बीयाबान / रामस्वरूप किसान

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं भोत बर सोचूं रामलाल इण खंडर-सै घर मेें अेकलो किंयां रैवै? दुराजै समेत छोटा-मोटा आठ-दस आसरा। पण सलामत अेक ई कोनी। किणी री छात पड़्योड़ी तो किणी री भींत। जकै कोठां री छात पडग़ी बां मांय छात रो मळबो बरसां सूं बींयां रो बींयां पड़्यो है। आ ई हालत पड़्योड़ी भींतां री है। भींत सोयगी तो सोयगी। सूती पड़ी है। अेक ईंट ई कोनी हलाई गजबी। इत्तै बडै घर में अेक कोठड़ी सलामत है। जकी में रामलाल रैवै। आ कोठड़ी ई रामलाल रो घर। इण में ई आखो समान। अेक मांचो। जकै पर बिछावणा। कूणै री तणी पर गाबा। अेक कूणै में आटै रो पीपो, लूण-मिर्च अर चा-गुड़ रा डबड़ा। अेक कूणै में बकरी खातर पाल्लो। जकै में लाल-लाल बोरिया चिलकै। सगळी कोठड़ी में गोडै-गोडै कूटळो। क्यूं कै म्हीनैं सूं पैलां भारी को काढै नीं रामलाल। कूटळै में बीड़ी रा टोटका, माचिस रा तिल्ला, खिंड्योड़ी सब्जी, रोटी रा सूखा टुकड़ा, खल्लां रै चिपÓर बारै सूं आयोड़ो कादो अर चूसां री काढ्योड़ी रेत है। इण कोठड़ी में ओ कूटळो अखरै कोनी। ईंयां लागै जाणै रामलाल साथै ईं रो कोई जूनो नातो है। बींयां ई इण खण्डरनुमा घर में किणी भांत रो बदळाव रामलाल रै गळै को उतरै नीं। स्यात ओ ई उण रै अेकलै रैवणै रो राज है। नीं तो इसै भूत-घर में अेकलो आदमी रैय सकै? धोलै दिन काळजो फाटज्यै। पण रामलाल तो बरसां सूं इण में बड़ी मौज सूं रैवै। रात रै बारह-अेक तांई पड़ौसियां नै निहालदे गांवतो सुणीजबो करै। इत्तै बडै सूनै घर में रामलाल नै भोत आवडै़। ईं रो कीं न कीं तो कारण ई है। अेक दिन दिनगै-दिनगै म्हैं चल्यो गयो। रामलाल चा टेक राखी ही। दूध गेरतै थकां म्हनैं बोल्यो- 'आ रै रामसरूप!Ó म्हैं 'आया नींÓ कैयÓर चूल्है आगै बैठग्यो। उण अेक कप म्हनैं झलाÓर खुद गिलास सूं सुरकिया लेवण लागग्यो। बो चा पींवतो-पींवतो खड़्यो हुयो अर म्हाराबूकियो पकड़Óर खड़्यो हुवण रो इसारो कर्यो। म्हैं चा रो कप संभाळतै थकां खड़्यो हुग्यो। बो चा पींवतो-पींवतो म्हनैं छात पड़्योड़ै अेक कोठै रै बारणै आगै लेयग्यो। बोल्यो-'ओ कोठो किंयां लागै थनै?Ó 'किंयां? म्हैं समझ्यो कोनी।Ó 'भूंडो लागै के ओ कोठो?Ó म्हैं भूंडो कैवूंÓक फूटरो। कीं गतागम में नीं आई। सिर कुचरतो बोल्यो- 'ठीक ई लागै।Ó 'लोग कैवै- ईं रै छात लगा ले। क्यूं लगा ल्यूं छात? म्हनैं तो अेक कोठड़ी बाफर। कई कैवै- ओ मळबो सुळझा ले। क्यूं सुळझा ल्यूं मळबो? पड़्यो है। टांग अड़ावै म्हारै? बडेरां री याद रो थेड़ है ओ। क्यूं बखेरूं इण नै? क्यूं खिंडावूं? पड़्यो है जच्यो-जचायो।Ó रामलाल पड़्योड़ी छात री माटी मु_ïी में लेयÓर बिचूरतै थकां बोल्यो- 'इण में म्हारै दादै रो पसीनो रळ्योड़ो है। म्हारो बाप बतांवतो- आ छात म्हारै दादै अेकलै ब_ळां सूं माटी चक-चक दाबी ही। ईं सगळी माटी रै म्हारै दादै रा हाथ लाग्योड़ा है।Ó हाथ सूं हटाÓर अेक बोदो सिणियो काढतै थकां बोल्यो- 'रामसरूप, अै सिणियां म्हारी दादी रा काट्योड़ा है। साठ साल पुराणी याद है आ। पड़ी है। क्यूं छेडूं। याद भोत कंवली हुवै रामसरूप। ओस सूं ई कंवळी। छेड़णी नीं चइयै। भोत ई हळकै हाथ अंगेजण वाळी चीज हुवै याद।Ó म्हैं रामलाल रै चैÓरै कानी देख्यो। चैÓरो गंभीर हो। उण री आंख्यां गीली ही। भळै उण मळबै में ऊंडो हाथ मार्यो अर कैर रो अेक बरंगो काढ ल्यायो। बरंगै रो काळस झाड़तै थकां बोल्यो- 'अै बरंगा थनै ठा है कीं रा काट्योड़ा है? म्हारै दादै रो अेक भाई हो। इलाकै रो नामी पैÓलवान।Ó 'नानू?Ó म्हैं बीच में ई बोल्यो। 'हां, नानू पैÓलवान नै कुण कोनी जाणै। अै बरंगा नानू दादै अेक दिन में ई काटÓर त्यार कर्या हा। बरंगा कोनी अै। उण पैÓलवान दादै रो इतिहास है।Ó बरंगै नै पाछो ई माटी में दाबतै थकां रामलाल बोल्यो- 'क्यूं छेडूं इण थेड़ नै। ओ तो बडेरां रो इतिहास है, जको पड़्यो है सामटिज्योड़ो।Ó इण रै पछै रामलाल खण्डर हुयोड़ी सगळी साळां में म्हनै लेयग्यो। जकी ई साळ में म्हानै बो लेयग्यो उण री ओळूं रा आखर हिवड़ै री बही रा पाना खोल-खोल दिखाया। रामलाल रै हिवडै़ री बही भोत मोटी है। जकी इण घर री ओळूं रै आखरां सूं अटी पड़ी है। अेक खण्डर साळ री कूंट में खड़्यो होयÓर रामलाल म्हनैं इसारो कर्यो। म्हैं कनै गयो तो गळगळो होयÓर बोल्यो-'ईं कूंट में मां बिलोवणो करती। पांच भैंस्यां रो धीणो हुंवतो म्हारै। म्हैं जद स्कूल सूं आंवतो, मां पाणी बरगो गीलो चूरमो चूर्यां राखती, ईं आळै में।Ó भींत में अेक फूट्योड़ै आळै कानी इसारो करÓर बोल्यो। भळै इणी साळ रै दूजै खण में खड़्यो होयÓर बोल्यो- 'अठै म्हारा मांचा ढळता। अठै सोंवता म्हे सगळै घरगा। ईसर भाईजी बाबै कनै दुराजै मेें सोंवता। म्हैं, मां, जैलाल भीयो अर तीनूं म्हारी भैणां सियाळै में इणी साळ में ईं जगां ई सोंवता। ईं जगांऽऽ।Ó उण अेडी मारÓर कैयो। म्हैं उण री आंख्यां में देख्यो। पीड़ झलकै ही। भळै रामलाल म्हनै अेक कोठड़ीनुमा साळ में लेयग्यो। जकी री छात अर अेक कंवळो पड़्योड़ो हो। इण कोठड़ी रै अेक खण में खड़्यो होयÓर बोल्यो-'अठै ईसर भइयै री मसीन ढळती। कपड़ा सीड़ण वाळी मसीन। ईं में कपड़ा सिड़ावण वाळां रो मेळो-सो रैंवतो। हथाई होंवती। कळी बाजती। आ कोठड़ी आज ई म्हनै सुरंगी लागै। म्हनै लागै जाणै ईसर भइयो हेला मारै- 'चा ल्या रैय रामलालिया।Ó 'म्हैं इण घर री अेक ई चीज हलावणी को चावूं नीं रामसरूप! अेक लेवड़ो ई इन्नै-बिन्नै कोनी करणो चावूं।Ó म्हैं रामलाल री आंख्यां में झांक्यो। पूरो बियाबान हो उण री आंख्यां में। अेक लाम्बी सूनियाड़। म्हे पाछा ई कोठड़ी में आयग्या। उण कोठड़ी में जकी में रामलाल रैवै। म्हैं मांची पर बैठतै थकां पूछ्यो- 'ईं कोठड़ी नै क्यूं नीं भारै? इण कचरै में किण री ओळूं है?Ó रामलाल छात कानी देख्यो। सूनी आंख्यां सूं दो आंसू ढळÓर इंच-इंच दाढ़ी में गमग्या। धूजतै होठां बोल्यो- 'फोरो ई नीं मिलै।Ó 'फोरो? पण इसो के संवारै थूं?Ó 'बंतळ करतो रैवूं घरवाळां सूं।Ó बो अेक ई वाक्य में पूरी कहाणी बीजै तरीकै सूं कैयग्यो अर गोडां में सिर देयÓर फूट पड़्यो। म्हारो हाथ उण री पीठ पळूंसतो रैयो अर दिमाग सोचतो रैयो- कित्तो टूटज्यै अेकलो आदमी। बारणै में बैठी ब्यायोड़ी कुत्ती म्हारै साम्हीं देखै ही।