बेख़बरी का फ़ायदा / सआदत हसन मंटो
लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली|
खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया|
लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली|
सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा|
लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई|
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई|
पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी|
गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया|
दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया|
गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा|
उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?”
गोलियां चलानेवाले ने पूछा : “क्यों?”
“गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!”
“तुम ख़ामोश रहो....इतने-से बच्चे को क्या मालूम?”