शेली गर्भस्थ थे। कहीं से धन का जुगाड़ नहीं होने पर उन्हें राज कपूर का स्मरण आया और राज कपूर ने बिना किसी शर्त आवश्यक धन दिया। कुछ माह बीतने पर शैलेन्द्र राज कपूर से मिलने आए और कहा कि वे कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए गीत लिख देंगे। उस समय तक 'बरसात' काफी कुछ बन चुकी थी। शंकर-जयकिशन के साथ हसरत जयपुरी लिखते थे और शैलेन्द्र ने दो गीत लिखे, जिनमें टाइटल गीत 'बरसात में हमसे से मिले तुम' शामिल था। बरसात के गीत-संगीत की रॉयल्टी आज भी आती है और संभवत: अपने जीवन के इस मोड़ की याद में ही, उन्होंने खार मुंबई में जो बंगला खरीदा उसका नाम 'रिमझिम' रखा। दुर्भाग्य है कि आज उनके बच्चों के आपसी विवाद में 'रिमझिम' फंस गया है। जिस तरह से समाज में विघटन हो रहा है, कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर हम पानी की बूंद को भी आरी से काटने का प्रयास न करें। आने वाला विषम काल खंड समय शिला पर स्पष्ट अक्षरों में लिखा है। हम ही हैं कि उस इबारत को पढ़ना नहीं चाहते।
बहरहाल, राज कपूर जिसका आधार रहे उस शंकर-जयकिशन शैलेन्द्र व हसरत की टीम ने उनकी फिल्मों की सफलता में सबसे बड़ा योगदान दिया। गौरतलब है कि इन पांचों की पांच उंगलियों की तरह जुड़कर शक्तिशाली घूंसा बनना क्या महज संयोग था? इस पर विचार करना आवश्यक है, क्योंकि हर सफलता को संयोग से ही जोड़ा जाता है औऱ् यह भी कहते हैं कि सही समय पर सही से मिलना भाग्य की बात है। इस तरह की बातों से मनुष्य की मेहनत औऱ् प्रतिभा को कमतर आंका जाता है, जो सरासर गलत है। हम इस उपरोक्त तथाकथित संयोग के ही दूसरे पक्ष पर गौर करें।
राज कपूर बमुश्किल बाइस वर्ष के थे और सितारा हैसियत भी नहीं मिली थी तब उन्होंने अपनी पहली फिल्म आग शुरू की, जिसमें उस निम्मी को समानांतर नायिका की भूमिका दी जो मेहबूब खान के दरवाजे से खाली हाथ आगरा लौटने की तैयारी कर चुकी थी। अपने साले प्रेमनाथ को समानांतर नायक की भूमिका दी। इस फिल्म में एकमात्र स्थापित सितारा नरगिस थी, जिसे फिल्म आधी बनने के बाद अनुबंधित किया गया। 'आग' ने केवल बीस हजार का मुनाफा राज कपूर को दिया था और टिकिट खिड़की पर आग दहक नहीं सखी। एक फ्लॉप लिए राज कपूर ने मात्र 9 महीने में सुपरहिट 'बरसात' बनाई। न्यू थियेटर्स की संगीत-कथा में बालक राज कपूर को तबले पर नन्हे हाथ मारते देख, बोरल ने पृथ्वीराज से कहा कि इस बालक को विधिवत संगीत का ज्ञान दिलाइएं। ज्ञातव्य है कि 'आगalt16 से संगीतकार स्थापित राम गांगोली को हटाकर राज कपूर ने उनके सहायक शंकर और जयकिशन की टीम बनाई। उस कवि सम्मेलन में शैलेन्द्र का 'जलता पंजाब' में राज कपूर ने उनके धधकते दिल की आंच को महसूस कर लिया था। अत: सारी सफलताओं को महज संयोग कहकर उसके कारणों की जांच पड़ताल बंद न करें।
शैलेन्द्र ने फणीश्वरनाथ रेणु की "तीसरी कसम' का फिल्मांकन क्यों सोचा? उनमें अपने बिहारी पूर्वजों का रक्त उनसे यह करा रहा था। बिहार की उर्वर माटी से ही 'तीसरी कसम' रची जो हेमचंद्र पहारे के अनुसार देवदास पारो से अधिक त्रासद प्रेम-कथा है। मेरा खयाल है कि बिहार की माटी ही शैलेन्द्र से फणीश्वरनाथ रेणु के लिखे गीतों की तरह रचनाएं करा रहे थे। शैलेन्द्र में हीरामन हमेशा ही विद्यमान था और वही उनसे लिखवा रहा था। 'पंख हैं कोमल आंख है धुंधली, घायल मन का पंछी उड़ने को बेकरार। 'अब बिहार की माटी ही देश की रक्षा करेगी। विघटन की शक्तियों की रथ यात्रा रोकेगी।