बीवी पुराण / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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वैसे दुनिया का कोई पति ही होगा, जो खुद को खुशनसीब कहता होगा। मगर कमोबेश सभी पति दूसरों से अपनी पत्नी की तारीफ़ करते नहीं थकते। ये और बात है कि जब वे अपनी पत्नी की तारीफ़ कर रहे होते हैं, ठीक उसी वक्त उनकी पत्नी उन्हें किसी न किसी बात पर घर में कोस रही होती है। जिनकी पत्नियां नौकरी-पेशा वाली हैं, वे तो खैर पतियों को पति समझती ही नहीं हैं। ये मैं नहीं, वो कहते हैं, जो नौकरी पेशा वाली पत्नियों के साथ कथित उम्र कैद से जीवन की सजा काट रहे हैं। मेरा एक मित्र है। पेशे से शिक्षक है। पत्नी भी अध्यापिका है। मैंने कहा, ‘तुम्हारा तो सिर कढ़ाई में है। आज के ज़माने में रोकड़ा देने वाली बीवी मिल जाए तो क्या कहने।’

मित्रा ने लंबी सांस ली। चेहरे की शिकन बता रही थीं कि वो मेरी बात से सहमत न था। कहते हैं कि औरतों के पेट में बात नहीं पचती। मगर मेरा मित्र तो औरतों से भी आगे है। पता नहीं क्या हुआ उसे। उसने आप बीती बतानी शुरू कर दी। मित्र ने आत्मकथात्मक शैली में बताना शुरू किया, ‘मैं उस दिन को कोस रहा हूँ, जिस दिन मैंने नौकरी वाली बीवी का चयन किया था। शादी के बाद मेरे जीवन का ज़ायका ही बदल गया। मास्टर कहीं के भी हों, सबसे कंजूस जमात मानी जाती है। मानता हूँ। मगर मेरी बीवी तो कंजूसों की नानी निकली। दस बरस हो गए, आज तक उसने एक साबूत प्याज और एक साबूत टमाटर खाने में नहीं डाला।’

मैं चौंका। आखिर मेरा मित्र कहना क्या चाह रहा था। मैं उसे गौर से सुन रहा था। चूँकि अभी मुझे भी दूल्हा बनना है, इसलिए आजकल मैं शादीशुदा लोगों की छत्रछाया में ज़्यादा रह रहा हूँ। ताकि मैं किसी समस्या में न पड़ जाऊँ। मेरा मित्र लगातार बोल रहा था। एक शून्य में घूरता हुआ वो बोला, ‘मेरी बीवी आधा कटा हुआ टमाटर और प्याज अगले दिन के खाने में डालने के लिए रखती है। दाल-भात पकाने का उसने नायाब तरीका न जाने कहाँ से सीखा। वो कुकर में दाल का छौंका लगाकर उसी में भात भी पका देती है। कहती है कि गैस बचानी है। कुकर में एक समय में ही एक साथ दाल के साथ भात पकता है। ये मेरी बीवी ने मुझे करके दिखाया है। कुकर में दाल रखने के बाद उसमें वो एक खाली कटोरी उलटी रखती है, फिर उस खाली कटोरी के ऊपर लोटे में आवश्यक पानी के साथ चावल रख देती है। कुकर का ढक्कन बंद करने के बाद जब वो ढक्कन खोलती है तो दाल और भात एक साथ पके हुए मिल जाते हैं। मज़ेदार बात ये है कि दोनो चीज़ें ठीक-ठाक पकी रहती हैं।’

मैंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, ‘वाह! ये तो नया आईडिया है। इसे तो सभी को अपनाना चाहिए।’ यह सुनकर मेरा मित्र भी अंदर ही अंदर खुश दिखाई दिया। इस दुनिया में पत्नी द्वारा सताया हुआ हर पति अपनी पत्नी को जम कर कोसता है। दुनिया जहान के सामने उसकी खूब बुराई करता है। मगर कोई दूसरा उसकी पत्नी की तारीफ़ कर दे तो उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ ही जाती है। ऐसा ही मेरे मित्र के चेहरे पर झलक रहा था। उसने अपने चेहरे के भाव छिपाते हुए कहा, ‘पानी कैसे गरम किया जाता है। ये भी जान लीजिए। मेरी बीवी जब रोटी बना लेती है न, तब गरम तवा जल से भरी बाल्टी में डाल देती है। ‘छस्स’ की अजीब-सी आवाज के साथ हो गया पानी गरम। अब वो पानी कभी पीने के लिए तो कभी बरतन धोने के काम आता है। कुछ पक रहा है तो उस बरतन के ऊपर पानी से भरा बरतन रख देती है, वो पानी भी गुनगुना तो हो ही जाता है।’

मेरे लिए ये सभी आईडिए नये थे। मेरी दिलचस्पि बढ़ते देख मेरा मित्र और उत्साहित हो गया। वह सिलसिलेवार अपनी बीवी की कमियां-खामियां और विशेषताएं बता रहा था। वह बोला, ‘साबुन चाहे कपड़े धोने का हो या नहाने का। रैपर खुलते ही उसे वो दो हिस्सों में बांट देती है। एक उसका और एक मेरा। मुझे भी उसे काफ़ी दिनों तक चलाना पड़ता है। साबुन ज़्यादा न घिस जाए, कभी-कभी तो मैं बाथरूम में जाता हूँ, और बिना नहाये ही वापिस चला आता हूँ। इसी तरह मेरी बीवी विम हो, मच्छर मारने वाली टिकिया हो या अगरबत्ती हो, सबके दो हिस्से कर देती है। मैंने आज तक नहीं देखा कि मेरी बीवी के हाथ से एक रोटी ज़्यादा बनी हो। न ही कभी उसने कोई चीज़ बासी किसी जानवर या भिखारी को दी हो। अव्वल तो हमारे घर में कोई भिखारी या मांगने वाला आता ही नहीं। अगर आ ही गया तो वो उससे छुट्टे-रेजगारी ले लेती है। गिनती में चार-पांच रुपए का घोटाला भी कर देती है। कबाड़ीवाला या रद्दीवाला दूसरी बार हमारे घर नहीं आता। मेरी बीवी एक-एक ग्राम के लिए इतना हो-हल्ला मचाती है कि वो बेचारा अपना सिर पीट लेता है। सालों हो गए मैंने मांसाहारी भोजन नहीं किया। चाट-पकौड़ी तो दूर की बात है।’

यह कहकर मेरे मित्र की आँखें भर आई। मैंने दिलासा दिया तो वो लगभग रोने की मुद्रा बनाते हुए कहने लगा, ‘कुछ भी करना, मगर शादी न करना।’ मैंने भी इस मुद्दे को विराम देने की कोशिश करते हुए कहा, ‘मुझे अगर शादी करनी ही पड़ जाए तो तुम्हारी बीवी जैसी आदतों वाली लड़की से तो कतई शादी नहीं करूंगा।’ यह सुनते ही वो बिफर पड़ा। कहने लगा, ‘ओए। मेरी बीवी जैसी भी है, मेरी है। तू कौन होता है, उसकी आलोचना करने वाला। ऐसी बीवी तो चिराग़ लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगी।’ यह कहकर वह चल दिया। मैं हैरान था कि वो जिस बीवी-पुराण को मुझे सुना रहा था, उसका आखिर मकसद क्या था। इतना तो मैं समझ ही गया कि पति-पत्नी के बीच में तीसरे को कभी भूल कर भी कुछ नहीं कहना चाहिए।