बीस रुपए के लिए / मनोहर चमोली 'मनु'

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बस कंडक्टर चिल्लाया- टिकट ले लो भई। और कोई बगैर टिकट?’’

‘‘हां इधर पीछे। दो टिकट।”रोहित के पापा ने कहा।

कंडक्टर ने पीछे घूमकर देखा। बुरा-सा मुंह बनाते हुए वह अपनी सीट से उठा और धक्का-मुक्की करता हुआ बस के पीछे की सीटों तक जा पहुंचा। चिढ़ते हुए बोला-‘‘टिकट नहीं लिया? मैं कब से चिल्ला रहा हूं।”

रोहित के पिताजी ने कहा-‘‘ढाई टिकट दे दो। एक तो बस में सवारी ठूंस कर भरी हैं। बीच में सवारियों का सामान भी है। कैसे लेता। वैसे भी सवारियों तक आपको आना चाहिए। सवारियां अपनी सीट छोड़कर आपकी सीट पर कैसे आए।’’

कंडक्टर भन्ना गया। घूरते हुए बोला-‘‘ढाई टिकट क्यों। इस बच्चे का पूरा टिकट नहीं लोगे? अरे बच्चे! तेरी उम्र क्या है?”

रोहित के पिता ने झट से जवाब दिया-‘‘इसका नाम रोहित है। इसकी उम्र सात साल है।”

कंडक्टर ने रोहित को गौर से देखा। फिर बोला-‘‘इस बच्चे के मुंह में जबान नहीं है क्या? कम से कम बच्चे के लिए झूठ तो मत बोलो। इस बच्चे की उम्र तो ग्यारह साल के आस-पास लग रही है। क्यों बच्चे। कितने साल का है तू?’’

अब रोहित की मम्मी बोल पड़ी-‘‘भाई साहब। कहा न आपसे। हमारे रोहित की उम्र सात साल है। हम भला क्यों झूठ बोलेंगे। हमारे ढाई टिकट ही बनते हैं। ये लो । ढाई टिकट के सौ रुपये।”

कंडक्टर ने गरदन झटकते हुए कहा-‘‘क्या जमाना आ गया है। आधे टिकट का किराया बचाने के लिए झूठ पर झूठ बोला जा रहा है। चाहो तो ये सौ रुपये भी रहने दो।’’

रोहित के पिताजी को गुस्सा आ गया। बोले-‘‘क्यों रहने दो। बच्चे का आधा टिकट लगता है। फिर हम क्यों पूरा टिकट लें?”

कंडक्टर तो जैसे बहस ही करना चाहता था-‘‘कोई बात नहीं भाई साहब। तीन टिकट नहीं आप ढाई ही लीजिए। लेकिन बीस रुपए के लिए कम से कम इस बच्चे को इतना छोटा तो न बनाइए। किसी से भी पूछ लीजिए। ये दस साल से अधिक का बच्चा है। आप भी क्या। उसे घर से सिखा कर ले आये कि चुप ही रहना। जबान न खोलना। देखो तो कैसा चुप्पी साधे बैठा है। इसे बताना चाहिए कि इसकी उम्र क्या है।’’

रोहित ने अपनी जेब से स्कूल का पहचान पत्र निकालते हुए अपनी मम्मी को दे दिया। रोहित की मम्मी ने कहा-‘‘एक मिनट भाई साहब। ये लो। हमारे रोहित का पहचान पत्र। इसमें इसकी क्लास भी लिखी है और इसकी जन्म तिथि भी है।”

कंडक्टर ने रोहित का पहचान पत्र देखा और उस पर रोहित की चस्पा फोटो को भी गौर से देखा। फिर हिचकते हुए बोला-‘‘इस कार्ड के हिसाब से तो रोहित सात साल का ही है। लेकिन कद-काठी से ये काफी बड़ा दिखाई दे रहा है।”

तभी रोहित दोनों हाथों के इशारे से और अपने चेहरे के हाव-भाव से अपनी मम्मी को कुछ जताने की कोशिश करने लगा। रोहित की मम्मी ने कंडक्टर से कहा-‘‘भाई साहब। रोहित आप से पूछ रहा कि आपके कितने बच्चे हैं।”

रोहित ने हाथों के इशारे से फिर कुछ कहने की कोशिश की। अब रोहित के पापा ने कंडक्टर से कहा-‘‘ रोहित पूछ रहा है कि यदि कंडक्टर अंकल के बच्चों के सामने कंडक्टर अंकल को कोई झूठा कहे तो आपको कैसा लगेगा।’’

कंडक्टर बुरी तरह झेंप गया। रोहित के पापा बोले-‘‘भाई साहब। रोहित हमारा इकलौता बच्चा है। ये मूक-बधिर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ये बोल नहीं सकता तो कुछ समझता भी नहीं होगा। और हां। हम दोनों अच्छा कमा लेते हैं। कम से कम बीस रुपये के लिए हम अपने बच्चे के सामने झूठ नहीं बोलना चाहेंगे।”

पास की सीट पर बैठी एक नन्ही बच्ची बोल पड़ी-‘‘कंडक्टर अंकल। आपने गलत बात की है। हम सब सुन रहे थे। आपको रोहित से भी और रोहित के मम्मी-पापा से भी माफी मांगनी चाहिए।

कंडक्टर बगले झांकने लगा। उसने एक पल की देरी भी नहीं की और माफी मांगकर अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।