बुर्का, घूंघट सब परदे हैं / जयप्रकाश चौकसे

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बुर्का, घूंघट सब परदे हैं
प्रकाशन तिथि :29 अगस्त 2016


बदलते हुए समाज में नए शब्द भी प्रयोग में आने लगते हैं। इस्लाम को मानने वाले समुदाय की महिलाएं अपना पूरा शरीर ढंकने के लिए जो लिबास पहनती हैं, उसे बुर्का कहते हैं। रेगिस्तान में विकसित इस्लाम में बुर्का रेत के बवंडर के कारण प्रचलित हुआ। यूरोप में समुद्र तट पर जलक्रीड़ा करते समय महिलाएं बिकनी पहनती हैं और यह लघुतम पोषाक है। इसे बिकनी इसकी साइज़ के कारण कहते हैं। अमेरिका ने दूसरे विश्वयुद्ध में जापान पर आणविक आक्रमण किया था तथा नष्ट होने वाले द्वीपों में सबसे छोटे का नाम बिकनी था। आजकल फ्रांस में समुद्र तट पर जलक्रीड़ा करते समय जो पोषाक पहनते हैं, उसे 'बुर्कानी' कहा जा रहा है। आज पूरे यूरोप के बाजार में बिकनी से अधिक बुर्कानी बिक रही है। सूर्य के ताप से शरीर को विटामिन 'डी' मिलता है और अधिक ठंड होने वाले देशों में शरीर पर धूप लगने के लिए लघुतम पोषाक पहनी जाती है। गोवा के सुमुद्र तट पर यूरोप से अनेक लोग धूप सेंकने के उद्‌देश्य से आते हैं। फ्रांस में आतंकी हमले के बाद समुद्र तट पर महिलाएं 'बुर्कानी' पहनना पसंद करने लगी हैं। इस तरह से आतंकी हमले ने फैशन की दुनिया को भी प्रभावित किया है और 'बिकनी' बनाम 'बुर्कानी' युद्ध बाजार में आ गया है। शारीरिक उत्तेजना पर कंट्रोल का प्रयास किया जा रहा है। क्या अपरोक्ष रूप से यह अर्थ निकाला जाए कि 'बिकनी' पहनने से शरीर अपने पूरे ताप में उजागर होता है और अपनी महिलाओं को बुर्के में देखने के आदी लोग उत्तेजित हो जाते हैं। क्या इस तरह की उत्तेजना में निहित आक्रामकता हिंसा में अनुदित होती है? मैक्सिम गोर्की का कथन था कि सारे युद्ध अंततोगत्वा नारे के शरीर पर लड़े जाते हैं और युद्ध में चली हर गोली किसी न किसी स्त्री के हृदय में ही लगती है, क्योंकि कोई पति खोती है, कोई पिता या संतान खोती है।

यह भी लोकप्रिय मान्यता है कि सारे युद्ध जर, जोरू और जमीन के लिए लड़े जाते हैं, परन्तु भीतरी कारण तो तर्क को तिलांजली देना है। तर्क को ध्वस्त करने या अस्वीकार करने के कारण युद्ध होते हैं। दरअसल युद्ध का अणु मनुष्य हृदय में निवास करता है और बाद में जमीनी रूप ग्रहण करता है। विदेशी फिल्मों में बिकनी पहने स्त्री कई बार दिखाई गई हैं। इयान फ्लेमिंग के उपन्यास पर आधारित जेम्स बॉन्ड शृंखला की पहली फिल्म 'डॉ. नो' में उर्सुला एन्ड्रेस समुद्र तट पर बिकनी पहने नजर आती हैं और जेम्स बॉन्ड से अधिक घातक सिद्ध होती हैं। रमेश बहल की अमिताभ बच्चन अभिनीत 'पुकार' में गुलशन बावरा के गीत का मुखड़ा था 'समुंदर में नहा के और भी नमकीन हो गई हो।' दरअसल नारी शरीर कितना दिखाए या कितना छुपाए, यह महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि कामभावना मष्तिष्क में जन्म लेती है और तरंगे सारे शरीर को झंकृत करती हैं। मष्तिष्क की कार्यप्रणाली एक रहस्य ही है। जब यह कहा गया कि लैला तो सांवली और असुंदर है, तब उत्तर आया कि मजनूं की आंखों से देखो तो उसकी सुंदरता नजर आएगी। सुंदरता देखने वाले के मष्तिष्क में होती है। अत: बुर्के का उदय रेगिस्तान की रेत से ही बचने का प्रयत्न था और वहां के पुरुष भी पूरा बदन ढांकने वाले कपड़े ही पहनते हैं। उसका अभिप्राय महिला की मादकता को छुपाने का नहीं था, परन्तु लोकप्रिय धारणा इसी तरह की बनी। इतना ही नहीं, महिला फैशन का संसार भी पुरुषों द्वारा संचालित है और भव्य होटलों के मुख्य बावर्ची भी पुरुष ही हैं, जबकि परिवारों के किचन महिलाओं द्वारा संचालित हैं। पाक विद्या पर अधिकांश किताबें पुरुषों ने ही लिखी हैं। आज पाकिस्तान जैसे इस्लाम मानने वालों के देश के शहरों की औरतें प्राय: बुर्के को नहीं पहनती, परन्तु ग्रामीण क्षेत्र में यह प्रथा आज भी बरकरार है। इसके साथ ही हम अपने शहरों में स्कूटर चलाने वाली महिलाओं को धूप से बचने के लिए पूरा बदन ही ढाके हुए देखते हैं और आभास होता है कि मानो वे बुर्कानशी महिलाएं ही हैं। अमेरिका का लोकप्रिय सीरियल 'बेवाच' है, जिसमें जलक्रीड़ा के दृश्य हैं और सारा घटनाक्रम ही समुद्र तट पर होता है। अब 'बेवाच' के नए संस्करण में प्रियंका चोपड़ा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। भारतीय सिनेमा में नलिनी जयवंत पहली फिल्मकार थीं, जिन्होंने अशोक कुमार केंद्रित 'संग्राम' के एक दृशय में बिकनी पहनी है। इसी 'संग्राम' की कथा को थोड़ा फेरबदल करके अमिताभ बच्चन व दिलीप कुमार अभिनीत 'शक्ति' में रमेश सिप्पी ने प्रस्तुत कियता था। उस दौर में अशोक कुमार और नलिनी जयवंत की प्रेमकथा सुर्खियों में थी। दोनों के उम्रदराज होने पर नलिनि जयवंत अशोक कुमार की पसंद के खाने का टिफिन उनके सिक्यूरिटी गार्ड को देकर चली जाती थीं, परन्तु कभी उन्होंने मिलने का प्रयास नहीं किया। अशोक कुमार भी अपने खाने की मेज पर एक नजर डालकर ही भांप लेते थे कि नलिनी जयवंत के द्वारा पकाया हुआ भोजन कौन-सा है। जाने कैसे प्रेम और भोजन के बीच गहरा सम्बंध है और इसीलिए शेक्सपीयर ने लिखा था 'इफ फूड बी द म्यूजिक ऑफ लाइफ, प्ले ऑन' अर्थात अगर भोजन ही जीवन का संगीत है, तो बजाते रहिए।

घूंघट का प्रचलन बुर्के से अलग है। विलक्षण प्रतिभासाली कबीर ने लिखा है 'घूंघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे।' ईश्वर किसी प्रकार का घूंघट नहीं पहनता, यह तो हमारी आंखों पर भांति-भांति के घूंघट हमने ओढ़ रखे हैं और हमें नजर नहीं आता।