बेचारा बाज / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
अबाबील (एक नन्ही-सी काली चिड़िया) और भारी-भरकम बाज एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर मिल गए।
"सुबह की नमस्ते महोदय!" अबाबील ने कहा।
बाज ने गरदन झुकाकर उसे देखा और रूखेपन से कहा, "नमस्ते।"
इस पर अबाबील बोला, "उम्मीद करता हूँ कि सब ठीक-ठाक है सर।"
"ऐ," बाज बोला, "हमारे साथ तो सब ठीक-ठाक ही रहना है। पक्षियों के राजा हैं हम - नहीं जानते? आगे से, जब तक खुद न बोलें, हम से कुछ पूछने की हिम्मत न करना।"
"मेरा मानना है कि हम एक ही कुल के हैं।" अबाबील ने कहा।
बाज ने तिरस्कारभरी नजरों से उसे देखा और बोला, "कौन कहता है कि तू और हम एक ही कुल के हैं?"
"आपको बता दूँ कि मैं आपकी तरह ऊँचा उड़ सकता हूँ।" अबाबील बोला, "इसके अलावा गा भी सकता हूँ। धरती के प्राणियों को अपने गाने से सुख और उल्लास प्रदान कर सकता हूँ। आप उन्हें यह नहीं दे सकते।"
बाज को गुस्सा आ गया। बोला, "सुख और उल्लास! अहंकारी जीव! चोंच की एक टक्कर से तुझे मार डालूँगा, समझा! मेरे एक पैर से बड़ा नहीं है तू।"
अबाबील उड़ा और बाज की पीठ पर जा बैठा। वह उसके पंख नोचने लगा।
बाज भुनभुना उठा। वह तीर की तरह ऊपर को उड़ा ताकि उस छोटे पंछी को अपनी पीठ से गिरा दे; लेकिन ऐसा कर न सका। आखिरकार वापस पहाड़ की उसी चोटी पर आ बैठा। पीठ पर सवार पिद्दी-से परिंदे पर और उससे मुँह लगने के अपने बुरे वक्त पर वह हद से ज्यादा चिढ़ा हुआ था।
उसी समय एक नन्हीं फाख्ता वहाँ आ बैठी और यह नजारा देखकर इतनी जोर से हँसी कि उसकी गरदन ही पीछे को झुक गई।
बाज ने उसे देखा और बोला, "दुनियाभर में सबसे धीमा उड़ने वाले कीड़े, क्या देखकर तू इतनी जोर से हँस रहा है?"
"यही देखकर कि बित्ते-भर की एक चिड़िया तुम पर सवारी गाँठ रही है।" फाख्ता बोली।
"तू अपना रास्ता नाप।" बाज बोला, "यह मेरे और मेरे अबाबील भाई के बीच घर का मामला है।"