बीच बाज़ार / रमेश बतरा
गली को कानों-कान ख़बर मिली कि विद्या रानी की बेटी लक्ष्मी कैबरे डांसर हो गई है, इसलिए अगले दिन औरतें चार काम छोड़कर भी जमावड़ा जमाकर बैठ गईं। एक औरत ने इस ख़बर को आम करते हुए कहा — लक्ष्मी का नाम अब लिलि हो गया है ली ... ली।
— आय ! न लाज, न हया ! होटल में नाचती है ... मरदों के सामने।
— नाच भी कैसा? ... नंगा ... कपड़े ... राम-राम-राम।
— कैसे गरदन उचकाकर निकली थी अभी गली से। माशा शर्म भी नहीं लगती बेशर्म को।
— अरे, वह तो लड़की है। नासमझ है। उसे क्या शर्म। शर्म तो आनी चाहिए मरी विद्या को, जो जवान-जहान लड़की का सौदा कर दिया राण्ड ने।
— भई, मैंने तो कह दिया है अपनी सरोज से कि समझ ले, लक्ष्मी तेरी सहेली नहीं, दुश्मन थी, दुश्मन।
— बिट्टी के बाबू बोल रहे थे कि ऐसे लोगों का तो मौहल्ले में रहना भी ख़तरनाक है।
— आग लगे इस विद्या को। हमारे बेटे-बेटियों पर कितना बुरा असर पड़ेगा, इसने तो ...। — एक मुँहफट औरत कुछ कहने को ही थी कि गली में सामने से विद्या आती दिखाई दे गई।
पता नहीं कितने बरस हो गए, विधवा विद्या ने सुबह-शाम मन्दिर जाने में कभी नागा नहीं किया, कभी अपनी ग़रीबी का रोना रोने में संकोच नहीं किया, कभी अपने चार आवारा होते जा रहे बेटों का गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कभी अपनी बेटी को ’जी का जंजाल’ जतलाने में हिच नहीं की और कभी उसे किसी ने मुस्कुराते नहीं देखा। मगर आज उसके चेहरे पर रौनक थी और चाल में उमंग। औरतें बेसाख़्ता उसकी नई सज-धज निहारने लगीं। उस मुँहफट औरत के दिल में हालाँकि एक हूक सी उठी, पर उसे दबाकर उसने विद्या को आड़े हाथों लिया, — क्यों री, तुझे ज़रा भी लाज न आई, जो चार-चार बेटों के रहते परोस दिया अपनी बेटी को होटल की थाली में?
विद्या मुस्कुरा दी, मानो वह औरत बेवकूफ़ हो। फिर उसाँस छोड़कर बोली, — काश, बहनजी ! मेरे चार बेटे नहीं, पाँच बेटियाँ होतीं। ...अब तक घर-घर जाकर कपड़े न सिलती, सुख से रहती।
सब औरतों के जेहन में अपने-अपने बेटे-बेटियाँ कौंध गए। वे समवेत स्वर में खिसिया गईं, — बुरा न मानना विद्या, यह तो यों ही कहती रहती है ... पर दिल की बुरी नहीं।
— हाँ, हाँ, — मुँहफट औरत बोली — आओ, बैठो न।
विद्या ठाठ से बैठ गई। औरतें उससे तरह-तरह की जानकारी लेकर अपना मत प्रकट करने लगीं ... कि लक्ष्मी ने नाचना कब सीखा? कैसे सीखा? कहाँ सीखा? होटलवालों से कैसे सम्पर्क किया? बाल-वाल कटवाकर तो बहुत सुन्दर लगने लगी है लक्ष्मी ! ... लड़कियाँ दफ़्तरों में भी तो काम करती हैं, होटल में कौन हौआ बैठा है। ख़ुद अच्छे तो भगवान भी अच्छा ... तेरे तो ठाठ हो रहे होंगे आजकल। ज़रा हमें भी तो बता न? ... और हाँ, तेरी लाड़ली सरोज कह रही थी, मौसी से कहो कि मुझे भी सिखवा दे न कैबरे ...।