बेटा बिगड़ रहा है! / अन्तरा करवड़े
स्कूल में उन दिनों मुख्य आश्रम से आए हुए स्वामीजी प्रतिदिन बच्चों को जविनोपयोगी शिक्षाएँ देते थे।
घर लौटकर रोहित मम्मी से कहने लगा¸ "मम्मी आज सुबह मैंने आप के साथ अच्छा बिहेव नहीं किया। आई एम सॉरी। मुझे आज भी टिफिन में केक चाहिये था। लेकिन आपने ठीक ही कहा था कि रोज केक खाना भी तो ठीक नहीं है। मैं आगे से ऐसा नहीं करूँगा।"
मम्मी आश्चर्यमिश्रित कौतूहल से उसे टटोलती हुई कहने लगी¸ "तुझे अचानक क्या हो गया है? किसने सिखाई ये सारी बातें?"
"वो स्कूल में स्वामीजी रोज प्रेयर के बाद पहला पीरियड लेते है। हमें बड़ा अच्छा लगता है उनकी बातें सुनना। हमेशा सच बोलना¸ मम्मी पापा का रिस्पेक्ट करना और किसी से नहीं झगड़ना। अब मैं कोशिश करूँगा ये सब करने की।"
रात को मम्मी¸ पापा के सामने चिंता जाहिर करते हुए कह रही थी¸ "रोहित के स्कूल के बारे में फिर से सोचना पड़ेगा। जाने कौन से बाबाजी आकर पुरानी सी बातें कहते रहते है। सच बोलो¸ झगड़ो मत वगैरह। पढ़ाई वढ़ाई छोड़ बिगाड़ रहे है अभी से।"
पापा ने भी सहमतिसूचक सिर हिलाया। हाई सोसाईटी गेट टुगेदर्स में सभी रटी रटाई पोयम्स सुनाते बच्चों के बीच उन्हें स्वामीजी बातें दोहराता रोहित सचमुच खटक रहा था।