बेटी किसी की / शोभना 'श्याम'

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"अरे यह तो सुकेशी जी का बैग मेरे साथ आ गया, वह परेशान हो रही होंगी, अभी फोन कर देती हूँ।"

सुकेशी जी और मधु सखियाँ हैं और एक ही सोसाइटी में रहती हैं, बस दोनों के टावर अलग-अलग हैं। दोनों मय पतियों के, एक साथ सात दिन की तीर्थ यात्रा कर के अभी-अभी लौटी हैं। टूर वालों ने घर पहुँचने का समय बताया तो नौ बजे तक का था लेकिन बीच में रास्ता खराब होने और ट्रैफिक जाम होने के कारण अपनी सोसाइटी में पहुँचते चारों को बारह बज गए थे। थकान और भूख से हालत खराब थी। मधु जी की बेटी गेट पर ही उनका इंतज़ार कर रही थी, सो वह अपने पिता के साथ मिलकर सारा सामान उठा कर उन्हें लिवा लायी और गलती से बाकि सामान के साथ सुकेशी जी का सबसे छोटा झोला भी ले आयी। उसने सुकेशी जी के पति से भी पूछा, "अंकल जी! आपको लेने कोई नहीं आया, मैं छोड़ आऊँ आपको?"

लेकिन उन्होंने कहा, "अरे नहीं! बेटे को मेसेज कर दिया हैं, आता ही होगा। वैसे ज़रूरत भी क्या हैं, ज़रा लिफ्ट तक ही तो ले जाना हैं।"

मधु और उनके पति निश्चिन्त होकर चले आये। आते ही मधु की बेटी ने चाय बना दी और पहले से बना रखा खाना गर्म कर दोनों को परोस दिया। खाना खाने के बाद मधु जी का ध्यान सुकेशी जी के झोले पर गया तो उन्होंने सुकेशी जी को फोन घुमा दिया।

उधर से सुकेशी जी ने बड़ी हाँफते-हाँफते थकी आवाज में "हलो" कहा तो मधु ने चिंतित होकर कारण पूछा।

सुकेशी जी ने बताया, "बेटे का फोन आ गया था। वह किसी ज़रूरी काम से शहर से बाहर गया था, सो लौट नहीं सका। खैर लिफ्ट की कृपा से ऊपर तो आ ही गए हैं। अब चाय बना रही हूँ और खाने को भी कुछ बना नहीं रखा है सो फ्रिज में ब्रैड ढूँढ रही हूँ।"

"और बहू?"

"वह सो रही है। ...रात भी ज़्यादा हो गयी है न।"

"उफ़ ये बेटे बहु! क्या बहू दो रोटी सेक कर नहीं रख सकती थी, जो अचार से ही खा लेते आप लोग? इन्हीं बेटों के लिए माएँ। रुको दीदी! बिटिया ने काफी खाना बना रखा था, अभी भेजती हूँ। देखो न बेटियाँ कितना ख्याल रखती हैं और हम बस बेटों की आस लगाए रहते हैं।"

"मधु! बेटे की पत्नी के रूप में, लाये तो हम भी किसी की बेटी ही थे।"