बेज़ुबान / अर्चना राय
देर रात पार्टी से वापिस आकर भी उसके सिर से पार्टी का खुमार नहीं उतरा था, इसलिए फ्रेश होकर, बिस्तर पर अधलेटा होकर, अपने मोबाइल पर पार्टी में खींची फोटो देखने लगा। “सीमा! वाकई, रोमा भाभी, का कोई जबाब नहीं।” कहते हुए, फोटो को जूम करके, हर एंगल से देखते हुए उसकी आँखों की पुतलियाँ फैल गईं।
“साला, रौनक बडा क़िस्मत वाला निकाला, जो रोमा जैसी वाइफ मिली।”
सुनकर भी सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि लेटे हुए सीलिंग को एकटक देखती रही। “चाहे कपड़ों की च्वाइस हो..., मेकअप..., जनरल नॉलेज... सब एकदम अपडेट।... ”— अपनी ही धुन में मस्त वह कहे जा रहा था।
“हर बार अपनी एक नई खूबी दिखा ही देती हैं, मैं तो कायल हो गया उनका।”
सीमा ने एक गहरी ठंडी साँस भरकर छोड़ दी।
“और प्रजेंस ऑफ माइंड तो कमाल का है। ब्यूटी विद ब्रेन का परफेक्ट कॉम्बिनेशन है, रोमा भाभी।”
“वैसे तुम्हारा क्या विचार है, मैं सही कह रहा हूँ न?”— सीमा के कुछ न कहने पर, उसने कहा। “हाँ!”— छोटा- सा उत्तर देकर सीमा ने करवट बदल ली।
“मर्दों को इन्टेलीजेन्ट औरतें, दूसरों की ही क्यों पसंद होती है? ”— चीखकर पूछना चाहती थी, पर हमेशा उसके ज़रा- सा कुछ कहने पर, होने वाले बवाल को सोचकर, बिना कुछ बोले मन ही मन घुटकर रह गई।
वहीं पास अलमारी में रखे, धूल- सने, कई प्रतियोगिताओं और भाषण में जीते मेडल, ट्राफी और प्रमाण- पत्र, चीख-चीखकर उसके मन की बात कहना चाहते थे; मगर अफसोस, उनके पास तो ज़बान ही नहीं थी।
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